आतिशी ने दिल्ली की सबसे युवा मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ले ली है। इसके साथ ही वह दिल्ली की तीसरी महिला मुख्यमंत्री भी बन गई हैं। आतिशी को मुख्यमंत्री बनाना आम आदमी पार्टी के सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल का एक राजनीतिक दांव है। केजरीवाल ने जेल से बाहर आने के बाद इस्तीफा दे दिया था। दिल्ली में अगले साल की शुरुआत में विधानसभा के चुनाव होने हैं।
आतिशी को उनके विरोधियों के द्वारा एक ‘डमी कैंडिडेट’ या ‘प्रॉक्सी’ कहकर बुलाया जा रहा है। उन्हें बिहार की पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी भी कहा जा रहा है। राबड़ी देवी को उनके पति लालू प्रसाद यादव ने जेल जाने से पहले मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंप दी थी।
मुख्यमंत्री केजरीवाल ने अपनी पत्नी सुनीता केजरीवाल को दिल्ली के मुख्यमंत्री की कुर्सी नहीं सौंपी। जबकि कई लोगों को ऐसा लगता था कि वह भी लालू यादव की तरह ही कदम उठाएंगे।
चुनाव बार फिर सीएम बनेंगे केजरीवाल
आतिशी को मुख्यमंत्री बनाए जाने का फैसला दिल्ली की राजनीति में हो रहे बदलावों से जुड़ा हुआ है। आतिशी 2 महीने या फिर 5 महीने के लिए मुख्यमंत्री रहेंगी, यह इस बात पर निर्भर करेगा कि दिल्ली में विधानसभा के चुनाव कब होते हैं। आतिशी ने खुद कहा है कि चुनाव के बाद अगर आम आदमी पार्टी जीतती है तो अरविंद केजरीवाल ही फिर से मुख्यमंत्री बनेंगे।
आतिशी ने केजरीवाल को बताया ‘गुरु’
आतिशी का चुनाव सावधानीपूर्वक किया गया है और उन्हें पार्टी के वरिष्ठ नेताओं पर तरजीह दी गई है। आतिशी के पास शानदार एकेडमिक रिकॉर्ड है और उन्होंने इस बात को साबित किया है कि वह जटिल मुद्दों को समझती हैं। जब अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसोदिया सहित पार्टी के अन्य नेता जेल में थे तो उस समय वह काफी मुखर थीं।
आतिशी ने मनीष सिसोदिया के साथ शिक्षा के क्षेत्र में काम किया है और केजरीवाल और सिसोदिया के लिए अपनी वफादारी को भी साबित किया है। उन्होंने केजरीवाल को अपना ‘गुरु’ बताया है।
अगर आम आदमी पार्टी विधानसभा चुनाव जीत जाती है और केजरीवाल फिर से मुख्यमंत्री बनना चाहेंगे तो आतिशी उनके लिए कोई खतरा नहीं बनेंगी। आम आदमी पार्टी की एक और महिला नेता राखी बिड़ला को हटा पाना केजरीवाल के लिए बेहद मुश्किल होता। राखी बिड़ला दलित समुदाय से आती हैं।
आतिशी जन नेता नहीं हैं और उनके पास कोई ऐसी लॉबी भी नहीं है जो उनका समर्थन करती हो। आम आदमी पार्टी उनमें शीला दीक्षित की छवि देखती है। शीला दीक्षित 1998 से 2013 तक लगातार मुख्यमंत्री रही थीं।
मिडिल क्लास तक पहुंचेंगी सीएम
आतिशी उस मिडिल क्लास तक भी पहुंच सकती हैं, जहां पर आम आदमी पार्टी का समर्थन कम हुआ है। दिल्ली के झुग्गी-झोपड़ी वाले इलाकों में आम आदमी पार्टी अभी भी लोकप्रिय है लेकिन मिडिल क्लास की कॉलोनियों में आम आदमी पार्टी को लेकर एंटी इंकम्बेन्सी देखी जा सकती है।
आतिशी पार्टी का एक भरोसेमंद चेहरा भी हैं। आम आदमी पार्टी ने महिलाओं के बीच मजबूत आधार बनाया है और ऐसा उसने स्कूलों में सुधार और महिलाओं के लिए मुफ्त बस यात्रा जैसी योजनाएं करके लागू किया है। अब आतिशी के सामने मुख्यमंत्री महिला सम्मान योजना को लागू करने की जिम्मेदारी है जिसके तहत महिलाओं को हर महीने 1000 रुपए दिए जाएंगे।
