महात्मा गांधी की हत्या के बाद तत्कालीन गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) पर 4 फरवरी, 1948 को प्रतिबंध लगा दिया था। सरदार पटेल के नेतृत्व वाले केंद्रीय गृह मंत्रालय ने प्रतिबंध से संबंधित विज्ञप्ति में लिखा था, ”भारत सरकार देश में सक्रिय नफरत और हिंसा की ताकतें, जो देश की आजादी को संकट में डालने और उसके नाम को काला करने का काम कर रही हैं, उन्हें जड़ से उखाड़ने के लिए प्रतिबद्ध है। इस नीति के अनुसरण में भारत सरकार ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को गैरकानूनी घोषित करने का निर्णय लिया है।”
कैसे लगा था बैन?
गांधी की हत्या के बाद गृह मंत्रालय ने आरएसएस पर आगजनी, डकैती, हत्या, अवैध हथियार और गोला-बारूद एकत्र करने, सरकार के खिलाफ असंतोष पैदा करने के लिए आतंकवादी तरीकों का सहारा लेने और पुलिस और सेना को अपने अधीन करने का आरोप लगाया था।
गांधी की हत्या से आरएसएस और हिंदू महासभा के खिलाफ सरकार और आम लोगों का गुस्सा बढ़ता जा रहा था। गुस्से से बचने के लिए आरएसएस के सरसंघचालक (प्रमुख) एमएस गोलवलकर ने सभी शाखाओं को 13 दिनों तक शोक मनाने का निर्देश जारी किया।
गांधी की हत्या से संघ भी दु:खी है यह दिखाने के लिए आरएसएस के प्रांत संघचालक (प्रदेश प्रमुख) लाला हंसराज गुप्ता और प्रांत प्रचारक वसंतराव ओके को कांग्रेस नेताओं से मिलने बिड़ला भवन भेजा गया था। लेकिन संघ के प्रयासों को कोई सकारात्मक प्रभाव नहीं हुआ क्योंकि अमृतसर में प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने घोषणा कर दी कि “राष्ट्रपिता की हत्या के लिए आरएसएस जिम्मेदार है।”
अंततः भारत सरकार ने तत्कालीन आरएसएस प्रमुख गोलवलकर को गिरफ्तार कर लिया और 4 फरवरी 1948 को एक अधिसूचना जारी कर आरएसएस पर प्रतिबंध लगा दिया गया। गृह मंत्रालय के अभिलेखागार में वह विज्ञप्ति आज भी उपलब्ध है।
आरएसएस ने बैन का भी किया उल्लंघन?
जून 1948 में तत्कालीन हिंदू महासभा नेता श्यामा प्रसाद मुखर्जी को लिखे गए एक पत्र से पता चलता है कि सरकार द्वारा प्रतिबंध लगाए जाने के बावजूद आरएसएस गुप्त रूप से सक्रिय था। पत्र में कहा गया है कि आरएसएस की गतिविधियां “सरकार और राज्य के अस्तित्व के लिए एक स्पष्ट खतरा हैं। हमारी रिपोर्ट बताती है कि प्रतिबंध के बावजूद वे गतिविधियां कम नहीं हुई हैं। वास्तव में जैसे-जैसे समय बीत रहा है आरएसएस के लोग अधिक उग्र होते जा रहे हैं।”
कैसे हटा प्रतिबंध?
संघ पर सरकार का प्रतिबंध जुलाई 1949 तक लगा रहा। 11 जुलाई 1949 को पटेल ने गोलवरकर से तमाम शर्तों पर लिखित आश्वासन लेने के बाद बैन हटाया। पटेल की शर्त थी कि संघ हिंसा और गोपनियता त्याग कर भारतीय ध्वज और संविधान के प्रति वफादार रहने की शपथ लेते हुए लोकतांत्रिक व्यवस्था में विश्वास रखेगा। राजनीतिक गतिविधियों से दूर रहकर सांस्कृतिक संगठन की तरह कार्य करेगा। साथ ही अपने अपना संविधान प्रकाशित करेगा, जिसमें संगठन के भीतर लोकतांत्रिक ढंग से चुनाव का भी जिक्र हो।