टीम इंडिया के पूर्व कप्तान और भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (BCCI)के पूर्व अध्यक्ष सौरव गांगुली का करियर उतार चढ़ाव भरा रहा है। 8 जुलाई 1972 को कोलकाता के बेहला में जन्में दादा को जब कप्तानी मिली तो टीम इंडिया संकट के दौर से गुजर रही थी। कई खिलाड़ियों पर मैच फिक्सिंग के आरोप लगे थे। इसके बाद ‘प्रिंस ऑफ कोलकाता’ ने न सिर्फ टीम को संकट से उबारा बल्कि इस बुलंदियों पर ले गए। दादा ने 2000 में टीम की कमान संभाली और 2005 तक कप्तान रहे। इंडियन क्रिकेट में सबकुछ ठीक चल रहा था।
फिर जॉन राइट का बतौर कोच कार्यकाल खत्म हुआ। ग्रेग चैपल की एंट्री हुई और ड्रेसिंग रूम का माहौल बिगड़ा। गांगुली की न सिर्फ कप्तानी गई, बल्कि वह टीम से भी बाहर हो गए। सौरव गांगुली के करियर का यह सबसे मुश्किल क्षण था। उन्होंने इसके बारे में अपनी ऑटोबायोग्राफी ‘अ सेंचुरी इज नॉट इनफ’ (A Century Is Not Enough) में विस्तार से बताया है। सौरव गांगुली लिखते हैं कि उनके पिता चंडीदास गांगुली ने एक बार संन्यास तक लेने की सलाह दे दी थी। उन्होंने सौरव की टीम में वापसी की उम्मीद छोड़ दी थी। फिर भी सौरव गांगुली ने हार न मानी और तय किया वह टीम में वापसी के लिए और कड़ी मेहनत करेंगे।
मेरा नाम सौरव गांगुली, भूले तो नहीं?
मेरा नाम सौरव गांगुली, भूले तो नहीं? यह किताब का 13वां चैप्टर है। इसमें सौरव गांगुली और उनके पिता के बीच बातचीत का जिक्र है। दादा ने बताया है कि ग्रेग चैपल से विवाद और टीम इंडिया से बाहर होने के बाद तनाव उनके घर में काफी तनाव था। उनकी पत्नी डोना कुछ कहती नहीं थीं, लेकिन वह काफी उदास रहती थीं। घर पर ज्योतिष आते थे और उनकी मां को तरह तरह के सलाह देते थे। उनकी मां का मानना था मेरा भाग्य कोई अंगूठी या धागा पहनने से बदल सकता है। सौरव को इस पर भरोसा नहीं था।
सौरव के पास अखबार लेकर आए पिता
सौरव गांगुली आगे बताते हैं कि उनके पिता शायद ही कभी प्रोफेशनल मामलों पर बात करते थे, लेकिन एक शाम वह एक अखबार की रिपोर्ट लेकर उनके पास आए। इसमें बताया गया कि वेस्टइंडीज में भारतीय टीम की एक दिवसीय सीरीज जीतने के बाद सौरव के लिए दरवाजे हमेशा के लिए बंद हो गए।
काफी समय बाद बापी से क्रिकेट पर चर्चा कर रहा था
दादा ने पिता से बातचीत को लेकर कहा, “मैं काफी समय बाद बापी से क्रिकेट पर चर्चा कर रहा था। ऐसा लग रहा था कि वह दिन वापस आ गया है जब मैं 14 साल का था और वह मेरे गुरु थे। उन्हें लगता था कि जब भी भारत कोई क्रिकेट मैच जीतता, टीम में वापस आने की मेरी संभावना कम हो जाती।”
महाराज आप संन्यास क्यों नहीं ले लेते
सौरव गांगुली आगे बताते हैं, ” उनके पिता ने कहा कि महाराज आपने बहुत कुछ हासिल किया है। आप गर्व के साथ संन्यास क्यों नहीं ले लेते? वह चिंतित और दुखी थे। इससे मुझे और भी अधिक असहाय महसूस हुआ। आखिरकार वह आए और उन्होंने वह कहा जो वह न कहने की बहुत कोशिश कर रहे थे। महाराज विश्वास करें, मुझे आपके लिए कोई जगह नहीं दिख रहा। दुख की बात है कि कोई उम्मीद नहीं है।”
सौरव गांगुली ने पिता से क्या कहा?
सौरव गांगुली ने आगे कहा, “यह पिता और पुत्र के बीच बहुत ही मार्मिक बातचीत थी। मेरे पिता अब जीवित नहीं हैं, लेकिन मुझे अच्छी तरह याद है कि मैंने उन्हें क्या बताया था। मैंने कहा कोई भी हमेशा खेलते नहीं रह सकता। सर्वकालिक महान खिलाड़ी चाहे वह माराडोना हों, संप्रास हों या गावस्कर हर कोई किसी न किसी दिन रुतका है। मुझे पता है कि देर-सबेर मुझे भी जाना होगा। लेकिन मैं इस सोच के साथ नहीं रह सकता कि संकट के समय मैंने पर्याप्त प्रयास नहीं किया।”
मेरे पास संन्यास लेने का आसान विकल्प था
सौरव गांगुली ने यह भी कहा, “मैंने निर्णय लिया कि मैं तब तक लड़ता रहूंगा जब तक मुझे लड़ाई जारी रखना असंभव न लगे। हां, मेरे पास संन्यास लेने का आसान विकल्प था, लेकिन मैं अपनी बाकी जिंदगी सोफे पर बैठकर यह सोचते हुए आराम नहीं करना चाहता ता कि मैंने अपना सर्वश्रेष्ठ नहीं दिया। उस दिन मैं सचमुच अपनी ही नजरों में गिर जाऊंगा।
मैंने उस रात तीन निर्णय लिए
गांगुली ने यह भी बताया, “मैंने जीवन में जो कुछ भी किया, मेरे पिता का उसमें सहयोग मिला और उन्होंने सिर्फ सिर हिलाया। अंदर से मुझे पता था कि वह आश्वस्त नहीं थे। बातचीत खत्म हुई, मैं अपने कमरे में लौट आया। मैंने उस रात खुद से कहा कि सौरव गांगुली अपने आप को एक और साल दीजिए और देखिए क्या होता है। मैंने उस रात तीन निर्णय लिए। मैं जी तोड़ ट्रेनिंग लूंगा। मैं इस सत्र में सभी रणजी मैचों में खेलूंगा। मैं हार नहीं मानने वाला हूं।”