ब्राजील के रियो डे जेनेरियो में इस समय चल रहे ओलंपिक खेलों में दुनियाभर के देश हिस्सा ले रहे हैं। ओलंपिक खेलों के लिए चुने जाना भी खिलाड़ी के लिए एक बड़ी उपलब्धि होती है। पदक के मामले में इस समय यूएस पहले पायदान पर चल रहा है। हालांकि भारत अभी भी अपना पहला मेडल पाने की कोशिश में लगा है।

मेडल तालिका में सबसे ज्यादा गोल्ड मेडल यूनाइटेड स्टेट के हैं, दूसरे नंबर पर ग्रेट ब्रिटेन और तीसरे पर चीन है। तीनों देशों के खिलाड़ी जबरदस्त प्रदर्शन करते हुए अपने देश को सोना दिला रहे हैं। हालांकि खिलाड़ी जब मेडल लेने के बाद कैमरे के आगे पोज देते हैं तो उसका भी अपना अंदाज है। अधिकतर खिलाड़ी मेडल को मुह में दबाकर फोटो क्लिक कराते हैं। मगर क्या कभी आपने सोचा है ऐसा क्यों है? क्या यह पोज देने का एक तरीका है या फिर इसके पीछे कोई वैज्ञानिक कारण छिपा है।

100 मीटर वटरफ्लाइ प्रतियोगिता में गोल्ड मेडल जीतने के बाद अमेरिकी तैराक माइकल फेलप्स। (Photo: Reuters)
100 मीटर वटरफ्लाइ प्रतियोगिता में गोल्ड मेडल जीतने के बाद अमेरिकी तैराक माइकल फेलप्स। (Photo: Reuters)

दरअसल पुराने समय में असली सोने की पहचान उसे चखकर की जाती थी। सोना बहुत ही नरम और कोमल तत्व होता है। इसलिए शुद्ध सोने की पहचान के लिए लोग इसे दातों में दबाते थे, अगर इसपर कुछ निशान बनते हैं तो पता लगता था कि सोना एकदम खरा है।

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हालांकि आजकल मिलने वाले गोल्ड मेडल पूरी तरह से गोल्ड के बने नहीं होते, इनपर बस गोल्ड की परत होती है। मगर फिर भी इसे मुह में देना एक प्रथा बन गई है। बता दें कि आखिरी बार शुद्ध गोल्ड मेडल 1912 में दिया गया था। आजकल मिलने वाले मेडल्स में सिर्फ 6 ग्राम शुद्ध सोना होता है, जिसे सिल्वर पर चढ़ा देते हैं। मेडल्स में 90.5 फीसदी हिस्सा सिल्वर का होता है।