क्रिकेट जगत में खिलाड़ियों का आना-जाना इस खेल का स्वभाव है लेकिन कभी-कभी कुछ खिलाड़ी ऐसे होते हैं जिनका औरा इतना बड़ा होता है कि आने वाले समय में उनका नाम और प्रतिभा क्रिकेट की पहचान से जुड़ जाता है। ऐसे ही एक खिलाड़ी का नाम सैयद मुश्ताक अली। 17 दिसंबर 1914 को इंदौर में जन्में इस खिलाड़ी ने अपनी प्रतिभा का ऐसा परचम फहराया था जिसने उन्हें भारतीय क्रिकेट में सदा के लिए अमर बना दिया। इस दिग्गज खिलाड़ी ने 18 दिसंबर 2005 को दुनिया से अलविदा कह दिया लेकिन आज भी उनके नाम से मशहूर सैय्यद मुश्ताक अली ट्रॉफी और रिकॉर्ड के जरिए वो क्रिकेट का अहम और अमर हिस्सा हैं। आइए उनके जन्मदिन पर जानते हैं इस खिलाड़ी से जुड़ी कुछ सुनी-अनसुनी बातें….
आज के दौर में जब कोई खिलाड़ी तूफानी अंदाज में बल्लेबाजी करता है तो फैंस का उस खिलाड़ी से कुछ अलग ही लगाव होता है। ऐसा ही अंदाज उस वक्त मुश्ताक अली का बी हुआ करता था जो टेस्ट क्रिकेट में अपनी तूफानी बल्लेबाजी के लिए मशहूर थे। इनके बारे में दिलचस्प बात ये है कि इन्होंने अपने करियर का आगाज धीमी गति के गेंदबाज के रूप में किया था। लेकिन बाद में उनकी पहचान दाएं हाथ के विस्फोटक सलामी बल्लेबाज की बन गई थी। अली ने अपने इंटरनेशनल करियर का आगाज 5 जनवरी 1934 को कोलकाता में इंग्लैंड के खिलाफ किया था। हालांकि उनके करियर में अहम मोड़ 1936 को इंग्लैंड दौरे के दौरान आया।
जुलाई 1936 में टेस्ट सीरीज के दौरान भारत मैनचेस्टर के ओल्ड ट्रैफर्ड पर इंग्लैंड से भिड़ा था। इस मैच की दूसरी पारी में मुश्ताक ने विजय मर्चेंट के साथ 203 रन जड़ दिए। इनमें से 112 रन अकेले अली के बल्ले से निकले थे और पहले भारतीय बने थे जिन्होंने विदेशी सरजमीं पर पहला शतक जड़ा था।
जब फैंस की जिद सेलेक्टर्स पर पड़ी थी भारीः अली के जलवे का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि ऑस्ट्रेलियन सर्विसेस के खिलाफ खेले जाने वाले एक टेस्ट मैच के लिए जब टीम इंडिया में अली को शामिल नहीं किया गया तो कोलकाता के ऐतिहासिक ईडन गार्डन पर उनके चाहने वाले दर्शक भड़क गए थे। उन्होंने विरोध प्रदर्शन करते हुए ‘नो मुश्ताक, नो टेस्ट’ का नारा लगाने लगे और फिर मजबूर होकर फैंस को उन्हें टीम में शामिल किया गया।
46 अलग-अलग टीमों के लिए खेलाः मुश्ताक के बारे में एक बात और मशहूर है कि उन्होंने 46 अलग-अलग टीमों के लिए फर्स्ट क्लास क्रिकेट खेला था। अली ने 11 टेस्ट मैचों की 20 पारियों में 32.21 के औसत से कुल 612 रन बनाए थे। इनमें दो शतक और तीन अर्धशतक शामिल हैं। उन्होंने वर्ष 1952 में अपने करियर का 11 वां और आखिरी टेस्ट इंग्लैंड के खिलाफ ही खेला था और खास बात यह रही कि यह पहला मुकाबला था जब भारत ने इंग्लैंड को टेस्ट में मात दी थी। उनके इस दमदार प्रदर्शन के चलते भारत ने उन्हें 1964 में पद्मश्री से नवाजा था।