विनायक मोहनरंगन। आगरा में ताजमहल से करीब नौ किलोमीटर दूर शाहगंज में अवधपुरी कॉलोनी स्थित है। जैसे ही आप इस कॉलोनी के पास पहुंचेंगे वहां गेट के ऊपर आपको लिखा मिलेगा, “अर्जुन अवॉर्डी क्रिकेटर दीप्ति शर्मा मार्ग: सर्वजन विकास समिति अवधपुरी आपका हार्दिक स्वागत करती है।”

यहीं पर भारत की दिग्गज ऑलराउंडर दीप्ति शर्मा पली-बढ़ी हैं, जिन्होंने भारत को रविवार (2 नवंबर) को विश्व चैंपियन बनने में अहम भूमिका निभाई और प्लेयर ऑफ द टूर्नामेंट रहीं। दीप्ति का भारतीय टीम तक पहुंचने का सफर आसान नहीं रहा। उनके परिवार को रिश्तेदारों और पड़ोसियों से खूब ताने मिलते थे।

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दीप्ति के भाई सुमित ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया, “यहीं हम सब बड़े हुए हैं। लेकिन दीप्ति के अर्जुन अवॉर्ड जीतने के बाद, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा था कि हमें घर के आस-पास की सड़कें ठीक करनी हैं, पहले यह इतनी अच्छी नहीं थीं। यह दीप्ति शर्मा मार्ग बन गया। फिर कॉलोनी ने तय किया कि यह हमारे लिए बहुत सम्मान की बात है, इसलिए हम इस कॉलोनी का नाम दीप्ति के नाम पर रखेंगे।”

सुमित शर्मा बताते हैं, “यह अब हमारे लिए गर्व की बात है। यहां के लोग अब इसे एक लैंडमार्क की तरह इस्तेमाल करते हैं। कहते हैं आप कहां रहते हैं? हम अवधपुरी में रहते हैं। जहां दीप्ति रहती हैं? ओह, हमारा घर उनके घर से चौथा घर है, वगैरह-वगैरह। यह सबके लिए एक लैंडमार्क है।”

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थ्रो से शुरू हुआ दीप्ति के क्रिकेटर बनने का सफर

दीप्ति ने गेंद और बल्ले के अलावा फील्डिंग से भी भारत के चैंपियन बनने में अहम भूमिका निभाई। पाकिस्तान के खिलाफ मैच में उन्होंने मुनीबा अली को रन आउट किया था। यह रन आउट काफी चर्चा में रहा था। इत्तेफाक से, दीप्ति का क्रिकेट का सफर ऐसे ही एक थ्रो से शुरू हुआ। एक दिन जब वह अपने भाई को ट्रेनिंग करते हुए देख रही थीं तो जैसे ही बॉल उनकी तरफ आई, उन्होंने उसे उठाया और थ्रो किया। इस पर तुरंत भारत की पूर्व बैट्समैन हेमलता काला का ध्यान गया, जो एकलव्य स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स में ट्रेनिंग कर रही थीं।

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दीप्ति कब आ रही है? हमें उसके साथ फोटो खिंचवानी हैं

भारतीय रेलवे से रिटायर दीप्ति के पिता भगवान शर्मा कहते हैं, “दीप्ति इसको देख देख के क्रिकेट खेली, सुमित ने उत्तर प्रदेश में एज ग्रुप लेवल पर क्रिकेट खेला है। उस समय दीप्ति करीब 8 साल की थी,जब वह उसके साथ स्टेडियम जाने लगी। हमारे पड़ोसी और हमारे रिश्तेदार यहां कहते थे ऐसे लड़की को कहां भेजते हो? उसे डॉक्टर या इंजीनियर बनना है, उसे पढ़ना है, यह औरतों का खेल नहीं है, यह मर्दों का खेल है। हमने ऐसी बातों पर कभी ध्यान नहीं दिया। आज वे पूछते हैं दीप्ति कब आ रही है? हमें उसके साथ फोटो खिंचवानी है!”