कुछ साल पहले तक ऐसा कहा जा रहा था कि भारतीय हॉकी अब गुमनामी के रास्ते पर है। भारत कभी हॉकी में अपना खोया हुआ सम्मान हासिल नहीं कर सकेगा। बीते दो ओलंपिक में यह सोच बदलती हुई दिखी। टोक्यो में मनप्रीत सिंह और पेरिस में हरमनप्रीत सिंह की कप्तानी में भारत ने सेमीफाइनल में जगह बनाई। टोक्यो में सफर ब्रॉन्ज पर खत्म हुआ था लेकिन इस बार नजर गोल्ड पर है। भारत को गोल्ड जिताने के लिए वह शख्स भी दिन-रात मेहनत कर रहा है जो भारत की साल 2011 की वनडे वर्ल्ड जीत का अहम हिस्सा था।
2011 की जीत का हिस्सा थे पैडी अप्टन
यहां बात हो रही है पैडी अप्टन की। वही पैडी अप्टन जो साल 2011 में भारतीय क्रिकेट टीम के मेंटल स्ट्रेंथनिंग कोच थे। उन्होंने टीम को मानसिक तौर पर बहुत मजबूत किया। यही कारण था कि 2011 वर्ल्ड कप में भारत किसी भी दबाव की स्थिति में नहीं बिखरा। उन्होंने टीम की सोच को बदलने के लिए कई तरीके अपनाए और वह उसी का इस्तेमाल अब हॉकी टीम के लिए कर रहे हैं।
ओलंपिक में दिखी भारत की मानसिक मजबूती
पेरिस ओलंपिक में भी भारत के सफर में यही नजर आ रहा है। भारतीय टीम ने ग्रुप राउंड में जिस तरह ओलंपिक चैंपियन बेल्जियम और वर्ल्ड चैंपियन ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ खेल दिखाया, उसमें उनकी मानसिक मजबूती नजर आई। ग्रेट ब्रिटेन के खिलाफ अहम क्वार्टर फाइनल में भारत की इसी मानसिक मजबूती की कड़ी परीक्षा हुई। भारत को 43 मिनट तक 10 खिलाड़ियों के साथ खेलना था। कई फैंस ने सोशल मीडिया पर लिखा कि अब वापसी संभव नहीं है। एस्ट्रो टर्फ पर 10 बनाम 11 जीत दिलाने के लिए काफी नहीं है।
पैडी अप्टन ने संभाली कमान
हालांकि टीम इंडिया ने जो किया उसने सभी को हैरान कर दिया। दूसरे हाफ से पहले पैडी अप्टन टीम से बात करते हुए नजर आए। उन्होंने अपने खिलाड़ियों को इस मुश्किल समय में सब्र रखने की हिदायत थी। इसका असर भी दिखा। भारतीय टीम पूरी तरह डिफेंसिव होकर खेली। उन्होंने काउंटर अटैक करने के अलावा बहुत ज्यादा अटैक नहीं किया।