ध्रुव जुरेल ने गुरुवार को राजकोट में इंग्लैंड के खिलाफ तीसरे टेस्ट में इंटरनेशनल क्रिकेट में डेब्यू किया। टीम प्रबंधन ने विकेटकीपर बल्लेबाज केएस भरत के प्रदर्शन से नाखुश होने के कारण आगरा के 23 वर्षीय खिलाड़ी को सीरीज के महत्वपूर्ण मैच में मौका मिला। 5 मैचों की सीरीज 1-1 से बराबरी पर है। विवादों में घिरे इशान किशन की जगह इंग्लैंड के खिलाफ टेस्ट सीरीज में जुरेल को चुना गया। घरेलू क्रिकेट और इंडिया ए के लिए अच्छा प्रदर्शन का उन्हें फायदा मिला।
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ध्रुव के डेब्यू से उनकी मां का त्याग सफल हुआ, जिन्होंने उनकी किट बैग के लिए अपना गहना गिरवी रख दिया था। भारतीय सेना में हवलदार रहे पिता नेम सिंह के लिए पिछला एक साल सपना सच होने जैसा रहा है। करगिल युद्ध लड़ चुके नेम सिंह चाहते थे कि उनका बेटा भी उनकी तरह सेना में रहकर देश की सेवा करे। वह चाहते थे कि उनका बेटा नेशनल डिफेंस एकेडमी (NDA) की परीक्षा पास करे और इस विरासत को आगे बढ़ाएं, लेकिन युवा खिलाड़ी को क्रिकेट का इतना शौक था कि वह अपने पिता के नक्शेकदम पर नहीं चला।
क्या बोले पिता?
परिवार में किसी ने भी क्रिकेट नहीं खेला है और एक स्थिर नौकरी पाना बड़ा लक्ष्य रहा है। हालांकि, ध्रुव के मन में कुछ और ही था। शुरुआती दिनों में उनके पिता को कई लोगों से प्रतिक्रिया मिली कि उनका बेटा बहुत अच्छी बल्लेबाजी करता है। उसे इस पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, लेकिन खेल में भविष्य को लेकर चिंता बनी रही। बीते एक साल को लेकर ध्रुव के पिता बताते हैं, ” ध्रुव ने आईपीएल में खेला। उन्होंने इंडिया ए के लिए खेला और अब उन्हें भारतीय टीम के लिए चुना गया है। यह हमारे लिए सपने जैसा रहा है। हम नहीं जानते कि लोगों और भगवान का शुक्रिया कैसे अदा करें। मैंने ध्रुव से बात की और उसे पहले से अधिक जमीन पर रहने के लिए कहा।”
पिता को सताती थी चिंता
ध्रुव के पिता बताते हैं, ” मेरे परिवार से किसी ने क्रिकेट नहीं खेला है, जिसने भी उन्हें बल्लेबाजी करते देखा वह कहता था कि लड़का अच्छा है, आप इसे क्रिकेट में डालो। लेकिन मैं एक पिता हूं और उसके भविष्य को लेकर भी चिंतित था। क्रिकेट नहीं हुआ तो क्या होगा? ध्रुव पढ़ाई में भी उतने अच्छे नहीं थे।” नेम ने आगरा में स्प्रिंगडेल अकादमी चलाने वाले कोच परवेंद्र यादव से मुलाकात की और उनसे अपने बेटे को एक अच्छा क्रिकेटर बनाने का अनुरोध किया।
खुद को बाथरूम में कर लिया था बंद
क्रिकेट एक महंगा खेल है, खासकर अगर कोई बल्लेबाज बनना चाहता है। ध्रुव के पिता को याद है कि कैसे उन्हें 800 रुपये का बल्ला चाहिए था और उनकी मां को उनकी पहली किट खरीदने के लिए अपनी एकमात्र सोने की चेन गिरवी रखनी पड़ी थी। ध्रुव के पिता बताते हैं, “मुझे तब 800 रुपये उधार लेने पड़े क्योंकि हमारे पास पैसे नहीं थे। बाद में उन्हें एक किट बैग चाहिए था, लेकिन वह बहुत महंगा था, लगभग 6000 रुपये का। मैंने कहा कि मत खेलो, इतना पैसा नहीं है। उसका पहला किट बैग खरीदें। लेकिन उसने खुद को बाथरूम में बंद कर लिया और उसकी मां ने अपनी एकमात्र सोने की चेन गिरवी रखने का फैसला किया। इस तरह हम उसका पहला किट बैग खरीदा गया। अब जब मैं उन पलों को याद करता हूं तो कभी-कभी हंसी आती है, लेकिन एक बात स्पष्ट थी। वह कड़ी मेहनत करने के लिए तैयार था।”
क्रिकेट पर बात नहीं करते पिता
नेम अब जहां भी जाते हैं, ध्रुव के पिता के तौर पर जाने जाते हैं। वह सुर्खियों का आनंद ले रहे हैं। वह गौरवान्वित महसूस करते हैं, लेकिन जमीन से जुड़े रहने की कोशिश करते हैं। वह ध्रुव के स्कूल के सभी स्कोर याद रखते हैं और जूनियर क्रिकेट में उनके अधिकांश मैच देखे हैं। वह इन दिनों भोजन और संस्कार पर बातचीत करते हैं। नेम ने ध्रुव को सलाह दी, “मैं अब उनसे क्रिकेट के बारे में बात नहीं करता। जब उसका फोन आया तो मैंने उससे पूछा कि क्या उसने खाना खा लिया है। वह कैसा है? मैं उसे याद दिलाता हूं कि वह अपने संस्कार न भूलें ताकि हर कोई उसे आदर की नजर से देखे। उन सभी को सम्मान दें, जिन्होंने आज तक उनकी मदद की है।”