IPL 2025 में ऑस्ट्रेलियाई तेज गेंदबाज जोश हेजलवुड अपनी सटीक और चतुर गेंदबाजी से क्रिकेट प्रेमियों के दिलों पर छा रहे हैं। उनकी मेट्रोनोम जैसी लयबद्ध गेंदबाजी और नई तरकीबों ने T20 क्रिकेट में तहलका मचा दिया है। राजस्थान रॉयल्स (RR) के खिलाफ रॉयल चैलेंजर्स बेंगलुरु (RCB) के लिए सिर्फ 7 रन देकर तीन अहम विकेट लेने वाले हेजलवुड ने दिखा दिया कि वह क्यों इस फॉर्मेट के उस्ताद बन चुके हैं। धीमी गेंद की आड़ में तेज गेंद फेंकना हो या वॉबल-बॉल से बल्लेबाज को चकमा देना, हेजलवुड का हर गेंद एक रहस्य बनकर उभर रही है। आइए, जानते हैं कि कैसे यह छोटे से गांव का लड़का T20 क्रिकेट का नया सुपरस्टार बन गया और उनकी मेट्रोनोम गेंदबाजी का राज क्या है!
मेट्रोनोम गेंदबाजी: सटीकता और धोखे का मिश्रण
जोश हेजलवुड की गेंदबाजी को ‘मेट्रोनोम’ इसलिए कहा जाता है क्योंकि उनकी लाइन और लेंथ इतनी सटीक होती है कि बल्लेबाज को गलती करने पर मजबूर कर देती है। लेकिन IPL 2025 में उन्होंने अपनी गेंदबाजी में एक नया आयाम जोड़ा – धोखा। अंबाती रायडू ने हाल ही में एक मैच के बाद उनकी गेंदबाजी की तारीफ करते हुए कहा, “हेजलवुड ऑफ-कटर की तरह गेंद को पकड़ते हैं, लेकिन असल में तेज और छोटी लेंथ की गेंद फेंकते हैं। बल्लेबाज धीमी गेंद की उम्मीद में देर से प्रतिक्रिया करते हैं और गलती कर बैठते हैं।”
रायडू ने रिप्ले में हेजलवुड के साइड-आर्म एंगल को देखा और उनकी इस चतुराई की जमकर तारीफ की। आरोन फिंच ने भी हामी भरी, “बल्लेबाज मिडविकेट के ऊपर से शॉट खेलना चाहते थे, लेकिन गेंद बल्ले के ऊपरी हिस्से पर लगकर कवर या मिडविकेट की ओर चली जाती थी।” हेजलवुड की यह तकनीक कोई नई नहीं है। पिछले साल साउथम्पटन में इंग्लैंड के लियाम लिविंगस्टन के खिलाफ भी उन्होंने ऐसा ही किया था, जब धीमी गेंद की तरह गेंद पकड़कर तेज गेंद फेंकी और लिविंगस्टन को चकमा देकर स्टंप्स उड़ा दिए।
नई गेंद से यॉर्कर और धीमी बाउंसर का जादू
हेजलवुड की खासियत यह है कि वह सिर्फ डेथ ओवर्स में ही नहीं, बल्कि नई गेंद से भी कमाल करते हैं। जहां ज्यादातर तेज गेंदबाज डेथ ओवर्स में यॉर्कर से बचते हैं, वहीं हेजलवुड इसे बखूबी अंजाम देते हैं। इसके अलावा, वह नई गेंद से धीमी बाउंसर का भी इस्तेमाल करते हैं। राजस्थान रॉयल्स के खिलाफ यशस्वी जायसवाल को उन्होंने 128 किमी/घंटा की धीमी बाउंसर पर मिडविकेट में कैच आउट कराया। यह उनकी रणनीति का हिस्सा है – नई गेंद से धीमी गेंदें और डेथ ओवर्स में तेज गेंदों का मिश्रण।
वॉबल-बॉल: टेस्ट से T20 तक का सफर
