किरण रिजिजू (Kiren Rijiju) को को कानून मंत्रालय से हटा दिया गया है। उन्हें भू विज्ञान मंत्रालय दिया गया है। रिजिजू की जगह अर्जुन राम मेघवाल को कानून मंत्री (स्‍वतंत्र प्रभार) बनाया गया है। मेघवाल संसदीय मामलों और संस्कृति मंत्रालय में राज्य मंत्री की अपनी ज‍िम्‍मेदारी के साथ कानून मंत्रालय का काम देंखगे।

22 महीने संभाली कुर्सी

रिजिजू को जुलाई 2021 में कैबिनेट विस्तार के दौरान कानून मंत्रालय का जिम्मा सौंपा गया था। करीब 22 महीने के कार्यकाल के दौरान किरण रिजिजू, न्यायपालिका पर अपने बयानों को लेकर अक्सर चर्चा में रहे। चाहे जजों का अपॉइंटमेंट हो या जजों की छुट्टियों की बात, रिजिजू अपनी बात दो टूक रखते रहे। सियासी गलियारों में रिजिजू के कानून मंत्रालय से छुट्टी के पीछे न्यायपालिका से उनकी तनातनी को भी वजह बताया जा रहा है।

कहा था- आपस में लड़ने से फायदा नहीं…

पिछले साल 25 नवंबर को संविधान दिवस पर सुप्रीम कोर्ट में आयोजित एक कार्यक्रम में रिजिजू ने जब सीजेआई चंद्रचूड़ के सामने कहा, ‘आपस में लड़ के कोई फायदा नहीं है…’, तब लगा कि सरकार और न्यायपालिका के बीच जुबानी जंग पर विराम लग गया है। लेकिन, अगले ही दिन उन्होंने न्यायपालिका को निशाने पर लेते हुए कहा कि ‘यदि आपको लगता है कि सरकार फाइलों को दबाकर बैठी है, तो भेजिये ही मत’। रिजिजू का यह बयान कॉलेजियम द्वारा सुझाए गए नामों की मंजूरी में लेट-लतीफी से जुड़ा था। उनके इस बयान को अनावश्‍यक माना गया।

आइये किरण रिजिजू के उन 5 बयानों पर नजर डालते हैं, जो विवाद का विषय बने

1- कॉलेजियम पर टिप्पणी: किरण रिजिजू (Kiren Rijiju) अपने कार्यकाल के दौरान कॉलेजियम सिस्टम पर लगातार सवाल उठाते रहे। पिछले साल कॉलेजियम पर उनका एक बयान खासा चर्चित हुआ। रिजिजू ने कहा था कि कॉलेजियम सिस्टम पारदर्शी नहीं है। मैं मैं न्यायपालिका या न्यायाधीशों की आलोचना नहीं कर रहा हूं, लेकिन कॉलेजियम से खुश नहीं हूं। सिस्टम को पारदर्शी होना चाहिए और बतौर कानून मंत्री मैं नहीं बोलूंगा तो कौन बोलेगा? उन्‍होंने कई बार दोहराया क‍ि जजों की न‍ियुक्‍ति‍ सरकार का अध‍िकार है। संव‍िधान में कॉलेज‍ियम की कोई व्‍यवस्‍था नहीं है। लेक‍िन, जब तक यह कानून लागू है, तब तक यही व्‍यवस्‍था मान्‍य रहेगी।

साल 2022 में ही किरण रिजिजू का एक और बयान खासा चर्चित रहा। News18 के लेख में उन्होंने पंडित नेहरू की पांच गलतियां गिनाते हुए कश्मीर की समस्या के लिए जिम्मेदार ठहराया था।

2- CJI चंद्रचूड़ को लिखी चिट्ठी: रिजिजू (Kiren Rijiju) ने इसी साल जनवरी में चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ को एक चिट्ठी लिखे थी। इसमें उन्होंने सुझाव दिया था कि जजों को शॉर्टलिस्ट करने वाली कमेटी में सरकार का भी प्रतिनिधि होना चाहिए। रिजिजू ने तर्क दिया था कि इससे पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ेगी। विपक्ष ने इसपर खासा हंगामा किया। इससे पहले रिजिजू ने कहा था कि पूरी दुनिया में ऐसा कहीं नहीं होता, जहां जज ही जजों की नियुक्ति करते हैं। लेकिन भारत में ऐसा सिस्टम है और इसमें बहुत सियासत है।

3- कुछ जज एंटी इंडिया गैंग के मेंबर: किरण रिजिजू (Kiren Rijiju) का इसी साल 18 मार्च को दिल्ली के एक कार्यक्रम में दिया बयान खासा चर्चित रहा। जिसमें उन्होंने कुछ जजों को एंटी इंडिया गैंग का मेंबर बता दिया था। किरण रिजिजू ने कहा था कि कुछ रिटायर्ड जज एंटी इंडिया गैंग का हिस्सा बन गए हैं और यह लोग प्रयास कर रहे हैं कि न्यायपालिका, विपक्ष की भूमिका निभाए। जो लोग देश के खिलाफ काम करेंगे, उन्हें कीमत चुकानी होगी। किरण रिजिजू के इस बयान पर खासा बवाल मचा। सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के 300 से ज्यादा वकीलों ने बयान जारी कर इसकी निंदा की थी।

4- IB-RAW की रिपोर्ट पर बयान: इसी साल शुरुआत में जब सुप्रीम कोर्ट ने पहली बार कॉलेजियम द्वारा सुझाए गए नामों पर खुफिया एजेंसी आईबी और रॉ की रिपोर्ट सार्वजनिक की, तब रिजिजू ने तीखी टिप्पणी की थी। इसकी आलोचना करते हुए कहा था कि यह बहुत चिंता का विषय है और इसके बहुत गंभीर परिणाम हो सकते हैं।

5- समलैंगिक विवाह पर टिप्पणी: किरण रिजिजू (Kiren Rijiju) का ताजा बयान समलैंगिक विवाह (Same Sex Marriage) को कानूनी मान्यता देने से जुड़ी याचिकाओं पर था। उन्होंने कहा था कि अदालतें इस तरह के विवाद को सुलझाने का सही मंच नहीं हैं और किसी पर कोई चीज थोपी नहीं जा सकती है। शादी एक महत्वपूर्ण और संवेदनशील मसला है और इसका फैसला देश के लोगों को करना है। रिजिजू ने कहा था कि मैं इसे सरकार बनाम अदालत नहीं बनाना चाहता, लेकिन इस मसले को देश के नागरिकों पर छोड़ देना चाहिए।

अदालत तक पहुंचा मामला

किरण रिजिजू की न्यायपालिका को लेकर की गई टिप्पणी के खिलाफ जनहित याचिका भी दाखिल की गई। हालांकि दो दिन पहले सुप्रीम कोर्ट ने इन याचिकाओं को खारिज कर दिया था।