केवल छह महीने पहले तक ‘स्ट्राइक रेट’ के बहाने चेतेश्वर पुजारा को भारतीय टेस्ट टीम की अंतिम एकादश में जगह नहीं मिली थी। पर आक्रामकता के मौजूदा दौर में टेस्ट क्रिकेट के वास्तविक विद्यार्थी पुजारा ने अपनी शैली पर अडिग रहकर ऐसा कमाल किया कि अब युवा क्रिकेटरों को उनसे सीख लेने की सलाह दी जा रही है। उन्हें ‘भारतीय दीवार’ राहुल द्रविड़ का उत्तराधिकारी तो अक्टूबर 2010 में उसी दिन से कहा जाने लगा था, जब उन्होंने अपने पदार्पण टेस्ट मैच में आस्ट्रेलिया के खिलाफ दूसरी पारी में 72 रन की प्रवाहमय पारी खेली थी। समय गुजरने के साथ भारतीय टीम प्रबंधन को पुजारा का सबसे मजबूत पक्ष यानी क्रीज पर अंगद की तरह पांव जमाकर रक्षात्मक बल्लेबाजी करना ही सबसे कमजोर लगने लगा था।
25 जनवरी 1988 को राजकोट में जन्में पुजारा ने मजबूत पक्ष कमजोर नहीं होने दिया। पूर्व कोच अनिल कुंबले के शब्द उनके कानों में गूंजते रहे कि ‘स्ट्राइक रेट गेंदबाजों के लिए होता है, टेस्ट मैचों में बल्लेबाजों के लिये नहीं।’ विकेट बचाए रखकर पारी संवारना और गेंद को उसकी खूबी के अनुसार खेलना पुजारा का मूलमंत्र है, जिसे अब आस्ट्रेलियाई क्रिकेटर भी आत्मसात करने के लिए लालयित हैं। लगता है समय बदल गया है। टीम प्रबंधन के अहम अंग कप्तान विराट कोहली की भी समझ में आ गया है कि पुजारा की गेंदबाजों को थका देने वाली पारियों के बिना वह टेस्ट मैच नहीं जीत सकते। कम से आस्ट्रेलिया में तो यही नजर आ रहा है, जहां पुजारा अभी तक चार मैचों की सात पारियों में 74.42 की औसत से 521 रन बना चुके हैं। इसमें तीन शतक शामिल हैं।
मैच जीतने के लिए 20 विकेट लेने जरूरी हैं, लेकिन उतना ही जरूरी आपका अच्छा खासा स्कोर होना भी है। इंग्लैंड में बल्लेबाज नहीं चले थे तो भारतीय टीम हार गयी थी लेकिन आस्ट्रेलिया में एक पुजारा ने अंतर पैदा कर दिया। तभी तो केविन पीटरसन ने कहा, ‘‘चेतेश्वर पुजारा जो टेस्ट क्रिकेट में कर रहा है, उसके लिए ही आप एक क्रिकेटर के रूप में सम्मान हासिल करते हो। उनकी पारियां कौशल से भरी टी-20 पारियों से कहीं बेहतर है। युवा खिलाड़ियों, देखो, सीखो और सुनो।’’
जनवरी 2001 में केवल 12 साल की उम्र में पश्चिमी क्षेत्र की तरफ से अंडर-14 टूर्नामेंट में 516 गेंदों पर नाबाद 306 रन बनाने वाले चेतेश्वर को उनके पिता और पूर्व रणजी रणजी खिलाड़ी अरविंद पुजारा ने बचपन से ही यह सीख दी थी कि लंबी अवधि के मैचों में गेंद छोड़ना और रक्षात्मक बल्लेबाजी करना भी एक कला है। आईपीएल जैसे धनाढ्य लीग से लगातार दुत्कार दिए जाने के बावजूद पुजारा ने पिता की सीख पर ही अमल किया।
पिता की सीख के दम पर इंग्लैंड के खिलाफ अहमदाबाद और आस्ट्रेलिया के खिलाफ हैदराबाद और रांची में बेहतरीन दोहरे शतक उनके बल्ले से निकलते हैं। रांची की उनकी धीमी पारी को भला कौन भुला सकता है, जब उन्होंने भारत को हार से बचाया था या फिर श्रीलंका में सलामी बल्लेबाज के रूप में खेली गयी नाबाद 145 रन की पारी जब उन्हें एक ओपनर के चोटिल होने पर अंतिम एकादश में जगह मिली थी। पर पुजारा इसी के लिए बने हैं।