Jharkhand Assembly Election Results 2024: बीजेपी को महाराष्ट्र में मिली शानदार जीत के जश्न को झारखंड की हार ने कुछ हद तक फीका कर दिया है। बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्व और झारखंड इकाई उन कारणों की पड़ताल कर रही है कि राज्य में आक्रामक चुनाव प्रचार अभियान के बाद भी आखिर पार्टी की इतनी बुरी तरह हार क्यों हुई है? 81 सीटों वाले झारखंड में एनडीए को 22 जबकि इंडिया गठबंधन ने 56 सीटें जीती हैं और सत्ता में वापसी की है। जबकि चुनाव प्रचार के दौरान ऐसा माना जा रहा था कि चुनावी लड़ाई बहुत नजदीकी रहेगी।

मतदान के बाद आए तमाम एग्जिट पोल ने भी यही कहा था कि झारखंड में कांटे का मुकाबला देखने को मिलेगा लेकिन मतदाताओं ने इंडिया गठबंधन को बड़ा जनादेश दिया है।

सवाल यह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह, राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह सहित तमाम बड़े नेताओं के आक्रामक चुनाव प्रचार अभियान और कथित रूप से हो रही बांग्लादेशी घुसपैठ और धर्मांतरण का मुद्दा उठाने के बाद भी बीजेपी चुनाव क्यों हार गई?

शिवराज, हिमंता भी नहीं दिला सके जीत

झारखंड को लेकर बीजेपी बहुत गंभीर थी और इसीलिए उसने राजनीति के दिग्गज खिलाड़ी, डेढ़ दशक से ज्यादा वक्त तक मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे और केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान, हिंदुत्व के फायर ब्रांड चेहरे और असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा को इस राज्य में कमल खिलाने की जिम्मेदारी दी थी लेकिन पार्टी की सारी रणनीति धरी की धरी रह गई।

चलिए, उन पांच कारणों की पड़ताल करते हैं जिनकी वजह से बीजेपी और एनडीए गठबंधन को झारखंड में बुरी हार मिली है।

1- जमीनी मुद्दों को किया नजरअंदाज, घुसपैठ पर हो गई सीमित

झारखंड में बीजेपी का सह प्रभारी बनने के तुरंत बाद हिमंता बिस्वा सरमा ने झारखंड के संथाल परगना इलाके में कथित रूप से बांग्लादेशी घुसपैठ होने की बात को जोर-शोर से उठाया। अन्य बीजेपी नेताओं ने लव और लैंड जिहाद की बात की और यह दावा किया कि झारखंड के आदिवासी इलाकों में बांग्लादेशी घुसपैठिये आ रहे हैं और यहां की आदिवासी महिलाओं से शादी कर उनकी संपत्ति हड़प रहे हैं। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी चुनावी सभाओं में घुसपैठ के मुद्दे को उठाया था।

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महाराष्ट्र चुनाव में बीजेपी की अगुवाई में महायुति को मिली बड़ी जीत। (Source-PTI)

बीजेपी ने चुनाव अभियान के दौरान आदिवासियों की रोटी, माटी, बेटी की हिफाजत को सबसे बड़ा मुद्दा बनाया और इसके चलते उसने बाकी मुद्दों को पूरी तरह नजरअंदाज कर दिया। चुनाव नतीजों से पता चलता है कि संथाल परगना इलाके में बीजेपी की यह पूरी रणनीति ध्वस्त हो गयी और पार्टी यहां पर अपना खाता भी नहीं खोल पाई। हालांकि उत्तरी छोटा नागपुर इलाके में पार्टी को थोड़ा सा फायदा हुआ और यहां 25 में से 14 सीटें बीजेपी और उसके सहयोगी दलों को मिलीं।

बीजेपी के एक नेता ने द इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में कहा कि बीजेपी के पास कई मुद्दे थे जिन्हें वह उठा सकती थी। जैसे- नौकरियों की कमी, हेमंत सोरेन के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप, सोरेन सरकार के मंत्री आलमगीर आलम से धन की बरामदगी, भर्ती परीक्षाओं के दौरान उम्मीदवारों की मौत लेकिन उसने सिर्फ घुसपैठ पर ही अपना ध्यान केंद्रित कर दिया।

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कुंदरकी में बीजेपी की जीत की है जोरदार चर्चा। (Source-FB)

2– जयराम महतो का चुनाव लड़ना

कुड़मी महतो समुदाय के उभरते हुए नेता जयराम महतो ने कई विधानसभा सीटों पर बीजेपी और एनडीए को नुकसान पहुंचाया। महतो की पार्टी झारखंड लोकतांत्रिक क्रांतिकारी मोर्चा को कम से कम 11 सीटों- सिल्ली, बोकारो, गोमिया, गिरिडीह, टुंडी, इचागढ़, तमार, चक्रधरपुर, चंदनकियारी, कांके और खरसावां पर मिले वोट उस सीट पर हार-जीत के अंतर से ज्यादा हैं और सिर्फ एक सीट डुमरी में इसने झामुमो को नुकसान पहुंचाया। डुमरी सीट से जयराम महतो चुनाव जीते हैं।

