Goa Liberation Day: आज ही के दिन 1961 में गोवा भारत में शामिल हुआ था। इससे पहले सरकार राजनयिक प्रयास कर रही थी लेकिन उनके विफल होने के बाद ही पुर्तगाली सेना के खिलाफ ताकत का इस्तेमाल किया गया था। गोवा को भारत में मिलाने के लिए ऑपरेशन विजय कैसे चलाया गया और ऑपरेशन चटनी क्या था? भारत ने गोवा में सेना भेजने से पहले 14 साल तक इंतजार क्यों किया? प्रधानमंत्री मोदी ने गोवा के सत्याग्रहियों का समर्थन न करने के लिए पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को क्यों दोषी ठहराया है? इसके बारे में विस्तार से समझना चाहिए।

पुर्तगालियों के अधीन गोवा

साल 1510 में जब एडमिरल अफोंसो डी अल्बुकर्क ने बीजिंगपुर के सुल्तान यूसुफ आदिल शाह को हराया, तब गोवा पुर्तगाली उपनिवेश बन गया था। 1947 में, जब शेष भारत अंग्रेजों से स्वतंत्र हुआ, तब भी गोवा, दादरा और नगर हवेली तथा दमन और दीव पुर्तगाली राज्य ‘एस्टाडो दा इंडिया’ के तौर पर पुर्तगाल के ही कब्जे में रहे। हालांकि देश के बाकी हिस्सों में चल रहे मुक्ति आंदोलन के साथ-साथ यहां भी एक स्वतंत्रता आंदोलन जोर पकड़ रहा था।

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गोवा में भी चल रहे थे स्वतंत्रता आंदोलन

गोवा राष्ट्रवाद के जनक माने जाने वाले ट्रिस्टाओ डी ब्रागांका कुन्हा ने 1928 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में गोवा राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना की। 1946 में समाजवादी नेता राम मनोहर लोहिया ने गोवा में एक ऐतिहासिक रैली का नेतृत्व किया। इनके साथ-साथ आज़ाद गोमंतक दल जैसे समूह भी थे, जो मानते थे कि सशस्त्र प्रतिरोध ही आगे बढ़ने का एकमात्र रास्ता है।

भारत को आजादी के साथ ही विभाजन और कश्मीर युद्ध का आघात भी सहना पड़ा। इन दोनों मुद्दों पर भारत सरकार का ज्यादा ध्यान रहा था। इसलिए नेहरू पश्चिम में एक और टकराव शुरू करने से हिचकिचा रहे थे जिससे अंतरराष्ट्रीय ध्यान आकर्षित होता और उन्होंने वार्ता और कूटनीति के माध्यम से गोवा की स्वतंत्रता सुनिश्चित करना बेहतर समझा।

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नाटो के जरिए भारत को डरा रहा था पुर्तगाल

हालांकि, पुर्तगाल के तानाशाह एंटोनियो डी ओलिवेरा सालज़ार ने सहयोग करने से इनकार कर दिया। वास्तव में उन्होंने एक कदम आगे बढ़कर भारत के क्षेत्रों को उपनिवेश नहीं, बल्कि विदेशी प्रांत और ‘महानगरीय पुर्तगाल’ के अभिन्न अंग घोषित कर दिया। इस समय तक पुर्तगाल उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) में शामिल हो चुका था और सालज़ार ने मांग की कि भारत द्वारा किसी भी सैन्य कार्रवाई का जवाब नाटो द्वारा दिया जाए।

दूसरी ओर भारत सरकार ने लिस्बन में स्थापित अपने राजनयिक कार्यालय के माध्यम से बातचीत के प्रयास जारी रखे, लेकिन बातचीत का ज्यादा फायदा हुआ ही नहीं।

पुर्तगालियों ने की थी सत्याग्रहियों पर गोलीबारी

जुलाई-अगस्त 1954 में भारतीय कार्यकर्ताओं ने दादरा और नगर हवेली पर कब्जा कर लिया जहां उन्हें बहुत कम प्रतिरोध का सामना करना पड़ा। इससे गोवा के स्वतंत्रता सेनानियों का हौसला बढ़ा। अगस्त 1955 में एक अहम घटना घटी, जब हजारों सत्याग्रहियों ने गोवा में प्रवेश करने की कोशिश की, लेकिन पुर्तगालियों ने उन पर गोलीबारी की, जिसमें 25 लोगों की मौत हो गई।