केजरीवाल को भी इस बात की उम्मीद है कि आतिशी के जरिये पार्टी को अपनी छवि को सुधारने में मदद मिलेगी और यह ऐसे वक्त में बहुत महत्वपूर्ण है जब केजरीवाल सहित पार्टी के तमाम बड़े नेता कथित शराब घोटाले में आरोपों का सामना कर रहे हैं। आम आदमी पार्टी राजनीति में ईमानदारी की बात कहती रही है।
कई राज्यों में महिलाओं ने संभाली कमान
आतिशी से पहले बीजेपी की सुषमा स्वराज (1998 में कुछ महीने के लिए) और शीला दीक्षित भी मुख्यमंत्री रही हैं। इसके अलावा भी कई राज्यों में जैसे- पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी, तमिलनाडु में जयललिता, जम्मू और कश्मीर में महबूबा मुफ्ती, उत्तर प्रदेश में मायावती भी मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाल चुकी हैं। नंदिनी सत्पथी ओडिशा में और सुचेता कृपलानी यूपी में भी इस पद पर रही हैं। दिल्ली अकेला ऐसा राज्य है जहां अब तक तीन महिला मुख्यमंत्री बन चुकी हैं।
वामपंथी विचारधारा को लेकर घेर रही बीजेपी
बीजेपी ने आतिशी के माता-पिता की वामपंथी विचारधारा पर सवाल उठाया है। बीजेपी ने आतिशी के उपनाम मार्लेना की बात की है। यह नाम उनके माता-पिता ने दिया था और यह मार्क्स और लेनिन से मिलकर बना है। आतिशी के माता-पिता विश्वविद्यालय में प्रोफेसर रहे हैं और कार्यकर्ता भी हैं। उनके द्वारा संसद पर हमले के दोषी अफजल गुरु के समर्थन में बोलने का मुद्दा बीजेपी ने उठाया है। बीजेपी इसे अपने हिंदू वोट बैंक को एकजुट करने के लिए इस्तेमाल कर सकती है जबकि कई लोग ऐसा मानते हैं कि इससे आप को मुस्लिम समुदाय की ओर से मदद मिल सकती है क्योंकि ऐसा कहा जाता है कि आम आदमी पार्टी मुस्लिम मुद्दों पर चुप रहती है और हिंदू समर्थक छवि बनाने की कोशिश कर रही है।
केजरीवाल के सामने हैं चुनौतियां
केजरीवाल को इस बात का श्रेय जाता है कि उन्होंने पिछले 10 सालों में राजनीतिक आंदोलन से एक राष्ट्रीय पार्टी बनाई और उसे राष्ट्रीय पहचान भी दिलाई। लेकिन आम आदमी पार्टी को अन्य स्थापित राजनीतिक दल एक ‘अपस्टार्ट’ मानते हैं और केजरीवाल को इसका ब्लैक बॉक्स। लेकिन केजरीवाल ने अपना राजनीतिक कौशल दिखाया है और वह अपने राजनीतिक विरोधियों को चौंकाने के लिए पहचाने जाते हैं। जैसा उन्होंने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देकर किया।
मौजूदा वक्त में केजरीवाल सबसे बड़ी चुनौती का सामना कर रहे हैं। उनके सामने दिल्ली की सत्ता में बने रहने की चुनौती है। केजरीवाल को बीजेपी से तो लड़ना ही है कांग्रेस से भी, जो खुद को फिर से जिंदा करने की कोशिश कर रही है।
दिल्ली में मुख्यमंत्री की शक्तियां काफी सीमित हैं लेकिन केजरीवाल इस बात को जानते हैं कि देश की राजधानी होने की वजह से दिल्ली से निकलने वाली आवाज दूर तक जाती है। दिल्ली यूपी, हरियाणा और राजस्थान से घिरा हुआ है और इस वजह से इसकी अहमियत काफी ज्यादा है। एक वक्त में यहां पंजाबी शरणार्थी रहते थे जो विभाजन के वक्त यहां आए थे। अब यहां बिहार से और उत्तराखंड से आए मतदाता भी महत्वपूर्ण हो गए हैं।
आम आदमी पार्टी में पिछले कुछ सालों में कई संकट आने के बावजूद किसी तरह की टूट नहीं हुई। केजरीवाल को अपनी पार्टी को एकजुट रखना होगा, शराब घोटाले के बाद पार्टी को हुए नुकसान को दूर करना होगा और अपने विरोधियों बीजेपी और कांग्रेस से एक कदम आगे रहना होगा।
आतिशी मुख्य रूप से चुनाव के समय की मुख्यमंत्री हैं और देखना होगा कि कम समय में वह किस तरह पार्टी के लिए बिना खतरा बने अपनी छाप छोड़ती हैं।