जयराम महतो के राजनीति में आने की वजह से सबसे ज्यादा नुकसान बीजेपी की सहयोगी पार्टी ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन (आजसू) को हुआ है। आजसू को इस चुनाव में सिर्फ एक सीट पर जीत मिली जबकि 2019 में उसने दो सीटें जीती थी। चुनाव में आजसू के प्रमुख सुदेश महतो खुद भी सिल्ली विधानसभा सीट से चुनाव हार गए। जयराम महतो के राजनीति में उभरने के बाद झारखंड में एक बड़े ओबीसी चेहरे की लड़ाई शुरू हुई और इसमें महतो आगे निकलते दिखाई दिए हैं।

3- मैय्या सम्मान योजना और कल्पना सोरेन

झारखंड में महिला मतदाताओं की ज्यादा वोटिंग भी एनडीए की हार की एक बड़ी वजह बनी है। चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक, 91.16 लाख महिलाओं ने जबकि 85.64 पुरुषों ने चुनाव में वोट डाला। इस लिहाज से लगभग महिलाओं ने 6 लाख वोट ज्यादा डाले।

हेमंत सोरेन सरकार की ओर से चुनाव के ऐलान से ठीक पहले लागू की गई मैय्या सम्मान योजना की वजह से महिला मतदाताओं का ज्यादा समर्थन इंडिया गठबंधन को मिला है। इस योजना के तहत 21 से 49 साल की महिलाओं को हर महीने 1000 रुपए दिए जाते हैं।

झामुमो ने मैय्या सम्मान योजना का चेहरा हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना मुर्मू सोरेन को बनाया। कल्पना ने इस योजना को झारखंड की महिलाओं के बीच में पहुंचाने के लिए पूरे राज्य में लगातार बैठकें की और उन्हें इस योजना के बारे में बताया।

4- आरक्षित सीटों पर बीजेपी की बड़ी हार

झारखंड की विधानसभा में 28 सीटें जबकि लोकसभा की 5 सीटें आरक्षित हैं। 2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को लोकसभा में आरक्षित पांच सीटों में से एक भी सीट पर जीत नहीं मिली थी और 28 आरक्षित विधानसभा सीटों में से बीजेपी सिर्फ एक सीट पर जीत पाई है। इससे ऐसा लगता है कि घुसपैठ का उसका नैरेटिव पूरी तरफ फेल हो गया है।

इसका एक मतलब यह भी निकाला जा सकता है कि आदिवासी समुदाय बीजेपी के साथ नहीं जुड़ पाया जबकि लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद बीजेपी ने बड़े पैमाने पर आदिवासियों तक पहुंचने की कोशिश की थी। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी भी आदिवासी समुदाय से ही आते हैं। बीजेपी ने आदिवासियों के भगवान कहे जाने वाले बिरसा मुंडा की जयंती को जनजातीय गौरव दिवस के रूप में मनाने का ऐलान किया और खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बिरसा मुंडा के जन्म स्थान खूंटी में स्थित उलिहातू पहुंचे थे।

लेकिन झामुमो और इंडिया गठबंधन ने यह प्रचार किया कि जांच एजेंसियों के द्वारा मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी सिर्फ इसलिए की गई क्योंकि वह आदिवासी समुदाय से आते हैं।

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महाराष्ट्र चुनाव में महायुति को मिली है प्रचंड जीत। (Source-FB)

विधानसभा चुनाव में बीजेपी के कई बड़े आदिवासी नेताओं की पत्नियों को चुनाव में हार का सामना करना पड़ा। पूर्व मुख्यमंत्री तथा पूर्व केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा की पत्नी मीरा मुंडा, पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा की पत्नी गीता कोड़ा भी चुनाव हार गईं। पूर्व मुख्यमंत्री चंपई सोरेन के बेटे बाबूलाल सोरेन बीजेपी के टिकट पर चुनाव हार गए।

5- खराब इलेक्शन मैनेजमेंट

इस चुनाव में बीजेपी के खराब प्रदर्शन और हार के पीछे खराब इलेक्शन मैनेजमेंट को भी एक बड़ी वजह बताया गया है। इसके अलावा टिकट बंटवारे में गलती की भी बात सामने आई है। ऐसा कहा जा रहा है कि कम से कम सात विधानसभा सीटों पर पार्टी ने गलत टिकट बांटे। कुछ सीटों पर बीजेपी बागियों से निपटने में भी फेल रही और यह भी उसकी हार की वजह रहा।

बीजेपी ने चुनाव प्रचार के दौरान उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को भी मैदान में उतारा था। योगी आदित्यनाथ के बंटेंगे तो कटेंगे के नारे ने महाराष्ट्र और झारखंड के चुनाव प्रचार के दौरान काफी चर्चा बटोरी थी लेकिन हिंदुत्व के तमाम मुद्दों के साथ थी यह नारा भी चुनाव में नहीं चला।