मेजर (सेवानिवृत्त) देवेंद्र पाल सिंह मजबूत इरादों के धनी हैं। वर्ष 2011 में वे देश के पहले ‘ब्लेड रनर’ बने थे। अब तक वे 26 से ज्यादा ‘हाफ मैराथन’ में भाग ले चुके हैं। हाल ही में उन्होंने अपने 42वें जन्मदिन को यादगार बनाने के लिए 42 किलोमीटर की ‘फुल मैराथन’ में भाग लिया। इनमें तीन बार तो उन्होंने ऊंचाई पर हुई दौड़ में भाग लिया है। वे सांगला, लेह और करगिल में हुई मैराथन में दौड़ चुके हैं।

वे चार बार लिम्का बुक आॅफ आॅल रिकॉर्ड्स में अपना नाम दर्ज करा चुके हैं। 2016 में लिम्का बुक आॅफ आॅल रिकॉर्ड्स ने उन्हें साल का व्यक्तित्व घोषित किया था। इसके साथ ही साल 2018 में भारत सरकार ने उन्हें राष्ट्रीय प्रेरक व्यक्तित्व (नेशनल रोल मॉडल) का सम्मान दिया था।

भारतीय सेना में काम करते हुए 22 साल पहले करगिल की लड़ाई में वे गंभीर रूप से घायल हो गए। उनका एक पैर बुरी तरह जख्मी हो चुका था, शरीर पर 40 से ज्यादा घाव थे। उन्हें अखनूर के एक अस्पताल में ले जाया गया। एक साल तक वे अस्पताल में भर्ती रहे, जहरं उनका लगातार इलाज होता रहा। इस दौरान एक के बाद एक कई सर्जरी हुईं। दाहिना पैर पहले ही काट दिया गया था। उनकी आंत के कुछ हिस्से भी अलग कर दिए गए। उनकी सुनने की ताकत भी कमजोर पड़ गई। शरीर में 50 घाव लगे थे।

इतना कुछ होने के बाद वे न सिर्फ उठ खड़े हुए बल्कि देश के पहले ‘ब्लेड रनर’ बने। 10 साल की मेहनत और लगातार संघर्ष के बाद मेजर डीपी सिंह ने खुद को मैराथन के लिए तैयार किया। 10 साल की मेहनत और लगातार संघर्ष के बाद मेजर सिंह ने खुद को मैराथन के लिए तैयार किया। वे कहते हैं कि यह मेरे लिए पुनर्जन्म ही था। मजबूत इरादों वाले मेजर सिंह भारतीय सेना के ‘ब्रांड एंबेसडर ईयर आॅफ द डिसेबल्ड 2018’ भी रह चुके हैं। सौ फीसद दिव्यांग घोषित किए जा चुके हैं।

उन्होंने अंगदान और अस्थि मज्जा दान का संकल्प ले रखा है। मेजर सिंह ने पिछले साल नासिक में पहली बार सफल स्काई डाइविंग की। ऐसा करने वाले वे एशिया के पहले दिव्यांग हैं। वर्ष 2011 में उन्होंने एक संस्था बनाई, दिव्यांग लोगों में जज्बा जगाती है। अभी करीब 2000 लोग इससे जुड़े हैं। मेजर सिंह के जीवन पर एक किताब लिखी गई है, जिसका नाम ‘ग्रीट द मेजर स्टोरी’ है। वे इसके सह-लेखक हैं।