Match-Fixing Scandals: क्रिकेट के सबसे बड़े मैच फिक्सिंग घोटालों में से एक के मुख्य आरोपी और कथित सट्टेबाज संजीव चावला को दिल्ली हाई कोर्ट ने शुक्रवार को अगले आदेश तक तिहाड़ जेल भेज दिया। संजीव को मैच फिक्सिंग के जिस मामले में जेल भेजा गया है, उसमें दक्षिण अफ्रीका के पूर्व कप्तान हैंसी क्रोनिए भी शामिल थे।
ट्रायल कोर्ट ने एक दिन पहले ही संजीव चावला को पुलिस हिरासत में लेने की मंजूरी दी थी। दिल्ली पुलिस ने पूछताछ के लिए संजीव चावला को हिरासत में देने की मांग की थी। इसके बाद गुरुवार को ट्रायल कोर्ट ने संजीव को 12 दिन के लिए पुलिस हिरासत में भेज दिया था। पुलिस की दलील थी कि इस मामले की जांच अभी की जानी है। इसके लिए उसे देश भर के कई शहरों में जाना होगा।
ब्रिटेन से प्रत्यर्पित किए गए संजीव चावला ने ट्रायल कोर्ट के आदेश को चुनौती दी थी। चावला ने अपनी याचिका में कहा था कि गृह मंत्रालय (MHA) ने प्रत्यर्पण के दौरान, ब्रिटिश सरकार को यह आश्वासन दिया था कि मुकदमे की सुनवाई के लिए उसे तिहाड़ जेल में रखा जाएगा। चूंकि जांच अधिकारी मौजूद नहीं थे, इसलिए जस्टिस अनु मल्होत्रा ने क्राइम ब्रांच को मामले में स्टेटस रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया। साथ ही कहा कि अगले आदेश तक चावला को तिहाड़ जेल भेज दिया जाए। हाई कोर्ट ने याचिका पर गृह मंत्रालय को नोटिस भी जारी किया है। इस मामले में अगली सुनवाई 19 फरवरी को होगी।
Sr Adv Vikas Pahwa,appearing for Sanjeev Chawla,tells Delhi HC Govt has assured UK court during his extradition proceedings, that he will be kept in Tihar Jail while facing trial in India. But upon Chawla’s arrival in India,an application was filed,&police sought Chawla’s custody https://t.co/NJynHyrQiZ
— ANI (@ANI) February 14, 2020
पुलिस ने हाई कोर्ट को बताया कि इस मामले में शामिल हैंसी क्रोनिए की 2002 में एक विमान दुर्घटना में मौत हो गई थी। संजीव चावला पर आरोप है कि उसने क्रोनिए के साथ मिलकर साल 2000 के फरवरी-मार्च में दक्षिण अफ्रीका के भारत दौरे पर खेले गए मैच को फिक्स करने का षड्यंत्र रचा था। संजीव चावला दिल्ली में जन्मा एक कारोबारी है, जो 1996 में बिजनेस वीजा पर ब्रिटेन चला गया था, लेकिन उसका अक्सर भारत आना-जाना लगा रहता था।
पुलिस हिरासत और न्यायिक हिरासत में अंतर
- पुलिस हिरासत में आरोपी को पुलिस लॉकअप में रखा जाता है। न्यायिक हिरासत में कोर्ट की कस्टडी यानी जेल में रखा जाता है। किसी संज्ञेय अपराध के लिए एफआईआर दर्ज करने के बाद पुलिस किसी आरोपी को गिरफ्तार कर सकती है। गिरफ्तारी इस उद्देश्य से की जाती है कि साक्ष्य के साथ छेड़छाड़ न हो या गवाहों को धमकाया नहीं जाए।
- पुलिस हिरासत की अवधि 24 घंटे की होती है। पुलिस को 24 घंटे के भीतर आरोपी को किसी कोर्ट के समक्ष पेश करना होता है। उसके बाद कोर्ट की अनुमति मिलने पर ही पुलिस आरोपी को अपनी हिरासत में रख सकती है।
- न्यायिक हिरासत की कोई तय समयसीमा नहीं होती। जब तक मामला चलता रहे या संदिग्ध जमानत पर रिहा न हो जाए, न्यायिक हिरासत चलती रहती है।
- पुलिस अगर किसी के खिलाफ चार्जशीट दाखिल कर देती है तब फिर उसे वह अपनी हिरासत में नहीं रख सकती है। यदि किसी आरोपी की जमानत खारिज हो जाती है तो भी पुलिस उसको अपनी हिरासत में नहीं रख सकती है।