विश्व फुटबॉल की नियामक संस्था फीफा ने अखिल भारतीय फुटबॉल महासंघ (एआईएफएफ) को उसके संविधान के कार्यान्वयन में देरी के बारे में पत्र लिखा है और निलंबन की धमकी दी है। पत्र में कहा गया है कि ‘अखिल भारतीय फुटबॉल महासंघ के संशोधित संविधान को अंतिम रूप देने और लागू करने में लगातार विफलता’ के कारण भारतीय फुटबॉल में ‘अस्थिर शून्यता और कानूनी अनिश्चितताएं’ पैदा हो गई हैं।
पत्र की एक प्रति द इंडियन एक्सप्रेस के पास भी है। एआईएफएफ अध्यक्ष कल्याण चौबे को कड़े शब्दों में लिखे गए पत्र में, फीफा ने एआईएफएफ को ‘अपने मामलों को स्वतंत्र रूप से और सरकारी निकायों सहित किसी भी तीसरे पक्ष के अनुचित प्रभाव के बिना प्रबंधित करने के दायित्व’ की भी याद दिलाई।
30 अक्टूबर 2025 है डेडलाइन
एआईएफएफ को 30 अक्टूबर 2025 की समय सीमा देते हुए फीफा ने उसे सर्वोच्च न्यायालय से एआईएफएफ संविधान को मंजूरी देने वाला एक निश्चित आदेश हासिल करने को कहा है। इसके अलावा, पत्र में मांग की गई है कि संविधान पूरी तरह से फीफा और एएफसी (एशियाई फुटबॉल परिसंघ) के नियमों और विनियमों के अनुरूप हो। एआईएफएफ को अपनी अगली आम बैठक में अपने संविधान का औपचारिक अनुमोदन हासिल करने के लिए कहा गया है।
भारतीय फुटबॉल पारिस्थितिकी तंत्र पर पड़ा गहरा नकारात्मक प्रभाव
एआईएफएफ को भेजे गए पत्र में कहा गया है, ‘इस लंबे गतिरोध ने प्रशासन और संचालन संबंधी संकट को जन्म दिया है। क्लब और खिलाड़ी घरेलू प्रतियोगिता कैलेंडर को लेकर अनिश्चित बने हुए हैं; दिसंबर 2025 के बाद व्यावसायिक साझेदारियां अभी तय नहीं हुई हैं और विकास, प्रतियोगिताओं और विपणन से जुड़े जरूरी कार्यों में लगातार कमी आ रही है। वित्तीय स्थिरता की कमी के कारण भारत के फुटबॉल पारिस्थितिकी तंत्र पर गहरा नकारात्मक प्रभाव पड़ा है, खासकर इंडियन सुपर लीग (आईएसएल) में हिस्सा लेने वाले क्लबों के साथ जुड़े फुटबॉलरों पर, जिसका आयोजन एआईएफएफ के तत्वावधान में होता है।’
संविधान को अंतिम रूप न दिए जाने के कारण एआईएफएफ और उसके व्यावसायिक साझेदार फुटबॉल स्पोर्ट्स डेवलपमेंट लिमिटेड (एफएसडीएल) के बीच हुए समझौते के तहत अंतिम सत्र में अव्यवस्था रही। 15 साल के मास्टर राइट्स एग्रीमेंट (एमआरए), जो 2010 में शुरू हुआ और दिसंबर 2025 में समाप्त होगा, पर दोनों पक्षों द्वारा फिर से बातचीत की जा रही थी, लेकिन न्यायमूर्ति नरसिम्हा और न्यायमूर्ति जॉयमाला बागची की पीठ द्वारा एआईएफएफ चुनावों के बाद ही बातचीत करने के लिए कहने के बाद रोकनी पड़ी। हालांकि, बाद में एक निर्देश में इंडियन सुपर लीग सीजन के संचालन के लिए बातचीत करने को कहा गया, जिसके लिए एआईएफएफ और एफएसडीएल दोनों गुरुवार को फिर से अदालत में पेश होंगे।
‘तीसरे पक्ष’ का हस्तक्षेप नहीं चाहता फीफा
भारत को इससे पहले अगस्त 2022 में फीफा द्वारा ‘तीसरे पक्ष के हस्तक्षेप’ के लिए निलंबित कर दिया गया था, जब चुनाव कराने में विफलता के कारण भारतीय संस्था के संचालन के लिए प्रशासकों की एक समिति (सीओए) का गठन किया गया था। सीओए को तुरंत भंग कर दिया गया ताकि भारत को फीफा अंडर-17 महिला विश्व कप की मेजबानी करने की मंजूरी मिल सके, जो 11-30 अक्टूबर 2022 तक आयोजित किया गया।
AIFF को भुगतने पड़ सकते हैं गंभीर प्रभाव
फीफा ने संविधान को अंतिम रूप न देने और तीसरे पक्ष के हस्तक्षेप के परिणामों की भी रूपरेखा प्रस्तुत की। पत्र में कहा गया है, ‘इस दायित्व का पालन न करने पर फीफा और एएफसी के नियमों में उल्लिखित प्रतिबंधों का सामना करना पड़ सकता है, जिसमें निलंबन की संभावना भी शामिल है। इसके अलावा, किसी सदस्य संघ को तीसरे पक्ष के प्रभाव के परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं, भले ही उसकी सीधे तौर पर कोई गलती न हो।’
फीफा का यह भी है दावा
एआईएफएफ के निलंबन से फीफा और एएफसी के सदस्य के रूप में उसके सभी अधिकार समाप्त हो जाएंगे, जैसाकि फीफा और एएफसी नियमों में परिभाषित है। फीफा ने यह भी कहा कि उसे खिलाड़ियों के संघ FIFPRO से प्रतिक्रिया मिली है। वित्तीय स्थिरता की कमी के कारण भारत के फुटबॉल पारिस्थितिकी तंत्र पर गहरा नकारात्मक प्रभाव पड़ा है, खासकर एआईएफएफ के तत्वावधान में आयोजित इंडियन सुपर लीग (आईएसएल) में हिस्सा लेने वाले क्लबों द्वारा नियोजित फुटबॉलरों पर।’
पत्र में कहा गया है, ‘हमें FIFPRO की ओर से चिंताजनक रिपोर्ट मिली है कि विभिन्न क्लबों द्वारा खिलाड़ियों के रोजगार अनुबंधों को एकतरफा समाप्त कर दिया गया है, जो वर्तमान गतिरोध का प्रत्यक्ष नतीजा है और खिलाड़ियों की आजीविका और करियर को प्रभावित कर रहा है। इस पत्र पर फीफा के मुख्य सदस्य संघ अधिकारी एल्खान मम्मादोव और एएफसी के सदस्य संघों के उप महासचिव वाहिद कर्दानी के हस्ताक्षर हैं।’