भारत और पाकिस्तान 1947 में एक साथ आजाद हुए लेकिन दोनों देश संविधान के रास्ते पर अलग-अलग ढंग से आगे बढ़े। भारत में जहां 26 नवंबर 1949 को संविधान अंगीकृत (adopt) किया गया तो वहीं पाकिस्तान में संविधान निर्माण कई दशकों तक राजनीतिक संघर्षों, सत्ता संघर्ष और अस्थिरता में उलझा रहा।
भारत की संविधान सभा ने 2 साल, 11 महीने और 18 दिनों की बहस और लगभग 165 बैठकों के बाद एक ऐसा दस्तावेज तैयार किया जिसमें संघीय ढांचा, मौलिक अधिकार, न्यायपालिका की स्वतंत्रता और सामाजिक न्याय को केंद्र में रखा गया। संविधान सभा के सदस्यों में वैचारिक मतभेद जरूर थे, लेकिन इसके बावजूद अंतिम मसौदे को सर्वसम्मति के करीब समर्थन मिला।
पाकिस्तान ने स्थायी संविधान बनाने के लिए लंबा संघर्ष किया
डॉ. भीमराव आंबेडकर की अध्यक्षता वाली ड्राफ्टिंग कमेटी ने बारीकी से विभिन्न देशों के संवैधानिक मॉडल का अध्ययन करके एक ऐसा ढांचा दिया जो आज भी दुनिया के सबसे सफल लोकतांत्रिक संविधान में शुमार है। दूसरी तरफ पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान ने 1947 से 1956 तक एक स्थायी संविधान बनाने के लिए लंबा संघर्ष किया। राजनीतिक नेतृत्व की कमी, राज्यों के बीच असंतुलन, सेना और नौकरशाही के बढ़ते प्रभाव और पूर्वी-पश्चिमी पाकिस्तान के बीच प्रतिनिधित्व का विवाद संविधान निर्माण को बार-बार रोकता रहा।
मोहम्मद अली जिन्ना की मौत के बाद पाकिस्तान में पावर सेंटर बहुत कमजोर हो गए और चुनी गई सरकारों की जगह नौकरशाही-सेना गठजोड़ मजबूत होता गया। पाकिस्तान का पहला संविधान 1956 में बना, लेकिन महज 2 साल बाद 1958 में मार्शल लॉ लग गया और संविधान निलंबित कर दिया गया।
पाकिस्तान में लोकतांत्रिक परंपरा क्यों मजबूत नहीं हो सकी?
जानकारों का मानना है कि पाकिस्तान में लोकतांत्रिक परंपरा इसलिए जड़ नहीं पकड़ सकी क्योंकि वहां सत्ता बार-बार जनता की चुनी हुई सरकार के हाथों से फिसलकर मिलिट्री के पास जाती रही। इसी वजह से पाकिस्तान को 1962 और 1973 में नए संविधान लाने पड़े। पाकिस्तान आज भी कई बार संवैधानिक संकटों का सामना करता है। दूसरी ओर भारत में संविधान एक स्थिर और मजबूत ढांचा प्रदान करता रहा जिसने सत्ता के शांतिपूर्ण हस्तांतरण, चुनावी प्रक्रिया और न्यायिक स्वतंत्रता को सुनिश्चित किया।
भारत और पाकिस्तान के संवैधानिक सफर का यह अंतर बताता है कि लोकतांत्रिक मूल्यों पर टिके मजबूत संस्थान किसी भी राष्ट्र की स्थिरता के लिए कितने जरूरी होते हैं। जहां भारत में संविधान राष्ट्रीय एकता और नागरिक अधिकारों की नींव बना, वहीं पाकिस्तान में यह प्रक्रिया लंबे समय तक सत्ता संघर्षों में अटकी रही। यही वजह है कि विशेषज्ञ पाकिस्तान में संविधान को अक्सर ‘टेढ़ी खीर’ बताए जाने वाले संदर्भ में देखते हैं।
