शुरुआती दबाव डालकर तेज गेंदबाज मैच की दशा और दिशा दोनों तय करने लगे हैं। बीते कुछ वर्षों में भारतीय गेंदबाजों ने भी इस क्षेत्र में अपनी ताकत दिखाई है। अपने तेज गेंदबाजों के दम पर भारतीय टीम ने मैच पलटे और जीते हैं। अपनी ही नहीं, विदेशी पिचों पर भी। भारतीय क्रिकेट में तेज गेंदबाजी में आई इस क्रांति का श्रेय इंडियन प्रीमियर लीग को है। लेकिन साथ ही अफसोसनाक पहलू यह भी है कि जिस तेजी से गेंदबाज उभरे, उसी तेजी से लुप्त भी हो रहे हैं। दूसरे मायनों में भारत यह संतोष कर सकता है कि टीम में जगह पाने की होड़ ज्यादा कड़ी हो गई है। अब हर गेंदबाज अपना प्रभाव छोड़कर टीम का हिस्सा बनना चाहता है।
टी20 और एकदिवसीय खासा चुनौतीपूर्ण है। गेंदबाज न केवल विकेट निकालने वाला चाहिए बल्कि किफायती भी हो। उसके पास विविधता भी हो, लाइन-लैंथ पर नियंत्रण भी हो, गेंदबाजी एक्शन में बदलाव किए बिना धीमी गेंद या नक्कल गेंद फेंककर बल्लेबाज को गफलत में डालने की कला भी हो।
पिच के मिजाज को देखकर अपनी रणनीति बनाने की कुशलता भी हो। पिच कैसी भी हो, तेज गेंदबाजों को परीक्षा से गुजरना ही पड़ेगा। हाल ही में श्रीलंका के साथ हुई टी20 और एकिदवसीय सीरीज कई मायनों में भारत के लिए महत्त्वपूर्ण रही। बल्लेबाजों ने ही नहीं, गेंदबाजों ने भी रंग जमाया। भारत ने दोनों सीरीज जीतीं। यह देखना सुखद रहा कि पावरप्ले में विकेट झटककर तेज गेंदबाजों ने अपना असर छोड़ा।
खास बात यह रही कि जसप्रीत बुमराह जैसे धाकड़ गेंदबाज की कमी को दूसरे गेंदबाजों ने खलने नहीं दिया। तेज गेंदबाजों में सबसे ज्यादा प्रभावी दिखे मोहम्मद सिराज। वे शुरुआती स्पैल में किफायती तो रहे ही, विकेट चटकाने में भी कामयाब रहे। बीते तीन वर्षों में सिराज की गेंदबाजी में निखार औरपैनापन दोनों आया है। श्रीलंका के खिलाफ वनडे सीरिज के तीन मैचों में 1०.22 की औसत से नौ विकेट उनके कमाल के गवाह हैं। इसमें 32 रन पर चार विकेट उनका सर्वश्रेष्ठ गेंदबाजी विश्लेषण भी रहा।
एक और तेज गेंदबाज उमरान मलिक ने भी अपनी तेजी से बल्लेबाजों को विचलित किया और बीच के ओवरों में विकेट झटक कर कप्तान को सफलता का विकल्प दे दिया है। टी20 और एकदिवसीय दोनों में उन्होंने अपना असर छोड़ा। चूंकि इस साल अपने ही देश में एकदिवसीय विश्व कप होना है, इसलिए उमरान भी टीम में जगह पाने के दावेदार तेज गेंदबाजों की दौड़ में शामिल हो गए हैं। हालांकि सनराइजर्स हैदराबाद में डेल स्टेन ने उनको गेंदबाजी टिप्स दिए हैं। फिर भी उनकी गेंदबाजी में सुधार की गुंजाइश है। नियंत्रित गेंदबाजी के साथ विविधता पर भी काम करने की जरूरत है। लेकिन उमरान तेजी वाले अंदाज में ही गेंदबाजी करना चाहते हैं भले ही रन ज्यादा पड़ जाएं।
मोहम्मद शमी इस सीरीज में अपनी ख्याति के अनुरूप गेंदबाजी नहीं कर पाए। उनके पास अनुभव है और शानदार गेंदबाजी की कला भी। वे कभी भी अपनी लय पकड़ सकते हैं। अगर एक बार उन्हें लय मिल जाती है तो उनकी गेंदों के आगे बल्लेबाजों को परेशानी में देखना सुखद आश्चर्य होता है। अगर फार्म बहुत ही खराब हो तो उनके टीम में नहीं होने के बारे में सोचा जा सकता है। लेकिन वे हमेशा चयनकर्ताओं की पसंद रहे हैं।
जसप्रीत बुमराह भले ही फिटनेस की समस्या से गुजर रहे हों, लेकिन विश्व कप टीम में उनकी जगह पक्की है। मौजूदा स्थिति में ऐसा लगता है कि विश्व कप में आक्रमण की धुरी बुमराह, सिराज और शमी होंगे। इस समय देश के सबसे तेज गेंदबाज उमरान भी योजना में फिट हो सकते हैं। शार्दुल ठाकुर, हर्षल पटेल, आवेश खान जैसे गेंदबाज भी फार्म के दम पर टीम में आ सकते हैं। अगर खब्बू गेंदबाज की जरूरत महसूस होती है तो अर्शदीप सिंह और खलील अहमद के नाम पर भी गौर हो सकता है।
वैसे हार्दिक पांड्या समीकरण को बिगाड़ सकते हैं। उनकी हरफ क्षमता टीम की मजबूती बन सकती है। जरूरत पड़ने पर उनकी मध्यम तेज गेंदबाजी का सहारा लिया जा सकता है। अभी विश्व कप में काफी समय है। हालांकि यह 50 ओवरों वाला है लेकिन इंडियन प्रीमियर लीग में गेंदबाजों का प्रदर्शन भी मायने रखेगा।
विश्व कप भारतीय सरजमीं पर हो रहा है, इसलिए स्पिनरों की भूमिका भी महत्त्वपूर्ण रहने वाली है। चयनकर्त्ता का जोर उन खिलाड़ियों पर रहेगा जो गेंद के साथ बल्ले से भी उपयोगी साबित हो सकें। ऐसे में रविंदर जडेजा, अक्षर पटेल, रविचंद्रन अश्विन पहली पसंद होंगे। कुलदीप यादव और यजुवेंद्र चहल का दावा भी बना रहेगा। कुल मिलाकर गेंदबाजी आक्रमण की कमान इनके पास ही रहने की संभावना है। कप्तान और कोच का विश्वास कौन जीतेगा, समय ही बताएगा।