राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के दूसरे सरसंघचालक माधवराव सदाशिव गोलवलकर का नाम कई विवादास्पद घटनाओं और बयानों से जुड़ा है। संघ के संस्थापक और प्रथम सरसंघचालक के निधन के बाद गोलवलकर साल 1940 से 1973 तक संघ के मुखिया रहे। वह मुसलमानों को लेकर आपत्तिजनक टिप्पणी करते थे। इस सार्वजनिक तथ्य के बावजूद एक बार उनसे मिलने जमात-ए-इस्लामी का एक प्रतिनिधिमंडल पहुंचा था।

इस मुलाकात का एक जिक्र पत्रकार और लेखक खुशवंत सिंह द्वारा किए गोलवलकर के साक्षात्कार में आता है। ‘इलस्ट्रेटेड वीकली’ का संपादक रहते हुए  17 नवंबर, 1972  को खुशवंत सिंह मुंबई में गोलवलकर से मिले थे। गोलवलकर का वह इंटरव्यू खुशवंत सिंह की किताब ‘Me, the Jokerman: Enthusiasms, Rants and Obsessions’ और श्रीगुरूजी समग्र (खंड-9) दोनों में मिलता है।

‘गोलवलकर मेरी घृणा की सूचि में सबसे ऊपर’

गोलवलकर को लेकर अपने विचार व्यक्त करते हुए खुशवंत सिंह लिखते हैं, “कुछ लोग ऐसे होते हैं कि जिनको बिना समझे ही हम घृणा करने लगते हैं। इस प्रकार के लोगों में गुरु गोलवलकर मेरी सूची में सबसे ऊपर थे। सांप्रदायिक दंगों में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की भूमिका, महात्मा गांधी की हत्या, भारत को धर्मनिरपेक्ष से हिंदू राष्ट्र बनाने के प्रयास आदि अनेक बातें थीं, जो मैंने सुन रखीं थी। फिर भी एक पत्रकार के नाते, उनसे मिलने का मोह में टाल नहीं सका।”

जब मुसलमानों को लेकर पूछा सवाल

औपचारिक बातचीत और कुछ सवालों के बाद खुशवंत सिंह ने गोलवलकर से सीधे पूछ लिया कि मुसलमानों के विषय में आपका क्या कहना है? इस सवाल के जवाब में गोलवलकर ने साफ कहा, “मुझे इसमें कोई संदेह नहीं है कि भारत और पाकिस्तान के प्रति मुसलमानों में जो दोहरी निष्ठा है, उसके लिए ऐतिहासिक कारण ही उत्तरदायी हैं। इस मामले में मुसलमान और हिंदू समान रूप से दोषी हैं। विभाजन के बाद मुसलमानों के भीतर जो असुरक्षा की जो भावना पैदा हुई, वह भी इसका एक कारण है। फिर भी कुछ लोगों की गलती के लिए संपूर्ण समाज को उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता।”

खुशवंत सिंह ने गोलवलकर को दिया सुझाव

गोलवलकर का जवाब सुनकर खुशवंत सिंह उनके सामने सवाल के रूप में एक सुझाव पेश किया। सिंह ने कहा, “हमारे यहां छह करोड़ भारतीय मुसलमान हैं। हम उन्हें खत्म नहीं कर सकते। हम उन्हें निकाल बाहर भी नहीं कर सकते। सभी का धर्म परिवर्तन नहीं कराया जा सकता। यह उनका घर है। इसलिए यह जरूरी है कि उनमें इस बात का भरोसा पैदा करें। उन्हें प्रेम के जरिए जीतें?

जवाब में गोलवलकर ने कहा, “आपके सुझाव का क्रम बदलकर मैं कहना चाहूंगा कि उनकी निष्ठाओं को प्रेम से जीतना ही मुसलमानों के प्रति एकमेव सही नीति है। जमात-ए-इस्लामी का एक प्रतिनिधि मंडल मुझसे मिलने आया था। मैंने उनसे कहा कि मुसलमानों को यह बात भूल जानी चाहिए कि उन्होंने भारत पर राज किया था। विदेशी मुस्लिम देशों को उन्हें अपना घर नहीं समझना चाहिए और भारतीयता के मुख्यधारा में उन्हें शामिल हो जाना चाहिए।”

खुशवंत सिंह ने गोलवलकर से ही मुसलमानों के मुख्यधारा में शामिल होने का रास्ता पूछ लिया। इस पर गोलवलकर ने कहा, “उन्हें सब बातें समझानी होंगी। मुसलमान जो कुछ करते हैं, उससे कभी-कभी गुस्सा आता है, लेकिन हिंदू-रक्त ऐसा है कि उसमें दुर्भाव लंबे समय तक नहीं रहती। समय में घावों को भरने की महान क्षमता है। में आशावादी हूं और मुझे लगता है कि हिदुत्व और इस्लाम एक-दूसरे के साथ रहना सीख लेंगे।”

अपनी किताब में मुसलमानों को बताया था ‘खतरा’

गोलवलकर ने अपनी किताब ‘बंच ऑफ थॉट’ के दूसरे भाग में ‘राष्ट्र और उसकी समस्याओं’ टॉपिक चर्चा की है। उन्होंने अपनी इस किताब में देश के ‘आंतरिक खतरा’ के रूप में मुसलमानों, ईसाइयों और वामपंथियों को रेखांकित किया है। (विस्तार से पढ़ने के लिए लिंक पर क्लिक करें।)