पाकिस्तान में संविधान लागू करने क्यों दिक्कतें आईं? टाइम लाइन से समझिए
1947 में स्वतंत्रता के तुरंत बाद की समस्याएं
- पाकिस्तान का प्रशासनिक ढांचा अस्त-व्यस्त था।
- अनुभवी संविधान-विशेषज्ञ और नौकरशाहों की भारी कमी।
- शरणार्थी संकट और आर्थिक अव्यवस्था ने संवैधानिक काम को धीमा किया।
1948 में जिन्ना की मौत
- जिन्ना की मौत से पाकिस्तान की राजनीतिक स्थिरता हिल गई और नेतृत्व शून्य हो गया।
- इस वजह से संविधान सभा में दिशा देने वाला मजबूत नेतृत्व नहीं बचा।
1949 में Objectives Resolution पास हुआ, लेकिन विवाद बढ़े
- पाकिस्तान की पहचान ‘इस्लामी राज्य’ हो या ‘लोकतांत्रिक राज्य’ – इस पर भारी विवाद था।
- पूर्वी पाकिस्तान-पश्चिमी पाकिस्तान के बीच प्रतिनिधित्व का असंतुलन था।
- उर्दू बनाम बांग्ला भाषा विवाद ने भी संविधान निर्माण प्रक्रिया को धीमा किया।
1951 में प्रधानमंत्री लियाकत अली खान की हत्या
- लियाकत अली खान की हत्या के बाद नेतृत्व संकट और राजनीतिक अस्थिरता चरम पर थी।
- नौकरशाही और सेना ने संवैधानिक प्रक्रिया पर प्रभाव बढ़ाना शुरू किया।
1953-54 के दौरान गवर्नर जनरल गुलाम मुहम्मद का दखल
- गवर्नर जनरल ने संविधान सभा को बर्खास्त कर दिया।
- अदालत ने भी उनके कदम को सही ठहराया।
- इससे संविधान सभा का अधिकार कमजोर हुआ और संविधान बनना और टल गया।
1956 में पहला संविधान लागू, लेकिन…
- संविधान बना, लेकिन राजनीतिक नेतृत्व कमजोर।
- अस्थिर सरकारें और बार-बार PM बदलने से संविधान जमीन पर नहीं उतर पाया।
- पूर्वी और पश्चिमी पाकिस्तान के बीच सत्ता और संसाधन का असंतुलन और गहराया।
1958 में मार्शल लॉ और संविधान निलंबित
- जनरल अयूब खान ने मार्शल लॉ लगाया।
- पहला संविधान सिर्फ 2 साल में निलंबित हो गया।
- पाकिस्तान में संविधान से ज्यादा सेना का प्रभाव स्थापित हुआ।
1962 में दूसरा संविधान, लेकिन लोकतंत्र सीमित
- राष्ट्रपति प्रणाली थोप दी गई।
- राजनीतिक दल कमजोर किए गए।
- यह संविधान जनता की बजाय सेना और नौकरशाही की पसंद के अनुसार बना।
1971 में बांग्लादेश का अलग होना
- प्रतिनिधित्व विवाद और राजनीतिक भेदभाव चरम पर।
- संविधान की नाकामी की सबसे बड़ी मिसाल – देश का दो हिस्सों में बंटना।
1973 में नया संविधान (आज भी लागू), लेकिन…
- लागू हुआ पर जल्द ही 1977 में फिर सेना ने सत्ता संभाली।
- संविधान में बार-बार सैन्य संशोधन।
- लोकतांत्रिक ढांचे में स्थिरता नहीं आ सकी।
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भारत सरकार ने साल 2015 में प्रति वर्ष 26 नवंबर को संविधान दिवस के रूप मे मनाने की शुरुआत की। 26 नवंबर 1949 को भारत की संविधान सभा द्वारा तैयार किया गया संविधान स्वीकृत किया गया था। यह संविधान 26 जनवरी 1950 से पूरे देश पर लागू हुआ।
