हरियाणा की मिट्टी से निकली 400 मीटर की नई उड़ान मनीषा कुमारी की जिंदगी ट्रैक पर जितनी तेज भागती है, घर की हालत उतनी ही मुश्किलों से घिरी है। मनीषा ने खेलो इंडिया यूनिवर्सिटी गेम्स 2025 में गोल्ड मेडल जीतकर प्रदेश और यूनिवर्सिटी का नाम रोशन किया, लेकिन उनके घर की आर्थिक स्थिति जीत की चमक से बिल्कुल उलट है।
पिता वर्षों से लापता, 80 साल के दादा ही सहारा
पिता वर्षों पहले नशे की गिरफ्त में डूबकर घर छोड़ गए, तब से उनका कोई पता नहीं। 80 साल के बुज़ुर्ग दादा ही पूरे घर का सहारा हैं। अब स्थिति यह है कि अगर मनीषा को जल्द कोई स्पॉन्सर नहीं मिला तो इस सुनहरी दौड़ पर रोक भी लग सकती है। गोल्ड मेडल के बाद भी उनकी असली जंग जारी है, सपनों को बचाने की जंग।
‘ऑल इंडिया यूनिवर्सिटी में पर्सनल बेस्ट करूंगी’
खेलो इंडिया यूनिवर्सिटी गेम्स 2025 में क्या लक्ष्य हासिल कर पाईं के सवाल पर मनीषा ने जनसत्ता को बताया, ‘…नहीं जो गोल बनाकर आई थी, उतना तो नहीं कर पाई। अपना पर्सनल बेस्ट नहीं कर पाई, लेकिन अभी आगे ऑल इंडिया यूनिवर्सिटी है। उसमें अपना पर्सनल बेस्ट करूंगी। आगे भी और प्रतियोगिताएं हैं। कोशिश करूंगी कि अपने देश के लिए भी पदक जीतूं।’
मनीषा ने कहा, ‘मेरे दादा-दादी ही हूं जिन्होंने मुझे सपोर्ट किया है। मेरे पापा नहीं हैं। हम पांच भाई बहन हैं। बाकी चार मेरे से छोटे हैं। मेरा भाई मुझसे छोटा है। मुझसे छोटी मेरी तीन बहने हैं। मेरी दादा की उम्र लगभग 80 साल की हो चुकी है। उनको दो बार लकवे का अटैक आ चुका है।’
किसान दादा ही उठाते हैं पूरा खर्च
मनीषा ने बताया, ‘जब मैंने उन्हें कॉल करके अपने गोल्ड मेडल जीतने के बारे में बताया तब भी वह खेत में ही थे। काम कर रहे थे। मतलब आज मैं जो भी हूं सिर्फ उनके वजह की हूं। गांव में लोग यह भी बोल देते थे कि भई क्या करेगा, क्यों करवा रहा इनको गेम? रेस्ट कर, तेरी कितनी उम्र हो गई है, लेकिन फिर भी उन्होंने कहीं पर भी मुझे किसी भी चीज की कमी नहीं महसूस होने दी।’
सोमवीर सर को सबसे ज्यादा थैंक्यू
मनीषा ने बताया, ‘अगर मैं यह बोलती हूं कि मेरे को 30 हजार के जूते चाहिए तो मेर लिए वह 30 हजार के जूते लेकर देंगे। वह मुझे यह भी नहीं पता लगने देते कि पैसों का इंतजाम कहां से हुआ। …और मेरे कोच सोमवीर सर। मैं सबसे ज्यादा थैंक्यू तो उनका करूंगी, क्योंकि उन्होंने मेरे ऊपर बहुत विश्वास दिखाया, टाइम टू टाइम ट्रेनिंग। आज जो कुछ भी हूं तो मैं अपने दादा और सोमवीर सर की वजह से हूं।’
पापा कब से नहीं हैं के सवाल पर मनीषा ने बताया, दरअसल, मेरे पापा स्मोकिंग करते हैं, ‘मुझे नहीं पता मेरे पापा कहां हैं। मैं नौवीं कक्षा में थी तब से वह घर छोड़कर चले गए। इसके बाद से मुझे नहीं पता कि मेरे पापा कहां हैं। अभी मेरा ग्रेजुएशन पूरा हो गया और मैं अब बीपीएड कर रही हूं। मुझे नहीं पता कि वह जिंदा हैं या मर गए हैं। मेरे लिए तो मेरे दादा ही मेरे पापा हैं। सबकुछ वही हैं। मम्मी गृहणी हैं।’
छोटा भाई भी है खिलाड़ी
मनीषा का छोटा भी खिलाड़ी है। वह अभी कक्षा सात का छात्र है और उसने हाल ही में सब जूनियर स्तर पर फेंसिंग (तलवारबाजी) में सिलवर मेडल जीता है। मनीषा ने बताया, ‘मेरे दादाजी का सपना है कि मैं देश के लिए पदक जीतूं, लेकिन अब आर्थिक तंगी आड़े आने लगी है। मेरी जॉब भी नहीं लगी है। चूंकि मुझे अभी कहीं से वित्तीय मदद नहीं मिल पा रही है।’
आर्थिक तंगी के कारण क्या प्रदर्शन प्रभावित हुआ है, के सवाल पर मनीषा ने कहा, ‘इसका असर मेरी परफॉर्मेंस पर भी पड़ रहा है। हालांकि, उनकी (दादाजी) की ओर से देखा जाए तो वह कहीं से भी कमी नहीं छोड़ रहे हैं, लेकिन मुझे भी तो पता है कि कहीं न कहीं…। यदि मुझे थोड़ा सपोर्ट मिले… हमारे स्पाइक्स वगैरह बहुत महंगे होते हैं, 25-30 हजार से कम के आते ही नहीं हैं।’
हरियाणा सरकार से अब तक नहीं मिली मदद
हरियाणा सरकार से क्या कोई मदद मिलती है, के सवाल पर मनीषा ने बताया, ‘पिछली बार उत्तराखंड में राष्ट्रीय खेल हुए थे। तब मैंने वहां ब्रॉन्ज मेडल जीता था। तब राज्य सरकार ने कहा था कि पैसे देंगे। हमारे डॉक्यूमेंट्स भी जमा करा लिए हैं, लेकिन अब तक कोई वित्तीय मदद नहीं मिली है।’
मनीषा ने बताया, ‘अभी एशियन गेम्स हैं और 2030 में कॉमनवेल्थ गेम्स हैं। अगर वे (राज्य सरकार) साथ के साथ में पैसे डालते रहे या सपोर्ट करते रहे हम जैसे प्लेयर्स यह सोच सकते हैं। जैसे मेरे दादा का सपना है कि मैं देश के लिए मेडल लेकर आऊं, लेकिन मैं सोचती हूं कि जॉब लग जाए तो मैं उनको सपोर्ट करूं।’
कोच की ट्रेनिंग ने बचाई उम्मीद
कोच से मिलने वाले समर्थन के बारे में मनीषा ने कहा, ‘कोच सोमवीर सर बहुत साथ देते हैं। मैंने और कोच भी देखें हैं, लेकिन सोमवीर सर मेरे बेस्ट कोच हैं। भगवान जैसे कोच हैं। मतलब अपनी बेटी बनाकर रखते हैं। उनके पास बहुत दूर-दूर से बच्चे आए हुए हैं, लेकिन वे किसी से कोई फीस नहीं लेते हैं। आज तक उन्होंने किसी भी बच्चे से फीस नहीं ली। वह फ्री ट्रेनिंग देते हैं।’
