भारतीय महिला क्रिकेट टीम की पूर्व कप्तान डायना एडुल्जी इस बात से चिंतित हैं कि मौजूदा टीम उम्मीद के मुताबिक प्रदर्शन नहीं कर पा रही है, जबकि भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) उन्हें हरसंभव मदद कर रहा है। इंडियन एक्सप्रेस के लिए लिखे कॉलम में डायना एडुल्जी ने यह भी माना कि भारतीय महिला टीम को जल्द से जल्द एक स्थायी कोच मिलना चाहिए।

डायना एडुल्जी ने लिखा, ‘भारतीय बोर्ड को यह सुनिश्चित करना होगा कि महिला टीम को स्थायी कोचिंग स्टाफ मिले। इसमें तत्काल हस्तक्षेप की जरूरत है। तदर्थ नियुक्तियां बंद होनी चाहिए। छह महीने से कोई कोच नहीं है। हमें एशियाई खेलों से पहले इस समस्या का समाधान करना होगा। सपोर्ट स्टाफ की नियुक्ति में इतनी देरी क्यों हो रही है? एड-हॉक कोच (तदर्थ कोच) किसी टीम को नहीं समझ सकते। उन्हें खिलाड़ियों की चिंता नहीं है, क्योंकि जानते हैं कि वे थोड़े समय के लिए हैं। हमें पूर्णकालिक सहयोगी स्टाफ की जरूरत है, ताकि ये लड़कियां गंभीर हों।’

बीसीसीआई कुछ सख्त फैसले ले

डायना एडुल्जी ने आगे लिखा, ‘साथ ही अब समय आ गया है कि बीसीसीआई कुछ सख्त फैसले ले। अभी कोई जवाबदेही नहीं है। खिलाड़ियों को यह समझने की जरूरत है कि अगर वे सीमा लांघेंगी तो भारतीय बोर्ड एक्शन लेगा। बांग्लादेश के खिलाफ सीरीज के दौरान हमने जेमिमा रोड्रिग्स और शैफाली वर्मा को गेंदबाजी करते देखा, गेंदबाज कहां हैं? सौभाग्य से, उन्हें विकेट मिले, लेकिन टीम में उन्हें गेंदबाजी के कारण नहीं चुना गया है। चीजों को देखकर ऐसा लग रहा है कि शैफाली रन नहीं बना रही हैं इसलिए टीम मैनेजमेंट उनसे गेंदबाजी कराकर उनकी जगह पक्की करने की कोशिश कर रहा है।’

टीम में कुछ गलत हो रहा है?

पेसर्स कहां हैं? चयनकर्ताओं ने शिखा पांडे को चुना, लेकिन उन्हें बाहर कर दिया गया। पूजा वस्त्राकर को एशियाई खेलों के लिए रिजर्व में रखा गया है। क्या वहां कुछ गलत हो रहा है? उम्मीद है कि बीसीसीआई टीम के साथ बैठक करेगी और उनसे कुछ कड़े सवाल पूछेगी। उन्हें जवाब देना होगा कि क्या गलत हुआ और क्यों। हर किसी के लिए जवाबदेही तय करने की भी जरूरत है। चाहे वह खिलाड़ी हो या चयनकर्ता या फिर कोच।

मेरी राय में टीम के पास एक उचित फिटनेस रोडमैप भी होना चाहिए। वे कठोर आर्मी ट्रेनिंग के लिए भी जा सकती हैं। ऐसी रिपोर्ट आई है कि चयनकर्ताओं ने ऋचा घोष को नहीं चुना क्योंकि वह फिटनेस टेस्ट में फेल हो गईं, लेकिन इस टीम को देखने के बाद लगता है कि और भी खिलाड़ी हैं जो टेस्ट में फेल हो गए होंगे, लेकिन वे अब भी टीम में हैं।

बीसीसीआई उन्हें उच्च वेतन से लेकर सुविधाएं तक सब कुछ दे रहा है। अब समय आ गया है कि उनके पास एक मनोवैज्ञानिक हो जो यह समझे कि जब भी दबाव की स्थिति होती है तो ये लड़कियां क्यों दम तोड़ देती हैं। क्या कारण है कि हम बांग्लादेश जैसी टीम के खिलाफ अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाए? अगर हम इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया जैसी ‘बड़ी’ टीमों से खेलेंगे तब कहानी क्या होगी?