देश के कानून मंत्री ने तीन-चार रिटायर्ड जजों को ‘एंटी इंडिया गैंग’ का हिस्सा बताया है। उनका कहना है कि यह गैंग ‘एक्टिविज्म’ करता है और प्रोपैगंडा करता है कि सरकार न्यायपालिका पर अपना आधिपत्य चाहती है। रिजिजू ने टीवी चैनल इंडिया टुडे के 20वें कॉन्क्लेव (India Today Conclave) में यह बात कही। हालांकि, उन्होंने उन पूर्व जजों का नाम नहीं बताया, लेकिन एक सेमिनार का जिक्र करते हुए यह बात कही। इस सेमिनार में करीब एक दर्जन पूर्व जज व वकील बोलने के लिए बुलाए गए थे। इनमें सुप्रीम कोर्ट के दो पूर्व जज (मदन बी. लोकुर और दीपक गुप्ता) और एक पूर्व मुख्य न्यायाधीश (जस्टिस यू.यू. ललित) बतौर वक्ता आमंत्रित थे। एक वक्ता से जनसत्ता.कॉम ने संपर्क किया तो उन्होंने यह तो माना कि कानून मंत्री इसी सेमिनार का जिक्र कर रहे थे, लेकिन रिजिजू के बयान पर कोई प्रतिक्रिया देने से मना कर दिया।
पहले जानिए, केंद्रीय कानून मंत्री किरण रिजिजू ने 18 मार्च, 2023 को क्या कहा
इंडिया टुुुडे कॉन्क्लेव में एक जवाब के बाद कानून मंत्री से सवाल ये किया गया था- बतौर कानून मंत्री आप कह रहे हैं कि भारत में टुकड़े-टुकड़े गैंग है और भारत के विपक्षी सांसद उनसे जुड़े हुए हैं?
कानून मंत्री ने ये जवाब दिया- मैं दूसरी बातों में उलझना नहीं चाहता। मैं पूछना चाहता हूं कि भारत के बाहर से फंडिंग कैसे आ रही है? कैसे यह सब ऑर्गनाइज हो रहे हैं? कौन हैं वो लोग जो लंदन और दूसरी जगहों पर इवेंट का आयोजन कर रहे हैं?
हाल में दिल्ली में एक सेमिनार का आयोजन किया गया था, जिसमें सुप्रीम कोर्ट के कुछ सेवानिवृत्त जज, कुछ वरिष्ठ अधिवक्ता और अन्य लोग मौजूद थे। सेमिनार का टॉपिक था – ‘अकाउंटेबिलिटी इन जजेज अप्वाइंटमेंट’ लेकिन वहां पूरे दिन चर्चा इस बात पर होती रही कि भारत सरकार किस तरह न्यायपालिका पर कब्जा कर रही है।
यह बात याद रखिए कि सुप्रीम कोर्ट के वर्तमान मुख्य न्यायाधीश से लेकर पुराने सीजेआई तक से मेरे बहुत अच्छे संबंध हैं। साथ ही सुप्रीम कोर्ट के सभी जजों के साथ भी मेरा अच्छा रिश्ता है। हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीशों के मेरी अच्छी बनती है।
लेकिन बहुत थोड़े, महज तीन या चार रिटायर्ड जज हैं, जो एंटी इंडिया गैंग का हिस्सा हैं। ये लोग चाहते हैं कि भारतीय न्यायपालिका विपक्षी दल का काम करे। कुछ लोग तो कोर्ट में जाकर यह तक निवेदन करते हैं कि इस सरकार की नीतियों को बदला जाए। वह सरकार पर रेड करने की मांग करते हैं।
ये लोग चाहते हैं कि कोर्ट विपक्षी दल की तरह काम करे, जो कभी नहीं हो सकता है। न्यायपालिका न्यूट्रल है। जज किसी राजनीतिक दल के सदस्य नहीं हैं। फिर किस तरह ये लोग खुलेआम इस तरह की मांग कर सकते हैं? यह किस तरह का प्रोपेगेंडा है?
