भारत में जब भी खेलों की बात होती है, पहला नाम क्रिकेट का आता है। लोकप्रियता और पैसा दोनों ही मामलों में मानक के तौर पर क्रिकेट को ही आगे रखा जाता है। ऐसे में जब खेल बजट की तुलना इंडियन प्रीमियर लीग से की जाए तो काफी दिलचस्प आंकड़े सामने आते हैं। साथ ही यह जानने में भी मदद मिलती है कि आखिर क्रिकेट क्यों लोकप्रियता के मामले में देश के अन्य खेलों पर भारी पड़ता है? ओलंपिक पदक में हम क्यों पिछड़ रहे हैं?

सरकार ने वर्ष 2020-21 के लिए पेश बजट में खेलों के लिए 2826.92 करोड़ रुपए आबंंटित किए हैं। यह 2019-20 के संशोधित अनुमान के मुकाबले मात्र 50 करोड़ रुपए ज्यादा हैं। अब इसके मुकाबले देखा जाए तो आइपीएल में सबसे ज्यादा कमाई करने वाले चार खिलाड़ियों की डेढ़ महीने के एक सत्र में कुल आमदनी ही 62 करोड़ रुपए बैठती है। विराट कोहली को जहां 17 करोड़ रुपए मिलने हैं वहीं महेंद्र सिंह धोनी, रोहित शर्मा और ऋषभ पंत को 15-15 करोड़।
भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआइ) ने आइपीएल के जो प्रसारण अधिकार पांच साल के लिए बेचे थे उनकी कीमत 15 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा थी। यानी एक साल में तीन हजार करोड़ रुपए से ज्यादा जबकि देश का साल भर का खेल बजट 2826.92 करोड़ रुपए है।

दरअसल, किसी भी सरकार के लिए खेल प्राथमिकता सूची में रहा ही नहीं। हर साल पेश होने वाले लेखा-जोखा में वह हाशिए पर ही रहता है। खेलों में भारत की तुलना अमेरिका और चीन से का जाने लगती है जबकि बजट आबंटन में ये दोनों देश भारत की तुलना में बहुत आगे हैं। ओलंपिक वर्ष होने के बाद भी बजट में मात्र 50 करोड़ रुपए की बढ़ोतरी समझ से बाहर है।

रियो के बाद अब तोक्यो

भारत ने 2016 रियो ओलंपिक में मात्र दो पदक जीते थे। यह 2012 के लंदन ओलंपिक के छह पदकों के मुकाबले काफी कम थे। भारत के इस प्रदर्शन पर सड़क से लेकर संसद तक हंगामा हुआ। सरकार ने भी गंभीरता दिखाते हुए अगले तीन ओलंपिक 2020, 2024 और 2028 के लिए महत्त्वाकांक्षी योजनाएं बनार्इं। लेकिन हालात सिफर ही लग रहे हैं।

सरकार ने अपने महत्त्वाकांक्षी खेलो इंडिया कार्यक्रम में 312.42 करोड़ रुपए की वृद्धि की है। खेल मंत्रालय का यह पुरजोर मानना है कि इससे उसे भविष्य के चैंपियन मिलेंगे। खेलो इंडिया का पिछले वर्ष का बजट 578 करोड़ रुपए था जो इस बार बढ़कर 890.42 करोड़ रुपए पहुंच गया। अब सवाल यह है कि खेलो इंडिया के तीन संस्करण हो चुके हैं और यदि इन खेलों से खिलाड़ी तोक्यो ओलंपिक के लिए भारतीय दल में जगह नहीं बना पाते तो फिर इसके आयोजन का महत्त्व क्या रह जाएगा।

यह भी दिलचस्प है कि खेलों इंडिया का तीसरा संस्करण असम के गुवाहाटी में जनवरी में हुआ जिसमें 6000 से ज्यादा खिलाड़ियों ने हिस्सा लिया और अब फरवरी के आखिरी सप्ताह में भुवनेश्वर में खेलो इंडिया यूनिवर्सिटी गेम्स का पहला संस्करण जा रहा है। खेलो इंडिया में दो आयु वर्ग अंडर-17 और अंडर-21 थे जबकि यूनिवर्सिटी गेम्स में 18 से लेकर 22 साल की उम्र हो सकती है।

खेलो इंडिया के आयोजन के बाद यूनिवर्सिटी गेम्स के आयोजन का कोई तात्पर्य या महत्त्व नहीं रह जाता है। खिलाड़ियों को प्रोत्साहन देने और उनका मनोबल बढ़ाने में प्रोत्साहन राशि का बड़ा हाथ होता है जबकि इस बार खिलाड़ियों के लिए प्रोत्साहन राशि को 111 करोड़ रुपए से घटकार 70 करोड़ रुपए कर दिया गया है। खेल बजट ने खेल जगत को निराश किया है और यदि इस बार तोक्यो में रियो जैसी कहानी दोहरा दी गई तो किसी को आश्चर्य नहीं होगा।

राजेश राय