रियो ओलंपिक में भारत को सिल्वर मेडल दिलाने वाली पीवी सिंधू की सफलता के पीछे कोच पुलेला गोपीचंद की कठोर तपस्या का भी हाथ है। गोपीचंद ने भारत में बैडमिंटन को घर-घर तक पहुंचाया है। रिटायरमेंट लेने के बाद उन्होंने अपनी एकेडमी खोली और सिखाने की जिम्मेदारी संभाल ली। इसके बाद आए साइना नेहवाल, पीवी सिंधू, किदांबी श्रीकांत, परुपल्ली कश्यप जैसे सितारे। आज यह खिलाड़ी दुनिया के बेस्ट बैडमिंटन खिलाड़ियों में से एक हैं। गोपीचंद का परिश्रम उनके शिष्यों की सफलता के पीछे छुप जाता है। जानिए आज के जमाने के इस ‘द्रोणाचार्य’ ने किस तरीके से बैडमिंटन को एक नया मुकाम दिया।

हैदराबाद के आईटी कॉरीडोर में बनी पुलेला गोपीचंद बैडमिंटन एकेडमी में सुबह की शुरुआत। पुलेला गोपीचंद सुबह के 4 बजे एकेडमी में कदम रखने वाले पहले शख्स होते हैं। दिन का पहला सेशन पीवी सिंधू और किदांबी जैसे सीनियर प्लेयर्स की ट्रेनिंग का होता है। एकेडमी में सूरज की किरणें पहुंचने तक तीन घंटे गोपी की कड़क आवाज में निर्देश गूंज रहे होते हैं। “ऊपर.। और ऊपर..। और ऊपर..।” वह सिंधू को तब तक पुश करते रहते हैं जब तक कि वह अपना बेस्ट शॉट न लगाएं। कभी वह कोर्ट के किनारे पर खड़े होकर किसी मशीनगन की तरह एक के बाद एक सिंधू पर शटल्स फेंकने लगते है और उसे शॉट लगाने को कहते हैं ताकि उनकी फ्लैक्सिबिलिटी को टेस्ट कर सकें। गोपी और सिंधू को ट्रेनिंग करते हुए देखना किसी मिलिट्री सार्जेंट को काम करते हुए देखने जैसा लगता है।

पीवी सिंधू: 56 किलोमीटर जाकर प्रैैक्टिस करती थी, कोच गोपी ने चॉकलेट, बिरयानी और प्रसाद पर लगा दी थी रोक

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 (File Photo)

गोपी कहते हैं, “मैं जो करता हूं मुझे वह पसंद है। मैं खुद को किस्मत वाला मानता हूं कि मैं जो करता हूं मुझे वह करने का मौका मिला है।” यह बताता है कि गोपी असल में कभी खेल से रिटायर हुए ही नहीं। गोपी की यह एकेडमी चैंपियन्स बनाने वाली किसी फैक्ट्री की तरह है। 42 साल के गोपी ने उनके 13 साल के कोच करियर में अपने गुरुकुल से कई धुरंधर निकाले हैं। गोपी की यह एकेडमी देश भर के टैलेंट को आकर्षित करती है क्योंकि देश भर में इस तरह चलाई जाने वाली एक भी एकेडमी नहीं है। गोपी बताते हैं, “चैंपियंस बनाना कोई पार्ट टाइम बिजनेस नहीं है। आपको इंटरनेशनल लेवल तक पहुंचने के लिए कुछ चीजों को लगातार करना होता है।”

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जिस वक्त सानिया नेहवाल उनकी स्टूडेंट थीं गोपी उनकी एक-एक आदत और दिनचर्या के बारे में जानते थे। किस वक्त वह क्या करती हैं से लेकर हर घंटे और हर दिन के उनके क्रियाकलापों से वह अवगत थे। उनकी विदेश दौरों पर गोपी कई बार उनके फ्रिज पर छापा मार दिया करते थे कि वह कुछ ऐसा तो नहीं खा रही हैं जो उन्हें इस वक्त नहीं खाना चाहिए। ठीक ऐसी ही ट्रेनिंग उन्होंने सिंधू को कराई थी। गोपी अपने स्टूडेंट्स को किसी बच्चे की तरह ट्रीट करते हैं। उनकी कही हर बात कानून होती है। गोपी ने 21 साल की सिंधू के लिए उनकी फेवरेट चॉकलेट और हैदराबादी बिरयानी पूरी तरह से प्रतिबंधित कर दी थी। कोई भी ऐसी चीज जो सिंधू को डोप टेस्ट में फेल करा सकती थी या जिससे उन्हें इनफेक्शन हो सकता था, खाने की गोपी की तरफ से सख्त मनाही थी। यह नियम उन्होंने मिठाइयों से लेकर मंदिर के प्रसाद तक पर लगा रखा थी।

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यदि भारत में आज बैडमिंटन को इतनी तवज्जो और हैसियत मिली है कि हमारी बेटियां ओलंपिक के मेडल ला रही हैं तो इसके पीछे एक मात्र वजह गोपीचंद हैं। अपनी खुद की प्राइवेट एकेडमी खड़ी करना गोपी के लिए कोई आसान काम नहीं था। हालांकि 2003 में आंध्र प्रदेश सरकार ने उन्हें उनके इंग्लैंड दौरे में प्रदर्शन से खुश होकर उन्हें 5 एकड़ जमीन दी थी। लेकिन बावजूद इसके गोपी को अपनी एकेडमी खड़ी करने के लिए 13 करोड़ रुपयों की जरूरत थी। जिन कॉर्पोरेट हाउसेज से गोपी ने मदद मांगी उन्होंने बड़ी-बड़ी बातें तो कीं लेकिन मदद के लिए आगे कोई भी नहीं आया। आखिरकार उन्हें अपने घर को गिरवी रखना पड़ा जिससे उन्हें 3 करोड़ रुपए की रकम मिल सकी। इसके बाद उन्हें कारोबारी निम्मागड्डा प्रसाद ने उन्हें 5 करोड़ रुपए दिए जिससे उन्हें अपनी एकेडमी को शुरू करने के लिए जरूरत भर के पैसे मिल गए। लेकिन प्रसाद ने गोपी को यह पैसे यूं ही नहीं दिए। उन्होंने गोपी के सामने यह शर्त रखी कि उन्हें भारत के लिए मेडल लाना होगा। और गोपी ने बखूबी यह शर्त नेहवाल के साथ 2012 में पूरी की। लंदन ओलंपिक में कास्य, अब सिल्वर और हो सकता है कि अगले ओलंपिक में यह पदक सोने में बदल जाए।

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