राष्‍ट्रीय लोकतांत्र‍िक दल (RLD) के मुख‍िया जयंत चौधरी ने 12 फरवरी को आख‍िरकार भाजपा खेमे में जाने का ऐलान कर द‍िया। बीजेपी उन पर लंबे समय से डोरे डाल रही थी। पार्टी पहले भी बीजेपी के साथ रह चुकी है।

दो साल पहले, जनवरी 2022 में भी केंद्रीय गृह मंत्री और भाजपा नेता अम‍ित शाह ने उनके बारे में कहा था क‍ि वह गलत जगह (समाजवादी पार्टी के साथ) चले गए हैं। तब माहौल उत्तर प्रदेश व‍िधानसभा चुनाव का था और अम‍ित शाह जाट नेताओं के साथ बैठक कर रहे थे।

प्रवेश वर्मा (ज‍िनके घर यह बैठक हुई थी) ने बाद में संवाददाताओं से कहा था क‍ि बैठक में जाट समुदाय के लोगों को जयंत से बात करने का सुझाव द‍िया गया। बीजेपी के दरवाजे खुले हैं।

तब जयंती चौधरी ने दिया था ये जवाब

उस समय जयंत चौधरी ने ट्व‍िटर (अब एक्‍स) के जर‍िए जवाब द‍िया था- मुझे बुलाने के बजाय उन 700 से ज्‍यादा क‍िसानों के पर‍िवारों को बुलाइए, ज‍िन्‍हें आपने बर्बाद कर द‍िया। जयंत चौधरी का इशारा उन क‍िसानों की ओर था ज‍िनकी जान क‍िसान आंदोलन में चली गई थी।

इससे पहले 2019 के लोकसभा चुनाव में भी जयंत सपा-बसपा व अन्‍य पार्ट‍ियों के गठबंधन में थे। उस चुनाव में जयंत चौधरी को उनके गढ़ बागपत में भाजपा उम्‍मीदवार सत्‍यपाल सिंह ने हरा द‍िया था। 2014 में भी वहां से सत्‍यपाल ही जीते थे।

1977 से बागपत में चौधरी खानदान को हराने वाले सत्‍यपाल दूसरे नेता रहे। इससे पहले 1998 में बीजेपी के ओमपाल सिंह शास्‍त्री ने ऐसा क‍िया था। बागपत से जयंत सिंह चौधरी के दादा चौधरी चरण सिंह पहली बार 1977 में चुनाव जीते थे। 1989 से चरण स‍िंह के बेटे अज‍ित सिंह बागपत से लड़ने लगे। 2014 से पहले वह छह बार वहां से सांसद बने। अब जयंत एक बार फ‍िर 2024 में बागपत से क‍िस्‍मत आजमाना चाह रहे हैं। 2019 के चुनाव में वह वहां से करीब 23 हजार वोट से हार गए थे।

आरएलडी का पारंपरिक जनाधार

आरएलडी परंपरागत रूप से किसानों की पार्टी रही है, जिसका मुख्य जनाधार जाट समुदाय के बीच रहा है। जयंत चौधरी पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के पोते हैं, जो उत्तर भारत के सबसे बड़े किसान नेता थे। आरएलडी की स्थापना चरण सिंह के बेटे अजीत सिंह ने 1997 में की थी और यह पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लगभग 15 जिलों जैसे कि बागपत, मुजफ्फरनगर, शामली, मेरठ, बिजनोर, गाजियाबाद, हापुड, बुलन्दशहर, मथुरा, अलीगढ, हाथरस, आगरा और मुरादाबाद में व‍िशेष प्रसार है।

चरण सिंह खुद एक जाट थे, लेकिन उन्होंने किसानों के पूरे वर्ग को अपने साथ जोड़ा, विशेष रूप से मुस्लिम, अहीर (यादव), जाट, गुज्जर और राजपूत समुदायों से आने वाले मध्यम किसानों को। अब दो पीढ़ी बाद, जयंत चौधरी को जाट और मुस्लिम मतदाताओं पर निर्भर माना जा सकता है।

पार्टी के लिए बीता एक दशक खराब रहा है। उसका पारंपरिक वोट बंट गया है। पिछले लोकसभा चुनाव (2019) में रालोद उन सभी तीन सीटों पर चुनाव हार गई थी, जिसपर सपा-बसपा गठबंधन के साथ उम्मीदवार उतारा था। तीनों सीट पर रालोद, भाजपा के बाद दूसरे स्थान पर रही थी। 2022 के विधानसभा चुनाव में पार्टी सपा के साथ गठबंधन में लड़ी गई 33 सीटों में से आठ सीटें जीती थी। पार्टी उत्‍तर प्रदेश व‍िधानसभा में सबसे ज्‍यादा 14 व‍िधायक जीत पाई है।

RLD के जाने से INDIA पर क्या पड़ेगा असर?

जैसे ही रालोद के जाने की चर्चा जोर पकड़ी, कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश में न जाकर, उत्तर प्रदेश में अपनी भारत जोड़ो न्याय यात्रा को छोटा करने का फैसला किया। कांग्रेस ने कहा है कि ऐसा बोर्ड परीक्षाओं के मद्देनजर किया गया है। लेकिन इस फैसले को इस तथ्य से जोड़ा जा रहा है कि पार्टी ने क्षेत्र में अपना सहयोगी खो दिया है।

एक दूसरा आकलन यह है कि आरएलडी के इस कदम से कांग्रेस को फायदा हो सकता है, क्योंकि वह अब उत्तर प्रदेश में चुनाव लड़ने के लिए एसपी से अधिक सीटें मांग सकती है।

कांग्रेस-सपा गठबंधन अब क्षेत्र में मुस्लिम मतदाताओं को लुभाने की कोशिश करेगा, ताकि एनडीए के साथ जाने वाले संभावित जाट वोटर्स का मुकाबला किया जा सके।

हालांकि आरएलडी का बाहर जाना इंडिया गठबंधन के ल‍िए आघात तो है ही, इससे यह धारणा बढ़ी है कि गठबंधन अपनी एकजुटता बनाए रखने के लिए संघर्ष कर रही है।