विनायक मोहनरंगन। महिला वर्ल्ड कप के फाइनल में भारतीय टीम ने नवी मुंबई में रविवार (2 नवंबर) को साउथ अफ्रीका को हराकर इतिहास रचा। हरमनप्रीत कौर की अगुआई वाली टीम को चैंपियन बनने में उत्तर प्रदेश के आगरा की ऑलराउंडर दीप्ति शर्मा ने अहम भूमिका निभाई। उन्होंने अर्धशतक ठोका और 5 विकेट लिए। वह महिला या पुरुष वनडे वर्ल्ड कप में 20 से ज्यादा विकेट और 200 से ज्यादा रन बनाने वाली पहली क्रिकेटर बनीं।
भारत के लिए महज 17 साल की उम्र में डेब्यू करने वालीं दीप्ति के क्रिकेटर बनने की कहानी काफी दिलचस्प है। इसमें उनके भाई सुमित शर्मा का योगदान काफी बड़ा है, जिन्होंने दीप्ति को क्रिकेटर बनाने के लिए क्रिकेट ही नहीं नौकरी तक कि बलि दे दी। बहन को क्रिकेटर बनाने पर फोकस किया और परिवार को भी इसके लिए तैयार किया। दीप्ति अपने भाई सुमित को क्रिकेट प्रैक्टिस करते देखने के लिए उनके पीछे भागती थीं। अक्सर अपनी मां से छुपकर घर से निकल जाती थीं। धीरे-धीरे क्रिकेट के प्रति उनका लगाव बढ़ा और उन्होंने 8 साल की उम्र में भाई के साथ ट्रेनिंग के लिए एकलव्य स्पोर्ट्स स्टेडियम जाना शुरू कर दिया।
मां से छुपकर भाई को खेलते देखने जाती थीं
सुमित ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया, “मैं अपने घर पर क्रिकेट खेलने वाला पहला इंसान था। हमारे परिवार का कोई क्रिकेट बैकग्राउंड नहीं है। मेरे पापा सरकारी नौकरी में थे। मेरी मां एक स्कूल प्रिंसिपल थीं। भाई पढ़े-लिखे और इंजीनियर बन गए। जब भी मैं कॉलोनी में क्रिकेट खेलने जाता था। मां के मना करने पर भी या दरवाजे बंद करने पर भी दीप्ति किसी तरह बाहर निकलकर मेरा मैच देख लेती थी। जब मैं शाम को लौटता था तो दीप्ति को मेरे मैच की सारी डिटेल्स पता होती थीं। वह कहती थी कि अगर वह कैच नहीं छूटता तो तुम जीत सकते थे और ऐसी ही बातें होती थीं। वह किनारे बैठकर मुझे देखती थी।”

8 साल की उम्र में दीप्ति स्टेडियम जाने लगीं
क्रिकेटर बनने की चाहत ने दीप्ति को अपने पिता से जिद करने पर मजबूर कर दिया कि सुमित उसे अपने साथ ट्रेनिंग पर ले जाए। सुमित ने घर के एंट्रेंस पर वेटिंग रूम में रखी सभी ट्रॉफियों की ओर इशारा करते हुए कहा, “8 साल की उम्र में दीप्ति मेरे साथ क्रिकेट किट बैग लेकर स्टेडियम जाने लगी। नवंबर 2014 में जब वह 17 साल की थी तो उसने इंडिया के लिए डेब्यू किया। तब तक उसने डोमेस्टिक क्रिकेट में कई ट्रॉफियां जीतीं, पहले यूपी और फिर बंगाल के लिए।”
ऑलराउंडर बनना इंडियन टीम में जाने का सबसे अच्छा रास्ता
सुमित को पता था कि ऑलराउंडर बनना इंडियन टीम में जाने का सबसे बेहतर रास्ता है। यही वजह है कि दीप्ति जब यूपी के लिए पहली बार अंडर-19 में खेलीं तो उन्होंने मीडियम पेसर के तौर पर शुरुआत की, लेकिन फिर सुमित ने उन्हें स्पिनर बनाने का फैसला किया। वह चाहते थे कि दीप्ति टॉप ऑर्डर में बैटिंग करें। वह चोट का जोखिम नहीं लेना चाहते थे, जिससे तीनों में से किसी एक डिसिप्लिन पर असर पड़ सकता था।
