दिल्ली में सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी (आप) के मुखिया अरविंंद केजरीवाल जेल में हैं तो बाहर उनकी आवाज बने हैं राज्यसभा सांसद संजय सिंंह और दिल्ली सरकार की मंत्री आतिशी। लेकिन, इन दोनों के लिए भी चुनौतियां कम नहीं हैं। सबसे बड़ी चुनौती है जनता का विश्वास बनाए रखना। लेकिन, ये दोनों खुद निजी चुनौतियों से जूझ रहे हैं, जिससे केजरीवाल की विश्वसनीय आवाज बन कर जनता का विश्वास बनाए रखने का इनका काम प्रभावित कर सकता है। तो क्या हैं, इनकी चुनौतियां?
संजय सिंह के लिए चुनौतियां
ईडी और सीबीआई जांच: संजय सिंह पर कई बार भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं, खासकर दिल्ली शराब नीति मामले में वह जेल भी जा चुके हैं और अभी जमानत पर हैं। प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) और केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) जैसी केंद्रीय एजेंसियों की जांच उनकी राजनीतिक गतिविधियों में बाधा डाल सकती है और अनिश्चितता का माहौल पैदा कर सकती है।

राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता: दिल्ली में बीजेपी और कांग्रेस एक दूसरे के विरोधी हैं और संजय सिंह को आप के प्रभाव को बनाए रखने और बढ़ाने के लिए इन राजनीतिक प्रतिद्वंद्विताओं को पार करना होगा।
पार्टी की सक्रियता: पार्टी के भीतर एकता सुनिश्चित करना और पार्टी की सक्रियता को बनाए रखना संजय सिंह के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकता है, खासकर पार्टी के सदस्यों के बीच अलग-अलग विचारों और महत्वाकांक्षाओं के बीच।
आतिशी के लिए चुनौतियां
शिक्षा में सुधार और उम्मीदें: आतिशी दिल्ली के शैक्षिक सुधारों में महत्वपूर्ण भूमिका निभा चुकी हैं। चुनौती इन सुधारों को बनाए रखने और जनता की उम्मीदों को पूरा करने की है। बतौर शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया ने दिल्ली की शिक्षा व्यवस्था को लेकर जनता में आप सरकार की एक सकारात्मक छवि बनाई थी। उस छवि को और मजबूत करना आतिशी के लिए चुनौती रहेगी।
प्रचार और मतदाता संपर्क: प्रभावी प्रचार और मतदाता संपर्क के लिए लगातार प्रयास करते रहना और बीजेपी को टक्कर देने के लिए लगातार नई नीतियां बनाते रहना बड़ी चुनौती होगी। लगातार मीडिया के सामने आकर सीएम, पार्टी या सरकार की बात रखने के चलते आतिशी पार्टी और सरकार का एक प्रमुख चेहरा बन गई हैं। इस नाते इस चुनौती से पार पाना उनके लिए काफी अहम होगा।

साल 2012 में दिल्ली के रामलीला मैदान में भ्रष्टाचार के खिलाफ और लोकपाल की मांग को लेकर हुए आंदोलन से एक नए राजनीतिक दल का जन्म हुआ था। इस राजनीतिक दल का नाम था- आम आदमी पार्टी।
यह पार्टी अपने 12 साल के छोटे से सफर में दिल्ली और पंजाब में अपनी सरकार बनाने में कामयाब रही और इसने राष्ट्रीय पार्टी होने का मुकाम भी हासिल किया। लेकिन दिल्ली की अरविंद केजरीवाल सरकार द्वारा पहले लाई गई और फिर रद्द की गई शराब नीति की वजह से पार्टी भयंकर मुश्किलों में फंसी हुई है।
पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल लंबे वक्त से जेल में हैं। इसके अलावा पार्टी के अन्य नेता और पूर्व उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया, पूर्व मंत्री सत्येंद्र जैन, पार्टी के कम्युनिकेशन विभाग के इंचार्ज संदीप नायर भी जेल की सलाखों के पीछे हैं।
पार्टी के एक और बड़े नेता और राज्यसभा सांसद संजय सिंह इसी कथित आबकारी घोटाले के मामले में 6 महीने जेल काट चुके हैं।

अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसोदिया
जब तक केजरीवाल और सिसोदिया जेल नहीं गए थे तो पार्टी और सरकार का पक्ष रखने के साथ ही विपक्ष के आरोपों का जवाब देने के लिए मीडिया का फोकस इन्हीं दो चेहरों पर रहता था।
अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसोदिया जैसे बड़े चेहरों के जेल जाने के बाद आम आदमी पार्टी की ओर से बीजेपी के आरोपों का जवाब देना, पार्टी संगठन को देखना, चुनावी तैयारियों के लिए पार्टी को तैयार करना, सरकार और पार्टी के प्रबंधन से जुड़े हुए तमाम कामों को मीडिया तक पहुंचाने के काम में पार्टी की ओर से दो चेहरों को प्रमुख रूप से लगाया गया है।
इनमें पहला नाम संजय सिंह और दूसरा नाम आतिशी का है। संजय सिंह दूसरी बार आम आदमी पार्टी के टिकट पर राज्यसभा पहुंचे हैं तो आतिशी दिल्ली की कालकाजी सीट से विधायक हैं और केजरीवाल सरकार में शिक्षा जैसा अहम मंत्रालय संभाल रही हैं।

