टोक्यो ओलंपिक खेलों से पहले जिन खिलाड़ियों से मेडल की सबसे ज्यादा उम्मीद थी उनमें मनु भाकर का नाम शामिल था साल 2021 में ओलंपिक खेलों से पहले मनु भाकर अपने कोच जसपाल राणा के साथ हुए बड़े विवाद के बाद उनसे अलग हो गई। हालांकि अब दो साल बाद दोनों पिछला सबकुछ भुलाकर साथ आ गए हैं और इस बार तैयारी ओलंपिक मेडल की है।

मेडल के लिए साथ आए भाकर और जसपाल राणा

राणा और भाकर के बीच विवाद काफी सुर्खियों में रहा था। ऐसा लग नहीं रहा था कि दोनों कभी फिर साथ आएंगे। हालांकि अब चीजें बदल गई हैं। जसपाल राणा से फिर से साथ आने की वजह पूछी गई तो उन्होंने केवल एक ही जवाब दिया कि वह और मनु देश को मेडल दिलाने के लिए के लिए साथ आए हैं।

राणा ने बताया कि वह मनु के मानसिक पक्ष पर काम करेंगे। जनसत्ता.कॉम से बातचीत में उन्होंने कहा, ‘दो साल बहुत लंबे समय होता है। मैं नहीं जानता की मनु ने अपने खेल में क्या बदला है या ओरों ने उसके खेल में क्या बदलाव किया है। यह चीजें तो आपको देखकर पता चल जाती हैं हालांकि टेक्निकल चीजें और मानिसक चीजों में सुधार करने में समय लगता है।

मनु का वर्कलोड मैनेज करेंगे जसपाल राणा

उन्होंने आगे कहा, ‘कोई भी शूटर कभी प्रतियोगिता में हिस्सा लेना नहीं भूलता न ही 10 का स्कोर करना भूलता है। यह सब बस आखिर के दिनों में मानसिक तौर पर मजबूत होने पर निर्भर करता है। अगर वह वापस आ जाता है तो हम जल्दी ट्रैक पर वापस आ जाएंगे। मनु के अंदर पहले एक चैंपियन है मेरा काम बस उसे बाहर लाना है।’ एशियन गेम्स मेडलिस्ट ने आगे कहा, ‘हम किसी छोटे लक्ष्य पर काम नहीं कर रहे हैं। यह एक लंबा सफर है। मैं कोई जादूगर नहीं हूं कि एक दम से सब ठीक हो जाए। हमारी कोशिश करेंगे कि वह ज्यादा से ज्यादा टूर्नामेंट में हिस्सा लें लेकिन साथ ही यह भी ध्यान रखना होगा कि कहीं कुछ ज्यादा न हो जाए। वर्कलोड मैनेजमेंट के लिए हम फेडरेशन से भी बात करेंगे।’

दो साल से शूटिंग की दुनिया से दूर हैं राणा

राणा को इस बात का अंदाजा नहीं है कि मनु के साथ बीते दो सालों में क्या हुआ है क्योंकि वह दिल्ली और शूटिंग की दुनिया से दूर अपनी अलग दुनिया बसा रहे थे। राणा ने बताया, ‘मैं टीवी नहीं देखता न ही न्यूज पढ़ता हूं। मैं शूटिंग की दुनिया से दूर था। मैं किसी भी तरह इसमें शामिल नहीं रहा। मैं पहले नेशनल कोच था फिर मध्य प्रदेश सरकार के साथ जुड़ा रहा लेकिन वह करार भी खत्म हो गया था। मेरे पास दिल्ली में रहने का कोई कारण नहीं था। इसलिए मैं देहरादून आ गया। यहां मैंने अपनी रेंज बनाई। मैं हमेशा से ऊंचाई पर रेंज बनाना चाहता था। मैंने इस दौरान अपनी अकेडमी पर काम करना शुरू किया।’

टोक्यो ओलंपिक में मेडल न लाने की यह है वजह

राणा ने ओलंपिक में भारतीय निशानेबाजों के निराशाजनक प्रदर्शन पर भी बात की। उन्होंने कहा, ‘सबसे अहम होता है कि खिलाड़ी सही समय पर पीक करे। यह पीक एक-दो महीने के लिए नहीं आता बल्कि 10-15 दिन का होता है। अगर आप गलत समय पर पीक करते हैं तो वह किसी काम का नहीं है। टोक्यो ओलंपिक में यही हुआ। हमने जो तैयारी की उसके लिहाज से टोक्यो ओलंपिक के दौरान खिलाड़ी अपने पीक पर होते लेकिन खेल आगे बढ़ गए और हम मौका चूक गए। मैं किसी पर आरोप नहीं लगाना चाहता लेकिन हम जानते हैं टोक्यो में क्या हुआ। इसलिए यह जरूरी है कि हम साथ में काम कर रहे हैं।’