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पीएम मोदी ने किया था नेहरू के भाषण का जिक्र

गोवा चुनावों से पहले प्रधानमंत्री मोदी ने इस बात पर पूर्व पीएम जवाहर लाल नेहरू की कड़ी आलोचना की थी। 8 फरवरी, 2022 को राज्यसभा में बोलते हुए पीएम मोदी ने कहा था कि पंडित नेहरू को लगता था कि अगर वे गोवा से औपनिवेशिक शासकों को हटाने के लिए सैन्य अभियान चलाते हैं, तो शांति के वैश्विक नेता के रूप में उनकी छवि पर असर पड़ेगा। उन्होंने नेहरू के 1955 के स्वतंत्रता दिवस भाषण का हवाला देते हुए उन पर सत्याग्रहियों का समर्थन न करने का आरोप भी लगाया। यह सच है कि नेहरू ने अपने भाषण में सत्याग्रहियों को हिंसक कार्रवाई के खिलाफ चेतावनी दी थी।

नेहरू ने कही थी शांतिपूर्ण समाधान की बात

नेहरू ने कहा था कि गोवा भारत का हिस्सा है और इसे कोई अलग नहीं कर सकता। हमने बहुत संयम बरता है क्योंकि हम चाहते हैं कि इस मुद्दे का शांतिपूर्ण समाधान हो। किसी को भी यह गलतफहमी नहीं होनी चाहिए कि हम सैन्य कार्रवाई करने जा रहे हैं। जो लोग गोवा जा रहे हैं, उनका स्वागत है, लेकिन अगर वे खुद को सत्याग्रही कहते हैं, तो उन्हें सत्याग्रह के सिद्धांतों को याद रखना चाहिए और उसी के अनुसार व्यवहार करना चाहिए। सेनाएं सत्याग्रहियों के पीछे नहीं चलतीं। हालांकि सत्याग्रहियों पर हुई गोलीबारी के बाद भारत ने पुर्तगाल के साथ राजनयिक संबंध तोड़ दिए थे।

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क्यों बदल गया था नेहरू का मन?

सवाल यह भी है कि अगर नेहरू सेना न भेजने के अपने फैसले पर अडिग थे तो फिर 6 साल के अंदर उनका मन क्यों बदल गया? पहला कारण यह था कि वर्षों के निरंतर भारतीय प्रयासों के बावजूद पुर्तगाल की ओर से कोई प्रगति नहीं हुई थी। दूसरा कारण यह था कि पुर्तगाली औपनिवेशिक शासन के अधीन अफ्रीकी राष्ट्र भी चाहते थे कि भारत गोवा की मुक्ति में तेजी लाए। 1961 में गोवा पर सशस्त्र हमले की तैयारियां पूरी तेजी से शुरू हो गईं।

तेज हुआ था सैन्य अभियान

इसको लेकर वेंकटराघवन और सुभा श्रीनिवासन ने अपनी पुस्तक भारत के राज्यों की उत्पत्ति की कहानी में लिखा है कि सैन्य कार्रवाई का अंतिम कारण पुर्तगालियों द्वारा अंजदीप से आ रहे एक भारतीय स्टीमर पर की गई गोलीबारी थी। 1 दिसंबर को भारत ने ऑपरेशन चटनी नामक निगरानी और टोही अभ्यास शुरू किया। दो फ्रिगेट ने गोवा के तट पर गश्त शुरू की और भारतीय नौसेना ने सोलह जहाजों को चार टास्क ग्रुप में विभाजित करके तैनात किया। भारतीय वायु सेना ने पुर्तगाली लड़ाकू विमानों को अपनी स्थिति उजागर करने के लिए लुभाने हेतु उड़ानें शुरू कीं। भारतीय सेना ने गोवा, दमन और दीव की सीमाओं के आसपास सैनिकों को तैनात किया। सेना गोवा को मुक्त कराने के लिए ‘ऑपरेशन विजय’ का नेतृत्व करेगी और नौसेना एवं वायु सेना इसमें सहयोग करेंगी।

17 दिसंबर को सैन्य कार्रवाई शुरू हुई और विजय शीघ्र ही प्राप्त हुई। 19 दिसंबर की शाम को गवर्नर-जनरल वासालो ए सिल्वा ने आत्मसमर्पण कर दिया। गोवा, दमन और दीव मुक्त हो गए और इसके साथ ही भारत में 400 वर्षों से अधिक के पुर्तगाली शासन का भी खात्मा हो गया।

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