2020 ओलंपिक वर्ष है। जापानी शहर तोक्यो को मेजबानी करनी है। अगर तय समय पर आयोजन होता है तो सिर्फ चार महीने बाकी बचे हैं। इसके लिए खेल जगत की हस्तियां अपनी तैयारी में जुटी हैं। दुनिया में अपने को बेहतर साबित कर ये हस्तियां अपने-अपने खेलों में पदक का दावा पेश करेंगी। कुछ खेलों में भारतीय खिलाड़ी भी पदक जीतने के दावेदार हैं। जिन खेलों में अपने देश को पदक की आस है, उनमें बैडमिंटन भी एक है। पिछले एक दशक में भारत की इसमें पहचान बनी। महिला हो या पुरुष वर्ग, भारतीयों को आसान प्रतिद्वंद्वी समझने की अब कोई भूल नहीं कर सकता।
सायना नेहवाल के उदय से यह तस्वीर बदली। हैदराबाद स्थित पुलेला गोपीचंद ने इसे भुनाया। एक के बाद एक कई सितारे उभरे और उन्होंने बैडमिंटन मानचित्र पर चौंकाने वाले प्रदर्शन किए। प्रतिद्वंद्वी चीन से हो या इंडोनेशिया से, मलेशिया से हो या कोरिया से, जापान से हो या डेनमार्क से, सभी को प्रबल चुनौती दी गई। सायना नेहवाल और किदांबी श्रीकांत ने विश्व बैंडमिंटन में नंबर एक के पायदान पर कदम जमाए। सिंधू का विश्व चैंपियन बनना सोने पर सुहाना रहा।
लेकिन जब सफलता मिलती है तो उम्मीद बंधती है। उम्मीद की जाती है कि खिलाड़ियों के प्रदर्शन का ग्राफ चढ़ता रहे। अगर विश्व खिताब जैसा सम्मान मिलता है तो यह भी उम्मीद रहती है कि इस कामयाबी में ठहराव आए। लेकिन जब ठहराव की बजाय लुढ़काव शुरू हो जाए तो चिंतनीय है। आज स्थिति बदल गई है। जिन खिलाड़ियों ने भारतीय बैडमिंटन को चमकाया, आज वही अपनी प्रतिष्ठा के लिए जूझ रहे हैं। उनकी ओलंपिक भागीदारी पर संकट के बादल गहरा रहे हैं। इनमें सायना नेहवाल, किदांबी श्रीकांत, एचएस प्रणय, पारुपल्ली कश्यप और लक्ष्य सेन जैसे सितारे हैं।
ओलंपिक क्वालीफिकेशन टूर्नामेंट ज्यादा नहीं बचे हैं। कोरोना वायरस ने स्थिति को और पेचीदा बना दिया है। टूर्नामेंट स्थगित हो रहे हैं। ऐसे में 28 अप्रैल तक की समयावधि तक रैंकिंग सुधार पाना मुश्किल लग रहा है। दूसरे भारतीय खिलाड़ियों की फॉर्म और फिटनेस भी चिंता का विषय बनी हुई है। यह चिंता उस खिलाड़ी को लेकर भी है जिसने पिछले साल विश्व बैडमिंटन के लिए यह सबसे बड़ा पल था। इस ऐतिहासिक सफलता में सिंधू ने जैसी शानदार बैडमिंटन खेली थी, वह काबिले तारीफ थी। लेकिन ताज पहनने के बाद उनकी चैंपियन वाली क्लास गायब हो गई है। वह लगातार बड़े टूर्नामेंटों में पिट रही हैं। जापान की नाओमी ओकुहारा और चीनी ताइपे की ताइ जु यिंग उनके लिए सिरदर्द बनी हुई हैं।
प्रतिष्ठित ऑल इंग्लैंड बैडमिंटन का खिताब आज भी उनकी पहुंच के बाहर है। वह अपने खेल की लय को बरकरार नहीं रख पा रही हैं। मानसिक तौर पर भी वह मजबूत नहीं दिखतीं। गेम जीतने के बावजूद प्रतिद्वंद्वी पर दबाव बनाने की बजाय वह खुद दबाव में आकर मैच गंवा रही हैं। ऑल इंग्लैंड में जापानी खिलाड़ी ओकुहारा के खिलाफ भी यही हुआ। बीते वर्ष सितंबर में फ्रेंच ओपन और इस साल के शुरू में इंडोनेशिया मास्टर्स में वह क्वार्टर फाइनल से आगे नहीं बढ़ पाईं।
पूर्व विश्व नंबर एक सायना नेहवाल स्वास्थ्य और फॉर्म दोनों तरह की परेशानी से घिरी हैं। इसका असर उनकी ट्रेनिंग पर भी पड़ रहा है। लंदन ओलंपिक (2012) की कांस्य पदक विजेता सायना के लिए 2019 का साल काफी खराब रहा। आठ टूर्नामेंट ऐसे रहे जिनमें पहले राउंड में ही उनकी छुट्टी हो गई। यह सिलसिला 2020 में भी नहीं रुका है। तीन टूर्नामेंट में उनकी पहले ही राउंड में विदाई हो चुकी है। इनमें ऑल इंग्लैंड भी शामिल है। अभी उनकी रैंकिंग 22 चल रही है। ऐसे में अप्रैल अंत से पहले जितने टूर्नामेंट उनको खेलने हैं, उनमें कम से कम सेमी फाइनल तक पहुंचना जरूरी होगा। तभी ओलंपिक के लिए क्वालीफाई करने की उम्मीद बन सकती है।
2018 में थोड़े अर्से के लिए विश्व नंबर एक बने किदांबी श्रीकांत भी लय में नहीं हैं। वह भी लगातार पहली बाधा पार करने में विफल हो रहे हैं। 2014 में पांच बार के विश्व चैंपियन लिन डैन के उन्हीं की सरजमीं पर हराकर श्रीकांत सुर्खियों में आए थे। तब वह सुपर सीरीज का खिताब जीतने वाले पहले भारतीय पुरुष शटलर बने थे। इसके बाद उनके करिअर का ग्राफ ऊपर गया और वे नंबर वन खिलाड़ी भी बने। श्रीकांत से इस समय साईं प्रणीत, सौरभ वर्मा और पारुपल्ली कश्यप रैंकिंग में ऊपर चल रहे हैं। चारों ओलंपिक में खेलने की रेस में फिलहाल पिछड़े हुए हैं।