कॉमनवेल्थ गेम्स 2022 का आयोजन इंग्लैंड के बर्मिंघम में हुआ है। कॉमनवेल्थ गेम्स यानी राष्ट्रमंडल खेल ओलंपिक, एशियन गेम्स के बाद तीसरा सबसे बड़ा स्पोर्ट्स इवेंट है। 28 जुलाई से 8 अगस्त तक चलने वाले इस इवेंट में 72 देशों के 4500 से ज्यादा एथलीट्स ने हिस्सा लिया है। भारत की तरफ से 215 खिलाड़ी पहुंचे हैं। हर 4 साल में एक बार आयोजित होने वाले इस अंतरराष्ट्रीय खेल समारोह में इस बार का Mascot एक बैल है।
मैस्कॉट क्या होता है?
आपने रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म या टिकट काउंटर के आस-पास हाथी की एक तस्वीर देखी होगी। यह हाथी कोर्ट पहने, टाई और टोपी लगाए, हाथ में एक लालटेन लिए होता है। यह इंडियन रेलवे का मैस्कॉट है, जिसका नाम भोलू है। ऐसे ही दिल्ली मेट्रो की मैस्कॉट का नाम मैत्री है, जो नीले रंग की ड्रेस में हाथ जोड़े खड़ी एक बच्ची है।
मैस्कॉट को हिंदी में शुभंकर कहते हैं। शुभंकर किसी ऐसे व्यक्ति, पशु या वस्तु को कहा जाता है जो सौभाग्य लाने के लिए माना जाता हैं। मैस्कॉट का इस्तेमाल स्कूल, सोशल ग्रुप, सैन्य इकाई आदि के पहचान चिन्ह के रूप में भी होता है। लेकिन खेल में इसका विशेष महत्व है। कॉमनवेल्थ गेम्स और ओलंपिक जैसे बड़े स्पोर्ट्स इवेंट में मैस्कॉट एंबेसडर के रूप में होता है। यह खेल की भावना को दर्शाने के साथ-साथ एथलीट्स और दर्शकों का स्वागत भी करता है।
खेल समारोह के प्रत्येक संस्करण का एक थीम होता है। मैस्कॉट इस थीम को भी रिप्रजेंट करता है। इसके अलावा यह मेजबान शहर के इतिहास और संस्कृति को बढ़ावा देना का काम भी करता है। कॉमनवेल्थ गेम्स 2022 का मैस्कॉट एक बैल है, जिसे ‘पेरी द बुल’ नाम दिया गया है।
बुल ही क्यों?
मैस्कॉट के लिए चुने गए बैल का नाम ‘पेरी द बुल’ बर्मिंघम शहर के पेरी बार्र इलाके के नाम पर रखा गया है। इसी इलाके में ऐलेक्जेंडर स्टेडियम है जहां कॉमनवेल्थ खेलों की ओपनिंग सेरेमनी का आयोजन किया गया था। और यही क्लोजिंग सेरेमनी भी तय है। पेरी एक बहुरंगी बैल है। उसके ऊपर हेक्सागोनल-रंगीन आकृतियां बनी हैं। गले में एक स्वर्ण पदक है।
बुल पर बनी हेक्सागोनल-रंगीन आकृतियां कॉमनवेल्थ गेम्स में विभिन्न समुदायों का प्रतिनिधित्व करती हैं। गले में लटका स्वर्ण पदक नीले, लाल और पीले रंग की धारियों वाले पट्टी से जुड़ा है। पट्टी में शामिल यह तीनों रंग बर्मिंघम के ध्वज में भी है।
वैसे बर्मिंघम के ध्वज में एक पीला उग्र बैल भी होता है, जो बर्मिंघम के सैकड़ों साल पुराने बुल रिंग बाजार को दर्शाता है। यही वजह है कि ‘पेरी द बुल’ को बर्मिंघम की औद्योगिक क्रांति से जोड़कर भी देखा जा रहा है। गले में लटका स्वर्ण पदक बर्मिंघम के प्रसिद्ध ज्वेलरी क्वार्टर को दर्शाता है, जहां सैकड़ों ज्वेलरी शॉप हैं। कॉमनवेल्थ गेम्स 2022 के आयोजक ‘पेरी द बुल’ की व्याख्या एक मजबूत, दयालु और थोड़े चुटीले बैल के रूप में कर रहे हैं।
10 साल की बच्ची ने किया है डिजाइन
पेरी द बुल को 10 साल की बच्ची एमा लू ने डिजाइन किया है। ग्रेटर मैनचेस्टर की रहने वाली लू की इस डिजाइन को पिछले साल मार्च में आधिकारिक रूप से CWG 2022 का मैस्कॉट चुना गया था। उस वक्त लू ने बताया था कि उन्होंने पेरी द बुल पर हेक्सागोनल आकृतियां ही क्यों बनाई हैं? लू ने कहा था, षट्भुज आकृति सबसे मजबूत मानी जाती है और वह किसी भी आकार को अच्छे से जोड़े रखती है।
CWG में मैस्कॉट की एंट्री?
कॉमनवेल्थ गेम्स की शुरुआत 1930 में हुई थी। तब इसे ब्रिटिश एंपायर गेम्स के नाम से जाना जाता था। पहला कॉमनवेल्थ गेम्स कनाडा के हैमिलटन में हुआ था। कॉमनवेल्थ गेम्स में मैस्कॉट की एंट्री साल 1978 में हुई थी। उस वर्ष का भी इस इवेंट की मेजबानी कनाडा ही कर रहा था। पहला मैस्कॉट केयानो एक भालू था। राष्ट्रमंडल खेलों की मेजबानी साल 2010 में भारत भी कर चुका है, तब मैस्कॉट शेरा था।
जनसत्ता स्पेशल स्टोरीज पढ़ने के लिए क्लिक करें। अगर किसी मुद्दे को विस्तार से समझना है तो Jansatta Explained पर क्लिक करें।