कानून मंत्री ने यह भी बताया कि इस तरह की हरकत करने वाला कोई शख्स बख्शा नहीं जाएगा। संबंधित एजेंसियां एक्शन ले रही हैं और लेंगी।
अब उस सेमिनार के बारे में जानिए
कानून मंत्री ने जिस सेमिनार का जिक्र किया, वह 18 फरवरी, 2023 को नई दिल्ली के इंडिया सोसायटी ऑफ इंटरनेशनल लॉ में हुआ था। इसका आयोजन Campaign for Judicial Accountability and Reforms ने किया था। सुप्रीम कोर्ट के सीनियर वकील प्रशांत भूषण कैंपेन फॉर ज्यूडिशियल अकाउंटेबिलिटी एंड रिफॉर्म्स के संयोजक हैं। इनके दिवंगत पिता और पूर्व कानून मंत्री शांति भूषण संस्था के कई पैट्रॉन्स में से एक थे।
सेमिनार में कुल चार सत्र रखे गए थे और बोलने वालों में ये वकील-पूर्व जज शामिल थे
सत्र एक का विषय था- न्यायिक नियुक्तियों में कार्यपालिका का दखल (Executive Interference in Judicial Appointments)। इस पर चर्चा के लिए इन वक्ताओं को बुलाया गया था-
- दुष्यंत दवे, सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील
- यू.यू. ललित, सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश
- डॉ. फैजान मुस्तफा, NALSAR University, हैदराबाद के पूर्व वीसी
- आदित्य सोंढ़ी, कर्नाटक हाईकोर्ट के वरिष्ठ वकील
- डॉ. मोहन गोपाल, राष्ट्रीय न्यायिक अकादमी (National Judicial Academy) के पूर्व निदेशक।
दूसरे सत्र के वक्ताओं में सुप्रीम कोर्ट के दो पूर्व जज थे
दूसरे सत्र का विषय था- Building a Transparent & Accountable Collegium – और वक्ताओं में शामिल थे
- मदन लोकुर और दीपक गुप्ता (दोनों पूर्व सुप्रीम कोर्ट के जज)
- दिल्ली हाईकोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश अजित प्रकाश शाह
- मद्रास हाईकोर्ट की सीनियर वकील आर वैगई
- जिंंदल ग्लोबल लॉ स्कूल के फाउंडिग वीसी व डीन
मदन लोकुर जनसत्ता.कॉम से इंटरव्यू में साफ कह चुके हैं कि सरकार में ट्रांसपैरेंसी नहीं है (जजों की नियुक्ति के मामले में)। देखिए वीडियो
तीसरे सत्र में चर्चा का विषय था- PRINCIPLES AND FRAMEWORK FOR JUDICIAL APPOINTMENTS – और इसके वक्ताओं में सुप्रीम कोर्ट की पूर्व जज इंदिरा बनर्जी, मद्रास हाईकोर्ट के सीनियर वकील श्रीराम पंचू, पटना हाईकोर्ट से रिटायर्ड जज अंजना प्रकाश, सीजेएआर से जुड़ी आरटीआई कार्यकर्ता अंजलि भारद्वाज और सीजेएआर के संयोजक सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण शामिल थे।
सेमिनार का आखिरी सत्र सवाल-जवाब, चर्चा के लिए निर्धारित था।
रिटायर्ड जस्टिस मदन बी. लोकुर की राय
सेमिनार में जस्टिस लोकुर ने कॉलेजियम की सिफारिशों पर अमल में देरी के लिए सरकार को जिम्मेदार ठहराए जाने की कड़ी वकालत की थी। जस्टिस लोकुर ने कुछ समय पहले जनसत्ता.कॉम को दिए इंटरव्यू में भी साफ कहा था कि इस सरकार में पारदर्शिता नहीं है। जजों की नियुक्ति के लिए लागू कॉलेजियम सिस्टम में पारदर्शिता नहीं होने का आरोप केंद्र सरकार लगाती रही है। इस बारे में सवाल के जवाब में जस्टिस लोकुर ने जनसत्ता.कॉम के संपादक विजय कुमार झा को यह जवाब दिया था-
पारदर्शिता कितनी होनी चाहिए और किस प्रकार की होनी चाहिए ये तो सरकार ने बताया नहीं है। मेरे हिसाब से सरकार में पारदर्शिता नहीं है। वह फाइलों को दबाकर रखते हैं, क्यों रखते हैं? बताते नहीं कि क्यों फाइल को दबाया है, क्या यह पारदर्शिता है?
जजों की नियुक्ति संबंधी कॉलेजियम की सिफारिशें दबा कर रखने के चलते होने वाली देरी से जुड़े एक सवाल के जवाब में जस्टिस लोकुर ने कहा था-
अगर सरकार कोर्ट का फैसला नहीं मानती तो कोर्ट कहे कि हम कंटेम्प्ट ऑफ कोर्ट आपके खिलाफ करते हैं… अब पता नहीं उनका (सुप्रीम कोर्ट) इतना दिमाग चलेगा या नहीं चलेगा, मैं कह नहीं सकता। लेकिन कोर्ट यह कह सकती है कि बोलिए। जवाब दीजिए।