पहलवान विनेश फोगट, बजरंग पूनिया और अन्य ने गुरुवार 6 मार्च 2025 को भारतीय कुश्ती महासंघ (डब्ल्यूएफआई) में ‘प्रमुख व्यक्तियों’ की नियुक्ति के दिल्ली हाई कोर्ट के सुझाव को ठुकरा दिया। अदालत ने यह प्रस्ताव इसलिए दिया था ताकि अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेने के लिए पहलवानों का चयन और ट्रायल बिना किसी बाधा के हो सके।
मुख्य न्यायाधीश डीके उपाध्याय और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की खंडपीठ पहलवान बजरंग पूनिया, विनेश फोगाट, साक्षी मलिक और उनके पति सत्यव्रत कादियान की याचिका पर पारित एकल न्यायाधीश के आदेश के खिलाफ डब्ल्यूएफआई की अपील पर सुनवाई कर रही है।
पिछले साल 16 अगस्त को दिए गए आदेश में दिल्ली हाई कोर्ट की एकल पीठ के न्यायाधीश न्यायमूर्ति सचिन दत्ता ने डब्ल्यूएफआई (WFI) के संचालन की देखरेख और निगरानी के लिए भारतीय ओलंपिक संघ (आईओए) द्वारा नियुक्त तदर्थ समिति के पुनर्गठन का आदेश दिया था। हालांकि, 6 महीने से अधिक समय बीतने के बाद भी समिति का पुनर्गठन नहीं किया गया है।
पीठ ने गुरुवार 6 मार्च 2025 को कहा कि अंतरराष्ट्रीय स्पर्धाओं के लिए पहलवानों का चयन करने वाली सक्षम संस्था के अभाव में स्थिति इससे ज्यादा ‘दुखदायी’ नहीं हो सकती। विश्व कुश्ती संस्था यूनाइटेड वर्ल्ड रेस्लिंग (यूडब्ल्यूडब्ल्यू) अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं के लिए केवल स्वयं से मान्यता प्राप्त भारतीय कुश्ती महासंघ (डब्ल्यूएफआई) जैसी राष्ट्रीय संस्था द्वारा चुने गए खिलाड़ियों को ही स्वीकार करती है।
हालांकि, पीठ ने पाया कि ना तो भारतीय ओलंपिक संघ (आईओए) ने महासंघ के मामलों के संचालन के लिए तदर्थ समिति को बहाल किया और ना ही केंद्र ने पिछले साल के उच्च न्यायालय के एकल न्यायाधीश के आदेश के अनुसार महासंघ के निलंबन को जारी रखने को लेकर कोई निर्णय लिया।
पीठ ने कहा, ‘तदर्थ समिति की बहाली ना होने तथा आज की तारीख में निलंबन आदेश के अस्तित्व में होने के कारण कोई सक्षम संस्था नहीं है, जिसे टीम के चयन का कार्य सौंपा जा सके जिससे कि अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में पहलवानों की भागीदारी सुनिश्चित हो सके। जहां तक खेल और खिलाड़ियों के हित का सवाल है, इससे अधिक दुखद स्थिति नहीं हो सकती।’
गतिरोध को देखते हुए दिल्ली हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डीके उपाध्याय ने मौखिक रूप से कहा, ‘एक प्रस्ताव है…चूंकि आज की तारीख तक तदर्थ समिति का गठन नहीं किया गया है…आज की तारीख तक। हम जो कर सकते हैं, वह यह है कि हम उन्हें (डब्ल्यूएफआई) चयन के साथ आगे बढ़ने के लिए कह सकते हैं और एकल न्यायाधीश के आदेश पर रोक लगाई जा सकती है, लेकिन अगर कुछ प्रमुख व्यक्तियों का चयन किया जाता है (WFI के साथ ट्रायल और चयन पर बैठने के लिए)… मान लीजिए कि तदर्थ समिति को विश्व निकाय द्वारा मान्यता नहीं दी जाती है, तब क्या होगा? यह बहुत शर्मनाक होगा…यह राष्ट्र के लिए शर्मिंदगी की बात होगी।’
एकल न्यायाधीश ने 16 अगस्त 2024 को अपने अंतरिम आदेश में डब्ल्यूएफआई के संचालन के लिए आईओए की तदर्थ समिति के अधिकार को बहाल करते हुए कहा था कि जब तक खेल मंत्रालय के निलंबन आदेश को वापस नहीं लिया जाता तब तक महासंघ के मामलों का संचालन तदर्थ समिति द्वारा किया जाना आवश्यक है। डब्ल्यूएफआई के वकील ने तर्क दिया कि एकल न्यायाधीश के आदेश के परिणामस्वरूप भारतीय पहलवान कई अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में हिस्सा नहीं ले पाए। साथ ही इस महीने के अंत में होने वाली एशियाई चैंपियनशिप में हिस्सा लेने की उनकी संभावनाएं भी कम हो गई हैं, क्योंकि नाम भेजने की समय सीमा 4 मार्च को समाप्त हो गई थी। अब यूडब्ल्यूडब्ल्यू से समय सीमा में विस्तार की मांग की गई है।
पीठ ने कहा, ‘हम केवल भागीदारी सुनिश्चित करना चाहते हैं। 4 मार्च बीत चुका है। 25 (मार्च) को टूर्नामेंट है। चयन में भी समय लगेगा। समाधान निकालें।’ इसके बाद अदालत ने डब्ल्यूएफआई की अपील पर सुनवाई 11 मार्च तक के लिए स्थगित कर दी, क्योंकि दोनों पक्ष इस मुद्दे पर आम सहमति बनाने में विफल रहे। केंद्र के वकील ने कहा कि अधिकारी 10 मार्च तक यह तय कर लेंगे कि निलंबन जारी रखना है या नहीं।
विनेश फोगाट, साक्षी मलिक और अन्य की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट राहुल मेहरा को संबोधित करते हुए मुख्य न्यायाधीश उपाध्याय ने कहा, ‘आपकी आशंका क्या है? आपकी आशंका यह है कि टीम का चयन करते समय वे अपने व्यवहार में निष्पक्ष नहीं होंगे… बड़ी आशंका यह है कि उन्होंने खेल संहिता का पालन नहीं किया है… हम दो अंतरराष्ट्रीय स्तर के प्रसिद्ध खिलाड़ियों को नामित करेंगे… अन्यथा हम ऐसी स्थिति का सामना करेंगे कि हमारे सभी प्रयासों के बावजूद हम हिस्सा नहीं ले पाएंगे।’