संदीप जी। भारत और न्यूजीलैंड के बीच बेंगलुरु में पहले टेस्ट से एक दिन पहले चर्चा शहर में हुई बारिश पर केंद्रित थी। बंगाल की खाड़ी में बन रहे डिप्रेशन को इन्वेस्ट 96बी नाम दिया गया है। यह तूफान का नाम कम आयकर कानून की तरह लगता है। बेहतर ड्रेनेज सिस्टम सुनिश्चित करेगा कि कानपुर की मैच शुरू होने में देरी न हो। लगातार बारिश के कारण पिच पर चर्चा हुई ही नहीं।
22 गज की पट्टी रहस्य की तरह एक नीली मजबूत तिरपाल शीट के नीचे छीपी हुई थी। रोहित शर्मा की टीम ने घरेलू सरजमीं पर ऐसा प्रदर्शन किया है कि उसे पिच से अनुचित लाभ उठाने की जरूरत नहीं है। टीम काफी लचीली और संतुलित। ऐसे में रोहित शर्मा टॉस से एक घंटे पहले भी पिच जांच कर सकते हैं और प्लेइंग इलेवन की सूची बना सकते हैं। बारिश हो या धूप,आग हो या बाढ़, पिच चाहे स्पिन करे या सीम रोहित की टीम को जीत की आदत पड़ गई है।
भारतीय टीम अब अपने हिसाब से पिच नहीं तैयार कराती
इसलिए रोहित शर्मा से प्रेस क्रॉन्फ्रेंस के दौरान यह नहीं पूछा गया कि वे टीम में कितने स्पिनर्स को मौका देंगे या गेंद पहले घंटे से ही घूमेगी या नहीं। इसी तरह टॉम लैथम से यह नहीं पूछा गया कि उनके बल्लेबाज स्पिन की समस्या से निपटने के लिए तैयार हैं या नहीं। पिच को लेकर पूछे गए सवाल हल्के थे। क्या नमी के कारण टीम तीन तेज गेंदबाजों के साख उतरेगी? यह एक मौन स्वीकारोक्ति थी कि भारतीय टीम अब अपने हिसाब से पिच नहीं तैयार कराती।
टर्नर भारतीय क्रिकेट की जरूरत थी
टर्नर पर निर्भरता गुजरे वक्त की बात हो गई है। इस दशक के दौरान यह धीरे-धीरे कम होती गई है। रवि शास्त्री के दौर की शुरुआत में खूब टर्नर देखने को मिलते थे। हालात भी अलग थे। भारतीय टीम बदलाव के दौर से गुजर रही थी। जसप्रीत बुमराह ने आईपीएल में अच्छा किया था; मोहम्मद शमी लगातार अच्छा प्रदर्शन नहीं करते और चोटिल रहते थे; रविंद्र जडेजा और रविचंद्रन अश्विन अभी तक एक घातक नहीं हुए थे। ऐसे में टर्नर भारतीय क्रिकेट की जरूरत थी।
द्रविड़ के समय क्या था हाल
जब राहुल द्रविड़ ने विरासत संभाली तो टीम ऑस्ट्रेलिया में शानदार प्रदर्शन के बाद ढलान पर थी। वर्ल्ड टेस्ट चैंपियनशिप की रेस में द्रविड़ ने समझौते करने चाहे। टर्नर डिफॉल्ट रणनीति नहीं थी, लेकिन इसे स्टैंडबाय पर रखा जाता था। जरूरत पड़ने पर इस्तेमाल होता था। हैदराबाद को छोड़कर, इंग्लैंड सीरीज के लिए पिच ऐसी नहीं थी कि बल्लेबाजों के लिए परेशानी का सबब बन सके।
गंभीर के दौर में पिच से छेड़छाड़ नहीं