कौन हैं संजय सिंह?
2009 में जब अरविंद केजरीवाल ने आरटीआई को लेकर आंदोलन किया था तब संजय सिंह भी उनके साथ इस आंदोलन में उतरे थे। संजय सिंह मूल रूप से सुल्तानपुर के रहने वाले हैं और वहां उन्होंने इस आंदोलन की कमान संभाली थी। संजय सिंह के घर का नाम गुड्डू है और वह आरएसएस द्वारा चलाए जाने वाले स्कूल सरस्वती शिशु विद्या मंदिर से पढ़े हैं।
दिल्ली में जब लोकपाल के लिए आंदोलन हुआ तो संजय सिंह रामलीला मैदान में डटे रहे। अक्टूबर, 2012 में जब आम आदमी पार्टी बनी तो संजय सिंह को राष्ट्रीय प्रवक्ता बनाया गया। संजय सिंह उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य के प्रभारी भी हैं।
संजय सिंह को कुछ दिन पहले ही राज्यसभा में पार्टी के संसदीय दल के नेता की जिम्मेदारी दी गई है राज्यसभा में आम आदमी पार्टी के 10 सांसद हैं। संजय सिंह अरविंद केजरीवाल की गैर मौजूदगी में इंडिया गठबंधन के तमाम दलों के साथ तालमेल बनाने का काम भी देखते हैं। सोशल मीडिया पर उनकी अच्छी-खासी फॉलोइंग है और संसद से लेकर सड़क तक उनकी छवि मोदी सरकार के खिलाफ लड़ने वाले नेता की है।
कौन हैं आतिशी सिंह?
आतिशी का पूरा नाम आतिशी सिंह है और वह दिल्ली में पली-बढ़ी हैं। उनकी पढ़ाई प्रतिष्ठित कॉलेज सेंट स्टीफन से हुई है। इसके बाद उन्होंने ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से इतिहास विषय में मास्टर्स की डिग्री ली।
आतिशी को साल 2015 में उस वक्त दिल्ली के शिक्षा मंत्री रहे मनीष सिसोदिया ने शिक्षा विभाग में सलाहकार नियुक्त किया था। 2018 में उनका नाम तब चर्चा में आया था जब गृह मंत्रालय ने दिल्ली सरकार के द्वारा नियुक्त किए गए 9 सलाहकारों को उनके पद से हटा दिया था। मनीष सिसोदिया ने शिक्षा मंत्री रहते हुए आतिशी के द्वारा शिक्षा विभाग में किए गए काम की तारीफ की थी।
आतिशी दिल्ली के विधानसभा चुनावों में आम आदमी पार्टी के घोषणा पत्र को तैयार करने का काम भी देखती रही हैं।
आतिशी के माता-पिता ‘मार्क्स’ और ‘लेनिन’ से प्रभावित थे इसलिए उन्होंने आतिशी के नाम के आगे मार्लेना जोड़ दिया था। 2018 में उनके नाम को लेकर तब जबरदस्त विवाद हुआ था जब उन्होंने अपने नाम के आगे से मार्लेना हटा दिया था। आम आदमी पार्टी का कहना था कि बीजेपी उन्हें लोगों के बीच एक ईसाई और विदेशी महिला के रूप में पेश कर रही है।
तेजी से आगे बढ़ी आप
अपने गठन के एक साल बाद जब दिसंबर, 2013 में आप ने विधानसभा का चुनाव लड़ा तो लोगों को इस बात की कतई उम्मीद नहीं थी कि यह पार्टी अपने पहले ही चुनाव में राष्ट्रीय राजधानी में इतना शानदार प्रदर्शन करेगी।
70 सीटों वाली दिल्ली की विधानसभा में आप ने 28 सीटों पर जीत दर्ज की थी और कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाई थी। हालांकि यह सरकार सिर्फ 49 दिन ही चली थी लेकिन उसके बाद 2015 और 2020 के विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी ने बीजेपी को चारों खाने चित कर दिया था और कांग्रेस को शून्य पर समेट दिया था।
ऐसे वक्त में जब दिल्ली में विधानसभा के चुनाव बिल्कुल सामने हैं और अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया को जमानत नहीं मिल पा रही है तो केंद्र की एनडीए सरकार का नेतृत्व कर रही भाजपा का मुकाबला करने के लिए पार्टी के अन्य नेताओं और प्रवक्ताओं के साथ संजय सिंह और आतिशी ने मोर्चा संभाला हुआ है।
अगर आने वाले कुछ महीनों में केजरीवाल और सिसोदिया जेल से बाहर नहीं आते हैं तो विधानसभा चुनाव के दौरान इन नेताओं की जिम्मेदारियां बहुत ज्यादा बढ़ जाएंगी क्योंकि पार्टी के चुनाव प्रबंधन के साथ ही पार्टी को जीत दिलाने का काम भी उनके कंधों पर होगा।