क्राउडफंडिंग की मदद से मलेशिया की राजधानी कुआलालंपुर में फॉक्स इंडोनेशिया पैरा-बैडमिंटन इंटरनेशनल टूर्नामेंट में भाग लेने वाली उत्तराखंड की पैरा-बैडमिंटन खिलाड़ी प्रेमा बिस्वास ने कांस्य पदक जीता है। उन्होंने ऑस्ट्रेलिया की फिओना को हराया। 5 से 10 सितंबर तक आयोजित टूर्नामेंट में 15 देशों के पैरा-एथलीट्स ने हिस्सा लिया। प्रेमा के लिए पदक की राह आसान नहीं थी।

प्रेमा को स्पोर्ट्स किट, एकमोडेशन और इंडोनेशिया से वापसी के लिए फ्लाइट की टिकट के लिए धन की व्यवस्था करने में काफी संघर्ष करना पड़ा था। इंटरनेशनल पारा-बैडमिंटन प्लेयर और तीलू रौतेली अवार्ड से सम्मानित 34 साल की प्रेमा बिस्वास उत्तरखंड के उधम सिंह नगर की रहने वाली हैं। जन्म के कुछ सालों बाद ही किसी इंजेक्शन की वजह से प्रेमा के दोनों पैरों ने काम करना बंद कर दिया।

प्रेमा विस्वास ने 2022 में राष्ट्रीय पैरा-बैडमिंटन में पांच स्वर्ण पदक जीता

प्रेमा विस्वास ने अपने दृढ़ संकल्प के कारण 2022 में राष्ट्रीय पैरा-बैडमिंटन में पांच स्वर्ण पदक जीता और उन्हें तीलू रौतेली पुरस्कार मिला। टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार अंतरराष्ट्रीय सफलता के बावजूद उन्हें जिला या राज्य अधिकारियों से कोई सहायता नहीं मिली। उनका आरोप है प्रबंधन के पास वह मदद के लिए गई थीं,लेकिन किसी ने भी उनकी मदद नहीं की।

हल्दवानी के हेंमत गौनिया ने की मदद

प्रेमा बिस्वास के साथ इस मुश्किल पल में हल्दवानी के हेंमत गौनिया खड़े हुए और उन्होंने सोशल मीडिया पर कैंपेन चलाया। 10 दिन में 1.2 लाख रुपये जुटे और प्रेमा ने टूर्नामेंट में हिस्सा लिया। प्रेमा बिस्वास ने जीत के बाद कहा, “यदि राज्य सरकार मुझे खेल नीति के तहत नौकरी देती तो मैं किसी से पैसा नहीं लेती। मेरे पास आवश्यक खेल उपकरण नहीं थे और यहां तक कि जिस कोर्ट में मैंने अभ्यास किया वह भी असमान था, लेकिन मैंने यह सब झेला और अपने देश का नाम रोशन करने में कामयाब रही। मैं उन सभी लोगों को धन्यवाद देता हूं जिन्होंने मेरे जीवन में इस ऐतिहासिक क्षण का अनुभव करने में मेरी मदद की।”

प्रेमा बिस्वास का अगला लक्ष्य ओलंपिक में खेलना

प्रेमा बिस्वास ने कहा,”मुझे आज भी अपने किशोरावस्था के दिन याद हैं जब बच्चे मुझे व्हीलचेयर पर देखकर मेरे साथ बैडमिंटन खेलने से मना कर देते थे। तभी मैंने तय कर लिया कि एक दिन मैं ऐसे मंच पर खेलूंगी जहां बहुत कम लोग पहुंच पाते हैं। तमाम कठिन चुनौतियों के बावजूद मैंने अपना पहला अंतरराष्ट्रीय पदक जीता है। मेरा अगला लक्ष्य ओलंपिक में खेलना है, लेकिन फिलहाल मेरे पास इसे हासिल करने के लिए संसाधनों की कमी है। अगर मुझे अधिकारियों से सहायता मिले तो मैं साबित कर सकती हूं कि दिव्यांग लोग भी खेलों में सफल हो सकते हैं।”