क्रिकेटर्स का जीवन आम लोगों से काफी अलग होता है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खेलने वाले खिलाड़ी लगातार देश-विदेश के दौरे करते हैं। एक सीरीज खत्म होते ही दूसरी सीरीज की तैयारी शुरू हो जाती है। वे महीनों-महीनों तक घर से दूर रहते हैं। इसके कारण उन्हें परिवार और दोस्तों के साथ समय बिताने का मौका बहुत कम मिलता है। शेड्यूल व्यस्त होने से क्रिकेटर्स को निजी और पेशेवर जीवन में संतुलन बनाना चुनौतीपूर्ण होता है।
मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर ने इससे जुड़ा एक दिलचस्प किस्सा आत्मकथा ‘प्लेइंग इट माई वे’ में बताया है। सचिन तेंदुलकर बताते हैं कि 24 सितंबर 1999 को जन्में बेटे अर्जुन को उनका घर से दूर जाना पसंद नहीं था। अर्जुन इतने नाराज हो जाते थे कि वह सचिन से फोन पर बात नहीं करते थे। ऐसा 6 साल तक चला। सचिन फोन पर अर्जुन से हैलो सुनने के लिए तरस गए थे। आइए जानते हैं सचिन तेंदुलकर ने किताब में क्या लिखा है?
अर्जुन फोन पर बात करने से मना कर देते थे
तेंदुलकर बताते हैं, “बच्चों को बड़ा होते देखना एक अद्भुत एहसास है और जब भी मैं उनसे दूर होता था तो मुझे उनकी बहुत याद आती थी। अर्जुन के साथ तो यह और भी मुश्किल था। उसे मेरे दूर जाने का बहुत बुरा लगता था और वह मुझसे फोन पर बात करने से मना कर देता था।”
अर्जुन से हैलो सुनने के लिए तरस गए सचिन
तेंदुलकर आगे बताते हैं, “अपने जीवन के शुरुआती छह सालों में जब मैं दौरे पर होता था तो अर्जुन ने मुझसे कभी बात नहीं की। उसकी आवाज सुनने की बेचैनी में मैं अक्सर अंजलि से कहता था कि वह उससे हैलो कहने को कहे, लेकिन वह हमेशा मना कर देता था। फिर मेरे लौटने पर वह पहले तीन दिनों तक मुझसे चिपका रहता था।”
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स्काइप या फेसटाइम नहीं था
तेंदुलकर लिखते हैं, “जब मेरे बच्चे हुए तब तकनीक आज जितनी एडवांस नहीं थी और स्काइप या फेसटाइम का कोई विकल्प नहीं था। अगर तकनीक उपलब्ध होती तो मुझे यकीन है कि मैं अंजलि से सारा और अर्जुन को वेबकैम के सामने लाने के लिए कहता ताकि जब मैं दुनिया के किसी और कोने में होता तो कम से कम अपने बच्चों को देख पाता। इससे उनके इतने सारे बदलावों से मैं वंचित नहीं रहता।”