केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह समाचार एजेंसी एएनआई को दिए एक इंटरव्यू में मानवाधिकार कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ का नाम लेते हैं। इस इंटरव्यू के कुछ ही घंटों बाद तीस्ता को गुजरात एटीएस मुंबई से हिरासत में ले लेती है। दरअसल 9 दिसंबर 2021 को जाकिया जाफरी ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की थी। सह याचिकाकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ थीं।

यह याचिका गुजरात दंगे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और 59 अन्य को एसआईटी से मिली क्लीन चिट को चुनौती देने के लिए दायर की गई थी। 24 जून 2022 को सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका को खारिज कर दिया। जस्टिस एएम खानविलकर की अध्यक्षता वाली पीठ ने फैसला सुनाते हुए कहा, ”हम मजिस्ट्रेट के उस फैसले को सही ठहरा रहे हैं जिसमें एसआईटी की रिपोर्ट को स्वीकार कर लिया गया था। इस अपील में कोई मेरिट नहीं है। हम इसे खारिज करते हैं”

इस फैसले के अगले ही दिन यानी शनिवार को तीस्ता सीतलवाड़ हिरासत में ले ली गईं। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, तीस्ता के खिलाफ शनिवार को ही अहमदाबाद क्राइम ब्रांच के एक इंस्पेक्टर ने FIR दर्ज करवाई थी। रविवार को तीस्ता अहमदाबाद क्राइम ब्रांच को सौंप दी गई हैं। जहां उन्हें मेडिकल जांच के लिए सिविल अस्पताल ले जाया गया। मजिस्ट्रेट कोर्ट ले जाने के दौरान तीस्ता ने बताया कि उनकी जान को खतरा है और गिरफ्तारी अवैध है। अब यहां रुक कर पहले तीस्ता सीतलवाड़ के बारे में जान लेते हैं, फिर आगे समझेंगे की 2002 के गुजरात दंगे से इनका क्या कनेक्शन है?

कौन हैं तीस्ता सीतलवाड़? : तीस्ता सीतलवाड़ ने मुंबई से एक पत्रकार के रूप में अपना करियर शुरू किया। आज उन्हें सामाजिक कार्यकर्ता और मानवाधिकार कार्यकर्ता के तौर पर भी जाना जाता है। तीस्ता का जन्म 9 फरवरी को महाराष्ट्र के मुंबई में हुआ था। मुंबई यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन किया है। कानून की पढ़ाई भी कर रही थीं, लेकिन उसे बीच में ही छोड़कर पत्रकारिता के क्षेत्र में चली गयीं। इनके के पति जावेद आनंद भी पत्रकार हैं।

तीस्ता सीतलवाड़ के दादा एम. सी. सीतलवाड़ आजाद भारत के पहले अटॉर्नी जनरल थे। इनके परदादा चिमनलाल हरिलाल सीतलवाड़ हंटर कमीशन के तीन भारतीय सदस्यों में से एक थे, जिन्होंने जलियांवाला बाग हत्याकांड की जांच की थी। कमीशन ने डायर के कृत्यों की निंदा करते हुए उसे अपने पद से इस्तीफा देने का निर्देश दिया था। तीस्ता के परदादा और भारत के पहले कानून मंत्री और संविधान निर्माता डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने साथ मिलकर मुंबई में बहिष्कृत हितकारिणी सभा की स्थापना की थी। 20 जुलाई 1924 को स्थापित इस सभा से ही ‘शिक्षित बनो, संगठित रहो, संघर्ष करो’ का बहुचर्चित नारा पहली बार निकला था। डॉ आंबेडकर बहिष्कृत हितकारिणी सभा चेयरमैन थे और चिमनलाल सीतलवाड़ प्रेसिडेंट।

