भारतीय एथलीट पारुल चौधरी ने पिछले महीने हुई वर्ल्ड चैंपियनशिप में 3000 मीटर स्टेपलचेज के फाइनल में जगह बनाई। इसके साथ ही उन्होंने नेशनल रिकॉर्ड भी कायम किया। पारुल की इस उपलब्धि ने उनके पिता कृष्णनलाल चौधरी का सिर ऊंचा कर दिया। गांव वालों के ताने सुनते हुए, रिश्तेदारों की बातों को नजरअंदाज करते हुए उन्होंने अपनी बेटी के सपनों को उड़ान दी।

नंगे पैरा दौड़ी थी पहली रेस

पारुल का परिवार मेरठ के इकलौता गांव में रहता है। कृष्णनलाल ने एक दिन ऐसी ही बेटी को रेस में दौड़ने के लिए कहा। साल 2011 में पारुल पहली बार 800 मीटर रेस में दौड़ी और चैंपियन बनी। इस रेस से पहले पारुल ने कोई अभ्यास नहीं किया था। वह नंगे पैर दौड़कर यह रेस जीती थी। यहीं से पारुल के एथलेटिक करियर की शुरुआत हुई।

पिता ने दिया बेटियों का साथ

पारुल और उनकी बहन प्रीति दोनों गन्ने के खेतो के बीच दौड़ा करती थीं। गांव वाले दोनों को देखकर ताना देते थे। कृष्णलाल ने कभी लोगों की बातों पर ध्यान नहीं दिया। उन्होंने बेटियों का पूरा समर्थन किया। जब प्रीति और पारुल मेडल जीतने लगी तब भी लोग पीठ पीछे बात करते थे। कृष्णनलाल ने बताया कि बचपन में पारुल काफी भारी थी और गोद में भी नहीं आती थी लेकिन खेल ने सब बदल दिया।

डायना एडुल्जी की सलाह ने बदली जिंदगी

पारुल ने सरकारी नौकरी के चक्कर में खेल से जुड़ने का फैसला किया था। पारुल ने इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में कहा, ‘मैंने सुना था कि स्पोर्ट्स में अच्छा करूंगी तो अच्छी नौकरी मिलेगी। मैंने इसी वजह से शुरुआत की। तब बस यही कारण था। मेरे सपने बहुत बड़े नहीं थे।’ उन्हें साल 2015 में वेस्टर्न रेलवे में नौकरी मिली। उन्होंने अपनी पहली सैलरी मां को दी। यहीं पर उनकी मुलाकात पूर्व भारतीय क्रिकेटर डायना एडुल्जी से हुई जिन्होंने सबकुछ बदल दिया। डायना ने पारुल को समझाया कि उन्हें नौकरी से आगे सोचना चाहिए। यहीं से पारुल ने खेल को गंभीरता से लेना शुरू किया। वह पहले नेशनल स्तर और फिर अंतरारष्ट्रीय स्तर पर देश का नाम रोशन करने लगी।