भारतीय फुटबाल सुर्खियों में है-पहले प्रशासकीय गड़बड़ियों की वजह से रही और अब उपलब्धि को लेकर। उपलब्धि है टीम का लगातार दूसरी बार एएफसी एशियन कप के फाइनल दौर में जगह बनाना। यह काबिलेतारीफ भी है और प्रेरणादायी भी। खेल की संचालन संस्था जब विवादों में जकड़ी हो, फेडरेशन को चलाने का दायित्व किसी समिति को सौंप दिया जाए तो खिलाड़ियों और उनको प्रशिक्षण देने वाले कोच की मनोदशा का अंदाजा लगाया जा सकता है। खिलाड़ी तो अपने हैं, आई मुसीबत का सामना कर सकते हैं। लेकिन कोच विदेशी हो, जिसका कार्यकाल सितंबर तक बढ़ाया गया हो, जिसकी प्रतिष्ठा दांव पर हो, वह तो बौखलाएगा ही।

यह सही है कि भारतीय टीम ने क्वालीफाइंग मुकाबलों में अपनी जीत का रेकार्ड शत-प्रतिशत रखा। कहीं ढिलाई नहीं हुई। लेकिन जब टीम पर फाइनल दौर में जगह बनाने का दबाव हो, ऐसे समय में फुटबाल का कोर्ट में पहुंचना, अखिल भारतीय फुटबाल फेडरेशन के अध्यक्ष प्रफुल्ल पटेल सहित पूरी टीम को भंग कर दिया जाना, क्रोएशियाई कोच इगोर स्टिमक के लिए अजीब स्थिति थी। उनके लिए स्थिति अजीब हो सकती है पर सुप्रीम कोर्ट के लिए नहीं। जब पदाधिकारी बने सिस्टम और कोड का मखौल उड़ाएं तो उन्हें लाइन पर लाने के लिए कुछ तो करना पड़ेगा।

यों स्टिमक की इस बात के लिए तारीफ करनी होगी कि वे मिली जिम्मेदारी से कहीं आगे की सोच रहे हैं। वे हर एशियाई कप के फाइनल में टीम इंडिया को खेलते देखना चाहते हैं। यही नहीं उनका लक्ष्य विश्व कप क्वालीफाइंग मैचों के लिए भी मजबूत टीम खड़ी करना है। वे तंत्र को दुरुस्त करना चाहते हैं, आइ लीग को भारतीय फुटबाल की मजबूत कड़ी के तौर पर देखना चाहते हैं। इसमें विदेशी खिलाड़ियों की कम भागीदारी। उनकी सोच गलत नहीं। अगर भारतीय फुटबाल को आगे ले जाना है तो अपने खिलाड़ियों का कौशल निखारना होगा। जीत के लिए गोल चाहिए और गोल के लिए कुशल निशानेबाज। चलन यह हो गया है कि आइ लीग हो या आइएसएल जीत के लिए क्लब विदेशी निशानेबाजों पर निर्भर रहते हैं। अपने फारवर्ड तो गायब से हो गए हैं।

17 साल में छेत्री की निशानेबाजी कला के दम पर ही भारत की सफलता का दारोमदार रहता है। उनके पहले बाइचुंग भूटिया और आइएम विजयन पर टीम निर्भर थी। छेत्री 37 साल के हो गए हैं। भले ही गोल बनाने की कलाकारी में वे अभी भी उस्ताद हैं पर उनके बाद कौन? यह अपने आप में बड़ा सवाल है। एएफसी क्वालीफाइंग दौर में भी सफलता में उनकी भूमिका अहम रही। 2023 में एएफसी फाइनल दौर में भी वे खेलने का इरादा रखते हैं। 84 अंतरराष्ट्रीय गोल बनाकर वे हंगरी के महान खिलाड़ी फेरेंक पुस्कास की बराबरी पर आ चुके हैं। उनसे आगे पुर्तगाल के क्रिस्टियानो रोनाल्डो और अर्जेंटीना के लियोनल मेस्सी हैं। मेस्सी के तो सिर्फ दो गोल ज्यादा हैं।

भारत पांचवीं बार एएफसी के फाइनल दौर में उतरेगा। यह टूर्नामेंट अगले साल खेला जाना है। इससे पहले भारतीय टीम 2006, 2009, 2011 और 2019 में खेल चुकी है। लगातार दूसरी बार फाइनल में स्थान बनाना खिलाड़ियों के मजबूत इरादों को दर्शाता है। कंबोडिया पर 2-0, अफगानिस्तान पर 2-1 से नाटकीय और हांगकांग पर 4-0 से एकतरफा जीत से भारतीय टीम का मनोबल ऊंचा है।

एएफसी एशियाई कप की शुरुआत 1956 में हुई थी। 1964 में भारत पहली बार इसमें खेला। इसमें किया गया प्रदर्शन ही भारत का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन है। तब भारतीय टीम उपविजेता रही थी। यह बात अलग है कि पश्चिम क्षेत्र से टीमों के नाम वापस लेने से भारत को इसमें सीधे खेलने का हक मिल गया। टीमें सिर्फ चार थीं और इंगलिश कोच हैरी राइट की छत्रछाया में टीम ने दक्षिण कोरिया और हांगकांग को हराकर उपविजेता बनने का गौरव पा लिया। मेजबान इजराइल ने राउंड रोबिन लीग के तीनों मैच जीतकर कप हासिल किया।

दूसरी बार फाइनल दौर में खेलने के लिए भारत को बीस साल इंतजार करना पड़ा। 1984 के भारतीय टीम ग्रुप बी में थी जहां मेजबान सिंगापुर, संयुक्त अरब अमीरात और चीन से उसे हार मिली जबकि ईरान से टक्कर बराबर छूटी। 2008 के एएफसी चैलेंज कप विजेता होने के नाते भारत को 2011 में तीसरी बार मौका मिला। 27 साल बाद शिरकत कर रहे भारत का प्रदर्शन इस बार भी बुरा रहा। टीम आस्ट्रेलिया (0-4), बहरीन (2-5) और कोरिया (1-4) से अपने तीनों मैच हारी।

स्टीफन कांस्टेंटाइन की कोचिंग में जब 2019 में भारतीय टीम चौथी बार उतरी तो 55 साल से नहीं मिली जीत के सूखे को समाप्त किया। सुनील छेत्री के दो गोलों की मदद से भारत ने थाईलैंड को हराया। अगले दो मैच हार जाने से चुनौती टूट गई। कप्तान सुनील छेत्री स्टिमक को अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रशिक्षक मानते हैं। टैक्टिकल तौर पर भी वे उन्हें बेहतर मानते हैं। छेत्री को लिस्टन कोलासो, सुरेश वांग, आकाश और रोशन सिंह जैसे खिलाड़ियों का खेल भा रहा है। उनको लगता है कि टीम का भविष्य अच्छा है। एएफसी फाइनल दौर में पता चल जाएगा कि टीम कितने पानी में है।