मनोज जोशी
जिस राष्ट्रीय चंैपियनशिप में भारत के सर्वकालिक महान पहलवान सुशील कुमार नौ साल बाद वापसी कर रहे हों, गीता फोगट चार साल बाद राष्ट्रीय चैंपियनशिप में उतर रही हों और जहां विनेश और साक्षी मलिक दो साल बाद वापसी कर रहे हों तो उस प्रतियोगिता के स्तर का अंदाज़ा लगाया जा सकता है। आयोजन आज से इंदौर में है, जहां पप्पू यादव से लेकर कृपाशंकर तक ने लंबे समय तक भारतीय कुश्ती की सेवा की है। सुशील का फिर से मैट पर उतरना वास्तव में ऐतिहासिक घटना है। वह व्यक्तिगत स्पर्धा में दो ओलंपिक पदक जीतने वाले भारत के इकलौते पहलवान हैं और साथ ही विश्व स्पर्धा का स्वर्ण जीतने वाले भी अकेले भारतीय पहलवान हैं। इस राष्ट्रीय स्पर्धा में उतरने के पीछे एक और ओलंपिक पदक जीतने का सपना छिपा हुआ है। अपनी इस मंजिल तक पहुंचने के रास्ते में प्रो रेसलिंग लीग, एशियाई खेल और कॉमनवेल्थ गेम्स जैसे पड़ाव आएंगे, जहां अच्छा प्रदर्शन उन्हें अपने लक्ष्य तक पहुंचाने में मदद करेगा।
34 की उम्र में पदक को लेकर ऐसी गंभीरता शायद ही देखने को मिले और वह भी तब जबकि सामने एक ऐसा पॉवर गेम हो जिसका चोट लगने से लेकर शारीरिक फिटनेस तक से बहुत करीब रिश्ता रहा हो। सुशील का मानना है कि मानसिक दृढ़ता सारे काम आसान कर देती है। यह कुछ कर गुजरने के लिए प्रेरित करती है। उन्हें विश्वास है कि इसके दम पर वह भविष्य में ओलंपिक में एक पदक और हासिल कर पाएंगे।
वैसे सुशील की सबसे बड़ी खूबी यह है कि वह अपने वजन या उसके आस-पास के पहलवानों के साथ वॉर्म करते हैं और फिर अपने से 20 किलो या उससे अधिक के पहलवानों के साथ अभ्यास करना उन्हें अपने समय के किसी भी पहलवान से अलग साबित करता है। उन्हें अपने लक्ष्य तक पहुंचने के लिए पूर्व भारतीय कोच जॉर्जिया के व्लादीमिर का भी खूब साथ मिला है। पिछले दिनों वह जॉर्जिया में राष्ट्रीय कुश्ती और पीडब्लूएल की कुश्ती के अभ्यास में जुटे थे। तब ऐसा लग रहा था कि जनवरी में पीडब्लूएल के दौरान दुनिया के आला दर्जे के पहलवानों के साथ होने वाली अपनी कुश्तियों को लेकर बेहद गंभीर हैं लेकिन उन्होंने पिछले शुक्रवार को स्वदेश लौटकर दिखा दिया कि राष्ट्रीय स्पर्धा को लेकर भी वह उतने ही गंभीर हैं। सुशील की शुरू से ही सबसे बड़ी खूबी यह रही है कि वह कभी अपने विपक्षी पहलवान को हल्के से नहीं लेते। वह चाहते तो राष्ट्रमंडल खेल में श्रीलंका और पाकिस्तान के पहलवानों को चंद सेकंड में आसमान दिखा सकते थे लेकिन उन्होंने उन पहलवानों के साथ देर तक कुश्ती लड़कर उन्हें भविष्य की प्रतियोगिताओं के लिए आत्मविश्वास दिया। यही एक बड़े पहलवान की सबसे बड़ी खूबी होती है। अब वे राष्ट्रीय चैंपियनशिप में भाग लेने वाले अपने किसी भी पहलवान को कमजोर नहीं आंक रहे हैं। ऐसा कहकर उन्होंने अपने वजन के हर पहलवान का सम्मान बढ़ाया है।
पिछले दिनों जिसने भी सायना नेहवाल और पीवी सिंधू के बीच राष्ट्रीय चंैपियनशिप का फाइनल देखा है, वह उन लम्हों को शायद ही कभी भूल पाएं। इनकी मौजूदगी में राष्ट्रीय चैंपियनशिप जीवंत हो उठी। अब बारी कुश्ती की है। बेशक यहां सुशील के स्तर का कोई खिलाड़ी नहीं है लेकिन उनकी मौजूदगी एक नई इबारत लिखने के लिए बेकरार है।चार साल बाद वापसी कर रही गीता फोगट की राह भी खासी चुनौतीपूर्ण है। हालांकि उन्होंने इस प्रतियोगिता के लिए कड़ी मेहनत की है और शादी के बाद एक बड़ा सपना संजोने के साथ ही मैट पर उतरी हैं। पिछले दिनों अखिल भारतीय पुलिस खेलों में स्वर्ण पदक जीतकर उन्होंने अपने इरादे जाहिर कर दिए हैं। उम्मीद की जानी चाहिए कि यह धाकड़ लड़की फिल्म दंगल की अपनी बायोपिक की ही तरह एकतरफा अंदाज में कुश्तियां अपने नाम करेगी क्योंकि पूरे देश को उनसे यही उम्मीदें हैं।