तीस्ता को साल 2007 में तत्कालीन राष्ट्रपति अब्दुल कलाम ने पद्मश्री से सम्मानित किया था। साल 2002 में इन्हें राजीव गांधी राष्ट्रीय सद्भावना पुरस्कार दिया गया था। तीस्ता को साल 2003 में नूर्नबर्ग अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार भी मिल चुका है। फिलहाल तीस्ता सिटिजन फॉर जस्टिस एंड पीस (CJP) नामक एनजीओ की संस्थापक ट्रस्टी और सचिव हैं। इस एनजीओ की स्थापना तीस्ता ने अपनी पति जावेद आनंद के साथ मिलकर गुजरात दंगे के बाद पीड़ितों को कानूनी सहायता प्रदान करने के लिए किया था। इसके अलावा एक मासिक पत्रिका भी प्रकाशित करती हैं, जो भारत में सांप्रदायिक राजनीति पर जानकारी और विश्लेषण प्रदान करता है। सबरंग कम्युनिकेशंस की स्थापना भी तीस्ता ने ही की थी, ये एक न्यूज वेब पोर्टल की तरह काम करता है।

गुजरात दंगा : 27 फरवरी 2002 के गुजरात के पंचमहल जिले के गोधरा रेलवे स्टेशन पर साबरमती एक्सप्रेस के एस-6 डिब्बे में आग लगने से 59 लोगों की मौत हो गयी थी। ज्यादातर लोग अयोध्या से कार सेवा कर लौट रहे थे। ट्रेन में आग कैसे लगी, इसकी जांच के लिए नानावटी आयोग का गठन किया गया था, जिसकी रिपोर्ट आज तक सार्वजनिक नहीं की गई। रिपोर्ट का एक अंश सामने आया था, जिसमें ट्रेन में लगी आग को सोची समझी साजिश बताया गया था। पुलिस ने इस मामले के लिए जिस मौलवी सईद उमरजी को मुख्य साजिशकर्ता बनाया था, उसे कोर्ट ने रिहा कर दिया था। इस मामले में अदालत ने 31 लोगों को दोषी माना था और 63 लोगों को रिहा कर दिया था।

गोधरा कांड के अगले दिन यानी 28 फरवरी 2002 को गुजरात में भीषण हिन्दू-मुस्लिम दंगा हुआ। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 1044 लोग मारे गए। इसमें से 790 मुस्लिम और 254 हिन्दू थे। 28 फरवरी की सुबह दंगाइयों की एक टोली गुलबर्ग सोसाइटी भी पहुंची थी। वहां 68 लोगों की जान गई। ज्यादातर को जिंदा जला दिया गया। मरने वालों में कांग्रेस के पूर्व सांसद एहसान जाफरी भी थे। इन्हीं की पत्नी जाकिया जाफरी हैं, जिनका आरोप है कि एहसान ने सुरक्षा के लिए पुलिस और तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी से संपर्क किया था। लेकिन मदद नहीं मिली। मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी पर आरोप लगा कि उन्होंने इस मार काट को रोकने के लिए गंभीरता से कदम नहीं उठाया। राज्य सरकार दंगा काबू करने में असफल रही थी। तीसरे दिन सेना उतारकर हालात काबू किया गया था।

तीस्ता का कनेक्शन : मार्च 2007 में पहली बार तत्कालीन सीएम नरेंद्र मोदी और सीतलवाड़ आमने-सामने आए थे। तब तीस्ता ने गुजरात हाईकोर्ट के समक्ष एक विशेष याचिका में खुद को जकिया जाफरी की सह-याचिकाकर्ता के रूप में नामित किया था। याचिका में 2002 के दंगों में कथित भूमिका के लिए मोदी और 61 अन्य राजनेताओं, नौकरशाहों और पुलिस अधिकारियों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने की मांग की गई थी। साथ ही मोदी के खिलाफ सीबीआई जांच की भी मांग की गई थी।

कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी। 2008 में जाकिया ने तीस्ता के संगठन सिटिज़न्स फ़ॉर जस्टिस एंड पीस के साथ संयुक्त रूप से सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। इस बार सुप्रीम कोर्ट ने सुन ली। एक एसआईटी पहले से ही गुजरात दंगे की जांच कर रही थी। कोर्ट ने उसे ही जांच का आदेश दे दिया। साल 2012 में एसआईटी ने अहमदाबाद की निचली अदालत में अपनी रिपोर्ट पेश करते हुए नरेंद्र मोदी को क्लीन चिट दे दिया। एसआईटी का कहना है था कि मोदी के खिलाफ केस चलाने के लिए पर्याप्त सबूत नहीं है। 2021 में इसी क्लीन चिट को तीस्ता सीतलवाड़ और जाकिया जाफरी ने चुनौती दी थी, जिसे कोर्ट शुक्रवार ने खारिज कर दिया।