महीनों बाद गंभीर ने अपने दौर की शुरुआत भारतीय मानक वाले विकेटों से की। उन्होंने पिच के साथ छेड़छाड़ नहीं की। चेन्नई की पिच अपनी प्रकृति के अनुरूप थी। पर्याप्त उछाल और कैरी, बल्लेबाजों ने भी रन बनाए। शुरू में पिच से सीमर्स को दद मिली। कानपुर की पिच आम तौर पर धीमी और नीची थी, बीच-बीच में बारिश के कारण सीमर्स लेटरल मूवमेंट मिल रहा था। कुछ हद तक टर्न जरूर देखने को मिलता है, जैसे ऑस्ट्रेलिया में उछाल और इंग्लैंड में स्विंग लाजमी है। क्यूरेटर अबर अलग-अलग हिस्सों को एक साथ जोड़कर पिच नहीं बनाते।
पिच पर बहुत ज्यादा नजर नहीं डालते गंभीर
नए हेड कोच गंभीर भी पिच पर बहुत ज्यादा नजर नहीं डालते। सोमवार को, उन्होंने झुककर दोनों छोर पर कुछ जगह टैप किया,ज्यादातर सीमर की गुड लेंथ के आस-पास। लेकिन फिर तेजी से नेट पर लौट आए। पानी नहीं डाला गया। ये शुरुआती दिन हैं, लेकिन संकेत हैं कि भारत ने दशकों से चली आ रही टर्नर के मोह से खुद को मुक्त कर लिया है।
अश्विन और जडेजा विपक्षी टीम को बैकफुट पर रखते हैं
कुछ अहसासों ने टीम को प्रभावित किया होगा। मुख्य रूप से स्पिनर दुनिया में सबसे घातक हैं। अपने करियर के एक बेहतरीन फेज में, वे पिच से मदद की नहीं सोचते हैं। वे बल्लेबाजों पर मनोवैज्ञानिक रूप से दबाव डालते हैं। दिलचस्प बात यह है कि जब गेंद बहुत ज्यादा टर्न नहीं कर रही थी, तब उन्होंने ज्यादा विकेट लिए हैं। किसी भी अन्य स्पिन जोड़ी की तुलना में ज्यादा विकेट लेने वाले अश्विन और जडेजा विपक्षी टीम को बैकफुट पर रखते हैं।
तेज गेंदबाज भी कम नहीं
पहले वे दसवें ओवर में ही गेंदबाजी करने आते थे। अब सीमर उन्हें इंतजार करवाते हैं। हमेशा की तरह वे या तो शीर्ष क्रम को ध्वस्त कर देते हैं या उन्हें चुप कर देते हैं। स्पिनर्स की तरह पिच किस तरह की है इसका उन पर कोई असर नहीं पड़ता। अनुकूल परिस्थितियों में उनको खेलना मुश्किल होता है, प्रतिकूल परिस्थितियों में वे और घातक होते हैं। कानपुर हो या चेन्नई या फिर विशाखापत्तनम और रांची वे स्पिनर्स से ज्यादा घातक रहे। जब किसी टीम के पास इतना मजबूत आक्रमण होता है तो पिच का व्यवहार अप्रासंगिक हो जाता है। भारत और उपमहाद्वीप की सभी टीमों के बीच अंतर इतना बड़ा है कि पिच-डॉक्टरिंग की आड़ में इसे और चौड़ा करने की जरूरत नहीं है।
भारतीय बल्लेबाजों के लिए स्पिनिंग ट्रैक परेशानी का सबब
एक पहलू यह है कि भारतीय बल्लेबाजों की स्पिनिंग ट्रैक पर स्पिनर्स से निपटने की क्षमता कम होती जा रही है। रोहित शर्मा को छोड़कर बाकी सभी स्पिन के सामने जूझते दिखे हैं। महान स्पिनर्स शेन वॉर्न और मुथैया मुरलीधरन को बेअसर साबित करने वाली पीढ़ी बहुत पहले ही खत्म हो चुकी है। टीम के वर्तमान बल्लेबाजों को एजाज पटेल हों, शोएब बशीर, स्टीव ओ कीफ या मैथ्यू कुहनेमैन ने खूब परेशान किया है।
