मिहिर वसवडा। अगर खेल प्रशासन विधेयक का मसौदा कानून बन जाता है, तो भारत के एथलीट और अधिकारी अब अपने खेल विवादों को देश की अदालतों में नहीं ले जा सकेंगे। इसके बजाय उन्हें पहले प्रस्तावित अपीलीय खेल न्यायाधिकरण का दरवाजा खटखटाना होगा। अगर वे फैसले से असंतुष्ट हैं, तब ही सर्वोच्च न्यायालय का रुख कर सकते हैं। प्रस्तावित अपीलीय खेल न्यायाधिकरण को अंतरराष्ट्रीय खेल पंचाट न्यायालय (CAS) की तर्ज पर बनाया गया है। यह जानकारी द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट में दी गई है।

गुरुवार 10 अक्टूबर 2024 को खेल मंत्रालय की ओर से जारी किए गए राष्ट्रीय खेल प्रशासन विधेयक, 2024 के मसौदे में यह अनुशंसा भी शामिल है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि इसके अलावा, मसौदा विधेयक 25 साल से अधिक आयु के किसी भी भारतीय नागरिक के लिए महासंघ का चुनाव लड़ने का मार्ग प्रशस्त कर सकता है, बशर्ते एक प्रस्तावक और एक समर्थक हो। वर्तमान में पदाधिकारी बनने के लिए इच्छुक उम्मीदवारों को या तो महासंघ की कार्यकारी परिषद में या किसी सदस्य संघ के साथ काम करना होता है।

यह सुझाव दिया गया है कि खेल संघों से संबंधित सभी प्रशासनिक मुद्दों को मुख्य रूप से देखने के लिए भारतीय खेल नियामक बोर्ड (SRBI) का गठन किया जाए। अगर इसे लागू किया जाता है, तो इसके परिणामस्वरूप खेल मंत्रालय के भीतर शक्तियों का पृथक्करण होगा, जो अभी भारतीय खेल से संबंधित सभी मामलों (फंडिंग से लेकर शासन तक) के लिए जिम्मेदार है और नियमों को सख्ती से लागू नहीं करने के लिए इसकी आलोचना होती है।

इस बीच, प्रस्तावित न्यायाधिकरण का गठन यह सुनिश्चित करने के लिए किया जाएगा कि भविष्य में अदालतों पर खेल मामलों का बोझ न पड़े। पिछले कुछ वर्षों में यह एक तरह की रस्म बन गई है कि हर मल्टी-डिसप्लिन स्पोर्ट या विश्व चैंपियनशिप से पहले, पीड़ित एथलीट कथित दोषपूर्ण चयन प्रक्रिया को दोषी ठहराते हुए उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाते हैं। अदालतें शासन से संबंधित मामलों की भी सुनवाई कर रही हैं।

अकेले अक्टूबर में, छह राष्ट्रीय महासंघों के प्रशासन संबंधित मुद्दों के कारण दिल्ली हाई कोर्ट के सामने पेश होने की संभावना है। ऐसे में यदि संसद मसौदा विधेयक को मंजूरी दे देती है तो यह अतीत की बात हो सकती है। प्रस्तावित विधेयक की धारा 29 के अनुसार, सभी लंबित अदालती मामले सरकार द्वारा निर्दिष्ट तिथि पर न्यायाधिकरण को हस्तांतरित किए जाएंगे। मसौदे में कहा गया है, उप-धारा (1) के तहत अपीलीय खेल न्यायाधिकरण को हस्तांतरित मामलों की सुनवाई और निर्णय उस चरण से किया जा सकता है जिस पर ऐसा विवाद न्यायालय या प्राधिकरण में लंबित था, जैसा भी मामला हो या यदि वह उचित समझे तो मामले की नए सिरे से सुनवाई की जा सकती है।

धारा 30 में यह भी कहा गया है कि किसी भी सिविल न्यायालय को किसी भी मामले के संबंध में किसी भी मुकदमे या कार्यवाही पर विचार करने का अधिकार नहीं होगा, जिस पर अपीलीय खेल न्यायाधिकरण को अधिकार दिया गया है… और इस विधेयक द्वारा या इसके तहत प्रदत्त किसी भी शक्ति के अनुसरण में की गई या की जाने वाली किसी भी कार्रवाई के संबंध में किसी भी न्यायालय या अन्य प्राधिकरण द्वारा कोई निषेधाज्ञा नहीं दी जाएगी।

हालांकि, अपीलकर्ता फैसले के 30 दिन के भीतर न्यायाधिकरण के फैसले के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में अपील कर सकता है। मसौदे में कहा गया है कि न्यायाधिकरण और उसकी पीठों की संरचना केंद्र सरकार द्वारा तय की जाएगी। इसमें कहा गया है कि न्यायाधिकरण का चयन सरकार द्वारा एक चयन समिति की सिफारिशों के आधार पर किया जाएगा, जिसमें ‘सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश, खेल सचिव और सचिव (विधि) या उनके/उनकी नामित व्यक्ति’ शामिल होंगे।