हेजलवुड की गेंदबाजी का एक और हथियार है उनकी वॉबल-बॉल। यह गेंद टेस्ट क्रिकेट में भी उनकी पहचान रही है, जिसे उन्होंने T20 में भी बखूबी अपनाया। इस गेंद में वह छोटे ग्रिप का इस्तेमाल करते हैं – इंडेक्स फिंगर सीम के बाहर, मिडिल फिंगर सीम पर और आखिरी पल में मिडिल फिंगर गेंद को वॉबल देती है। इसका नतीजा होता है कि गेंद हवा में हिलती है और बल्लेबाज को चकमा दे देती है। पिछले साल टेस्ट में बाबर आजम को उन्होंने इसी गेंद पर आउट किया था, जब गेंद देर से अंदर आई और बल्ले-पैड के बीच से गुजरकर स्टंप्स में जा लगी।
यह तकनीक हेजलवुड ने अपने कोच डेविड सेकर से सीखी और इसे T20 में लागू किया। इतना ही नहीं उन्होंने मिशेल स्टार्क को भी इस गेंद का इस्तेमाल करने के लिए प्रेरित किया।
हेजलवुड की कहानी
हेजलवुड की कहानी भी कम प्रेरणादायक नहीं है। ऑस्ट्रेलिया के एक छोटे से गांव बेंडेमीर में जन्मे हेजलवुड का बचपन सिर्फ 500 लोगों की आबादी और पांच सहपाठियों के साथ बीता। उनके गांव में ज्यादातर लोग भेड़ और मवेशी पालते थे। 2014 में जब उन्होंने 19 साल की उम्र में टेस्ट डेब्यू किया तो गांव के प्रवेश द्वार पर एक बड़ा बैनर लगाया गया जिसमें लिखा था ‘बेंडेमीर का जोश हेजलवुड को मिली बैगी ग्रीन!’
पड़ोसी शहर टैमवर्थ में हेजलवुड ने अपनी गेंदबाजी को निखारा। 2007 में जब वह सिर्फ 15 साल के थे तो उनके पिता ट्रेवर के दोस्तों ने 500-1 के ऑड्स पर 100 डॉलर की शर्त लगाई थी कि वह 20 साल की उम्र से पहले ऑस्ट्रेलिया के लिए खेलेंगे। उस शर्त ने उन्हें 50,000 डॉलर की कमाई कराई। आज शायद वे इस बात पर शर्त लगाना चाहेंगे कि हेजलवुड T20 में इतने बड़े सितारे बन जाएंगे!
T20 में निखरने की वजह: अनुभव और सीख
हेजलवुड का मानना है कि T20 में उनकी सफलता का राज इस प्रारूप को खेलने का अनुभव है। सिडनी सिक्सर्स, चेन्नई सुपर किंग्स, RCB और ऑस्ट्रेलिया के लिए खेलते हुए उन्होंने अलग-अलग परिस्थितियों से सीखा और अपनी गेंदबाजी को बेहतर किया। ऑस्ट्रेलिया के कोच एंड्रयू मैकडॉनल्ड ने इसे बखूबी समझाया: “अगर आप एक कुशल गेंदबाज को मौका देते हैं, तो वह T20 में भी अपनी राह बना लेगा।”
नन्हा जेवलिन चैंपियन, जो बना क्रिकेट का सितारा
बचपन में हेजलवुड ने जेवलिन और शॉट-पुट में भी अपनी प्रतिभा दिखाई थी। उन्होंने नेशनल ऑल-स्कूल्स टाइटल्स में जेवलिन में गोल्ड मेडल जीता था। लेकिन क्रिकेट उनका पहला प्यार बना। उनके पहले कोच जॉन मुलर ने उन्हें सलाह दी थी, “शांत रहो, अपनी बांह को ज्यादा न उछालो और गेंद को आसानी से फेंको।” आज भी हेजलवुड की गेंदबाजी में वही सादगी और प्रभावशीलता दिखती है।