ओलंपिक पदक विजेता सुशील कुमार दिल्ली हाई कोर्ट में कानूनी लड़ाई हार गए। अदालत ने रियो ओलंपिक के लिए चयन ट्रायल की उनकी मांग यह कहकर ठुकरा दी कि इससे चयनित पहलवान नरसिंह पंचम यादव के मौके पर असर पड़ सकता है और नुकसान देश का होगा।

न्यायमूर्ति मनमोहन ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सुशील की उपलब्धियों का लोहा माना और उन्हें 66 किलोवर्ग में महान पहलवान बताया। लेकिन 74 किलो वर्ग में ओलंपिक कोटे के लिए दावेदारी की अनुमति नहीं दी। अदालत ने कहा कि रियो ओलंपिक में पुरुषों के 74 किलो वर्ग में भारत के प्रतिनिधित्व के लिए चयन ट्रायल का निर्देश भारतीय कुश्ती महासंघ को देने की मांग करती सुशील की याचिका कानून की नजर में ठीक नहीं है और तथ्यों के विपरीत भी है।

इसने कहा , अंतरराष्ट्रीय खेलों में पदक सिर्फ दमखम से ही नहीं बल्कि दिमाग से भी जीते जाते हैं। ऐन मौके पर चयन को चुनौती देने से चयनित खिलाड़ी की मानसिक तैयारी बाधित हो सकती है। अदालत ने कहा , एक खिलाड़ी लगातार चयन ट्रायल की मांग कर रहा है जिससे चयनित खिलाड़ी के जीत के मौकों पर असर पड़ सकता है जो राष्ट्रहित के विपरीत होगा। ऐसे में नुकसान देश का ही होगा। अदालत ने कहा , इस नतीजे को ध्यान में रखते हुए ट्रायल की वादी की अपील कानून की नजर में समर्थन करने लायक नहीं है और तथ्यों के विपरीत भी है। लिहाजा मौजूदा रिट याचिका और आवेदन खारिज किए जाते हंै।

अदालत ने 37 पन्नों के फैसले में कहा कि कुश्ती महासंघ ने यादव के चयन में तार्किक, पारदर्शी और निष्पक्ष प्रक्रिया अपनाई है। महासंघ ने कहा, वादी ने क्वालीफिकेशन के बाद ट्रायल का तरीका सुझाया है, लेकिन इसे चयन के अकेले तरीके के तौर पर स्वीकार नहीं किया जा सकता क्योंकि इसके मायने हैं कि देश ओलंपिक का कोटा हासिल करने के लिए अपने सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी को नहीं भेज रहा है। अदालत ने कहा कि सुशील ने भले ही 66 किलो वर्ग में भारत के लिए कई उपलब्धियां हासिल की हैं, लेकिन मौजूदा फार्म के आधार पर कुश्ती महासंघ की राय सही है कि नरसिंह बेहतर है।
इस बीच अदालत ने डब्लूएफआइ के उपाध्यक्ष राज सिंह को नोटिस जारी करके पूछा है कि झूठा हलफनामा देने के लिए उनके खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं की जाए।

अदालत ने कहा कि यादव को 2015 में विश्व कुश्ती चैंपियनशिप में मिले पदक के कारण ही भारत को 74 किलो फ्रीस्टाइल वर्ग में कोटा मिला है। अदालत ने कहा, कोटा हासिल करने के बाद संबंधित महासंघ ने उसे अभ्यास की पूरी सुविधाएंं दी हंै, लिहाजा उसकी ओलंपिक की तैयारी पुख्ता है। अदालत ने इस पर खेद जताया कि जनवरी 2014 में 66 किलोवर्ग खत्म कर दिया गया और सुशील को 74 किलो में उतरना पड़ा। लेकिन सितंबर 2014 के बाद से सुशील ने कोई बड़ा राष्ट्रीय या अंतरराष्ट्रीय खिताब नहीं जीता है। इसने कहा कि कुश्ती महासंघ ने विश्व चैंपियनशिप 2015 से पहले निष्पक्ष चयन ट्रायल का आयोजन किया था, लिहाजा उस समय ओलंपिक में कोटा हासिल करने का मौका था।

अदालत ने कहा कि खेल टूर्नामेंटों में देश के प्रतिनिधित्व का फैसला विशेषज्ञों यानी संबंधित राष्ट्रीय खेल महासंघ पर छोड़ देना चाहिए। इसने कहा, अधिकार और जिम्मेदारी साथ में मिलते हैं। राष्ट्रीय खेल महासंघ को खिलाड़ियों के प्रदर्शन के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता अगर उसे चयन का अधिकार नहीं है। बशर्ते प्रक्रिया निष्पक्ष, पारदर्शी, तार्किक और स्थिर हो। अदालत ने कहा कि शुरुआत में महासंघ पर पक्षपात का कोई आरोप नहीं लगाया गया। लेकिन सुशील ने बाद में प्रत्युत्तर में आरोप लगाया कि महासंघ ने प्रो कुश्ती लीग में भाग नहीं लेने के लिए उसे निशाना बनाया है।

इसने कहा कि किसी सबूत के अभाव में ये आरोप निराधार लग रहे हैं। राष्ट्रीय खेल विकास आचार संहिता 2011 का जिक्र करते हुए अदालत ने कहा कि यह अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंटों में भारतीय खिलाड़ियों के चयन के राष्ट्रीय खेल महासंघ के अधिकार पर पाबंदी नहीं लगाता ।