एशियाई खेलों के पूर्व स्वर्ण पदक विजेता विकास कृष्ण (75 किलोग्राम) भार वर्ग के क्वार्टर फाइनल में दूसरे वरीय बक्तेमीर मेलिजकुजेव से हारकर रियो खेलों से बाहर हो गए। उनकी हार के साथ ही ओलंपिक खेलों में मुक्केबाजी में आठ वर्षों में पहली बार भारत का अभियान पदक के बिना समाप्त हो गया। शिव थापा (56 किलोग्राम) और मनोज कुमार (64 किलोग्राम भार वर्ग) पहले ही हारकर बाहर हो चुके हैं। विकास की हार के साथ ही इस ओलंपिक में भारतीय मुक्केबाजों की चुनौती समाप्त हो गई है।
हालांकि ऐसा लगातार दूसरी बार है जब पुरुष मुक्केबाज ओलंपिक में देश को पदक दिलाने में विफल रहे। इससे पहले 2012 के लंदन खेलों में एम सी मैरीकोम ने 51 किलोग्राम भार में भारत को कांस्य पदक दिलाया था। विजेंदर सिंह (75 किलोग्राम) एक मात्र भारतीय पुरुष मुक्केबाज हैं, जिन्होंने 2008 के बेजिंग खेलों में देश को कांस्य पदक दिलाया था। सोमवार (15 अगस्त) की रात क्वार्टर फाइनल में सातवें वरीय विकास विश्व नंबर तीन के सामने कहीं भी मुकाबले में नहीं दिखे। दूसरा राउंड भारतीय मुक्केबाज के लिए और भी खराब रहा क्योंकि मेलिजकुजेव ने मुकाबले को पूरी तरह अपने कब्जे में कर लिया और उनका दाहिना हाथ भी चलने लगा था। वास्तव में उनके एक पंच से विकास का गम शिल्ड बाहर आ गया और वह पूरी तरह धराशाई हो गए।
मेलिजकुजेव के मुक्कों का जोर इतना ताकतवर था कि दो जजों ने दूसरे दौर में उनके पक्ष में 10-8 का स्कोर दिया। विकास इसके बाद अंतिम तीन मिनट में बिल्कुल रंगहीन दिखे और खुद को बचाते हुए दिखे और वह अपना संतुलन ढूंढने के लिए संघर्ष कर रहे थे। हालांकि उनके प्रतिद्वंद्वी ने कोई गलती नहीं की और मुकाबला अपने नाम कर लिया।
‘इससे बेहतर नहीं कर सकता था’
क्वार्टर फाइनल में हार के साथ ओलंपिक पदक जीतने का अपना सपना टूटने से हताश भारतीय मुक्केबाज विकास कृष्ण (75 किलो) ने कहा कि वह इससे बेहतर प्रदर्शन नहीं कर सकते थे जो उन्होंने उज्बेकिस्तान के बेक्तेमिर मेलिकुजिएव के खिलाफ किया। विकास ने कहा कि मैं माफी चाहता हूं कि मैंने आप सभी को निराश किया। मैंने पहले दौर में बढ़त बनाने की कोशिश की लेकिन पहला दौर गंवाने के बाद वापसी मुश्किल थी और मैंने उम्मीद छोड़ दी। मैं हमेशा खब्बू मुक्केबाज से हार जाता हूं। विश्व चैंपियनशिप हो, पिछला ओलंपिक या ओलंपिक क्वालीफायर। मैं खब्बू मुक्केबाज से ही हारा हूं। मैंने अच्छा अभ्यास किया लेकिन भारत में सिर्फ पांच फीसद बाएं हाथ से खेलने वाले मुक्केबाज हैं और मैं उनमें से एक हूं।
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