भाई ने करियर की दी कुर्बानी
एकलव्य स्पोर्ट्स स्टेडियम में सुमित ट्रेनिंग करते थे और वह काफी दूर था। सुमित बताते हैं, “सिर्फ आने-जाने में ही 4 घंटे लग जाते थे। हमारे पास एक मोपेड थी और आप जानते हैं, वह कितनी तेज चल सकती है। वह 40kph से ज्यादा की स्पीड से नहीं चल सकती।” दीप्ति के सफर में एक अहम मोड़ पर सुमित को असल में अपने करियर के बारे में एक बड़ा फैसला लेना पड़ा। प्रोफेशनली उन्हें लगा कि क्रिकेट में उनका कोई भविष्य नहीं है, इसलिए उन्होंने एमबीए इस भरोसे के साथ किया कि कम से कम दीप्ति एक दिन भारत के लिए खेलेगी। उन्हें कैंपस प्लेसमेंट से नौकरी मिल गई और जब वह कभी-कभी ब्रेक के लिए घर आते तो वह देखते कि दीप्ति का वजन बढ़ रहा है और वह पहले की तरह रेगुलर प्रैक्टिस नहीं कर पा रही है।

दीप्ति को क्रिकेटर बनाने के लिए भाई ने छोड़ी नौकरी
सुमित कहते हैं, “यह 2012-2013 के आस-पास की बात है। मुझे एहसास हुआ कि अगर दीप्ति को यूपी से इंडिया तक आखिरी रुकावट पार करनी है तो उसे ट्रेनिंग में पूरी मेहनत करनी होगी। मैंने अपने पापा से कहा देखिए पापा मेरा पहले से ही नौकरी छोड़ने का प्लान था और अब मुझे लगता है कि दीप्ति खेल नहीं पा रही है। तो इससे मुझे और पक्का यकीन हो गया कि मुझे अपनी नौकरी छोड़नी होगी।”
लड़की है, मत खिलाओ शर्मा जी
रिश्तेदार, पड़ोसी पहले से ही कह रहे थे लड़की है, मत खिलाओ शर्मा जी।” मेरे पापा ने कभी उनकी नहीं सुनी। फिर जब मैंने उन्हें अपना फैसला बताया तो उन्होंने भी हमारा साथ दिया। यह उनका सपोर्ट था। मैंने अपने पापा से कहा मैं चाहता हूं कि हम दिन-रात प्रैक्टिस करें। अगर हम सुबह जाएंगे तो वापस नहीं आएंगे। मैंने अपने पापा को चेतावनी दी कि लोग अब आपसे पूछेंगे कि आपके बेटे ने महंगा कोर्स क्यों किया और अब घर पर क्यों बैठा है। तैयार रहना। उन्होंने मुझसे कभी सवाल नहीं किया। हमारे बड़े भाई भी मान गए।”
जब दीप्ति खेलती है, तो मैं उसके साथ इंडिया के लिए खेलता हूं
सुमित ने अपने माता-पिता और भाइयों से कहा कि उसे दो साल चाहिए, दिन-रात काम करना होगा। उन्होंने कहा, “ईश्वर से हमने मांगा, दो साल दे दो। कुछ हुआ नहीं तो, हम अपने रास्ते चले जाएंगे। अगर तब तक हमने अपना सपना पूरा कर लिया, भगवान ने चाहा, तो बहुत अच्छा। नहीं तो मैं अपनी नौकरी पर वापस चला जाऊंगा। दीप्ति जिस भी लेवल पर पहुंचे, खेलना जारी रख सकती है।” उन्होंने ऐसा ही किया, घर के पास एक किराए की जगह पर पहले से ज्यादा कड़ी ट्रेनिंग की, जहां 35 साल के सुमित अब अपनी एकेडमी में कोचिंग देते हैं। परिवार में चौथे बेटे सुमित को वह सपोर्ट मिला जो वह चाहते थे। उन्होंने दीप्ति को इंडिया के लिए एक ऑलराउंडर के तौर पर खिलाने का अपना वादा पूरा किया, जिस पर टीम सभी फॉर्मेट में भरोसा कर सकती है। सुमित कहते हैं, “आज जब दीप्ति खेलती है, तो मैं उसके साथ इंडिया के लिए खेलता हूं।”
