जुलाई 2021 में वेम्बली स्टेडियम में इटली और इंग्लैंड के बीच यूरोपियन चैंपियनशिप का फाइनल खेला गया। खिताबी मुकाबले में इटली ने इंग्लैंड को हरा दिया। मैच टाइम दोनों टीमें एक-एक गोल की बराबरी पर थीं। इसके बाद पेनल्टी शूटऑउट हुआ। इसमें इटली ने 3-2 से बाजी मारी। इटली की ओर से बेरार्डी, बाउंसी और बर्नाडेशी ने पेनल्टी शूटऑउट में गोल किए, जबकि बेलोट्टी और जोर्गिन्हो मिस कर गए।

वहीं, इंग्लैंड की ओर से हैरी केन और मैग्युरे ही गोल कर पाए। गोल नहीं कर पाने वालों में मार्कस रैशफोर्ड, सांचो और साका शामिल रहे। मार्कस रैशफोर्ड इंग्लैंड फुटबॉल टीम के अश्वेत खिलाड़ियों में से एक हैं। फाइनल हारने के बाद लोगों ने इंग्लैंड टीम के खिलाफ अपना गुस्सा निकाला। हालांकि, इंग्लैंड टीम के एक प्रशंसक ने इस हार को नस्लीय रूप देने की कोशिश की।

19 साल के जस्टिन ली प्राइस ने पेनल्टी चूकने के बाद मैनचेस्टर यूनाइटेड के मार्कस रैशफोर्ड को ट्विटर पर गालियां दीं। अदालत ने अब इस किशोर को सजा सुनाई है। कोर्ट ने 30 मार्च 2022 को किशोर को छह सप्ताह की जेल की सजा सुनाई। जस्टिन ली प्राइस ने 17 मार्च को वॉर्सेस्टर मजिस्ट्रेट कोर्ट में सुनवाई के दौरान स्वीकार किया था कि उसने सार्वजनिक संचार नेटवर्क के जरिए घोर आपत्तिजनक संदेश भेजा।

ब्रिटिश अभियोजकों ने कहा कि पोस्ट सार्वजनिक होने के बाद जस्टिन ली प्राइस ने शुरुआत में अपने ट्विटर यूजरनेम को बदलकर पहचान बदलने की कोशिश की। फिर अपनी गिरफ्तारी के बाद पुलिस पूछताछ में अपराध करने की बात से इंकार किया। हालांकि, जब अधिकारियों ने दूसरी बार पूछताछ की तो उसने ट्वीट पोस्ट करना स्वीकार किया।

प्राइस को वॉर्सेस्टर में किडरमिंस्टर मजिस्ट्रेट कोर्ट ने सजा सुनाई है। क्राउन प्रॉसिक्यूशन सर्विस के मार्क जॉनसन ने कहा, ‘प्राइस ने एक फुटबॉलर को उसकी त्वचा के रंग के आधार पर निशाना बनाया और उसकी कार्रवाई स्पष्ट रूप से नस्लवादी और घृणा फैलाने वाला अपराध थी।’

उन्होंने कहा, ‘जो लोग फुटबॉलर्स को नस्लीय गाली देते हैं, वे सभी के लिए खेल को बर्बाद कर देते हैं। मुझे उम्मीद है कि इस मामले से यह संदेश जाएगा कि हम नस्लवाद को बर्दाश्त नहीं करेंगे और अपराधियों पर कानून के तहत मुकदमा चलाया जाएगा।’