न्यायिक नियुक्तियों की कई अज़ब-गज़ब कहानियां विभिन्न दस्तावेजों और किताबों के जरिए अब सार्वजनिक हैं। बॉम्बे हाईकोर्ट के वकील और लेखक अभिनव चंद्रचूड़ ने अपनी किताब ‘Supreme Whispers’ में बताया है कि कैसे एक समय सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश वाईवी चंद्रचूड़ (Justice Yeshwant Vishnu Chandrachud) को महिला जज नियुक्त करने में चुनौतियों का सामना करना पड़ा था।
क्या है पूरा मामला?
किताब के मुताबिक, तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने वाईवी चंद्रचूड़ से सुप्रीम कोर्ट में एक महिला जज नियुक्त करने का आग्रह किया था। लेकिन उस समय कोई ऐसा उम्मीदवार नहीं था जो पद के लिए पर्याप्त वरिष्ठ हो। महिला जज की तलाश में जस्टिस चंद्रचूड़ एक साउथ इंडियन स्टेट की महिला न्यायाधीश से मिले। वह बहुत वरिष्ठ थीं। लेकिन जस्टिस चंद्रचूड़ को ऐसा लग रहा था कि वह पर्याप्त सक्षम नहीं हैं। इतना ही नहीं जस्टिस चंद्रचूड़ ने यह भी सुना था कि वह अदालत में ही नींद लेने लगती हैं।
न्यायमूर्ति यशवंत विष्णु चंद्रचूड़ साल 1978 से 1985 तक भारत के मुख्य न्यायाधीश रहे थे। वह सुप्रीम कोर्ट 16वें चीफ जस्टिस थे। उनका कार्यकाल सात साल और चार महीने का था। इतने लंबे समय तक सीजेआई रहे वाले वह इकलौते जज हैं।
हाईकोर्ट की पहली महिला जज
हाईकोर्ट में बतौर जज नियुक्त होने वाली पहली महिला जस्टिस अन्ना चांडी थीं। उन्हें फरवरी 1959 में केरल उच्च न्यायालय में नियुक्त किया गया था। वह अप्रैल 1967 तक सेवा में रहीं। भारत के मुख्य न्यायाधीश एसआर दास ने उनकी नियुक्ति की सिफारिश की थी। जस्टिस दास सितंबर 1959 में सेवानिवृत्त हुए थे। उन्होंने अपने विदाई रात्रिभोज में जस्टिस चांडी की नियुक्ति को अपने लिए एक ‘उपलब्धि’ बताया था।
हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय की मुख्य न्यायाधीश लीला सेठ भारत में किसी भी उच्च न्यायालय की पहली मुख्य न्यायाधीश थीं। उनका कार्यकाल 5 अगस्त, 1991 से 20 अक्टूबर, 1992 तक था। साल 2017 में उनका निधन हुआ।
सुप्रीम कोर्ट और महिला जज
सर्वोच्च न्यायालय में नियुक्त होने वाली पहली महिला जज एम फातिमा बीवी थीं। अक्टूबर 1989 में सुप्रीम कोर्ट में पदोन्नत होने से पहले वह केरल उच्च न्यायालय में न्यायाधीश थीं। तब से केवल कुछ महिला जज ही सर्वोच्च न्यायालय में नियुक्त हुई हैं। आंकड़ों की बात करें तो आजादी के बाद से लेकर अब तक सुप्रीम कोर्ट में केवल 11 महिला जजों ने सेवा दी है। अधिकांश का कार्यकाल पांच वर्ष से कम का रहा है। केवल न्यायमूर्ति रूमा पाल ने जनवरी 2000 और जून 2006 के बीच छह साल से थोड़ा अधिक का कार्यकाल पूरा किया है।
वर्तमान में भी सुप्रीम कोर्ट के कुल 34 जजों में से केवल तीन (जस्टिस हेमा कोहली, जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस बेला एम त्रिवेदी) महिला जज हैं। उम्मीद है कि जस्टिस नागरत्ना भारत की पहली मुख्य न्यायाधीश होंगी। वह साल 2027 में 36 दिन के लिए भारत की मुख्य न्यायाधीश बन सकती हैं।
कोर्ट में सोने वाले जज को CJI बनाने वाले थे नेहरू
प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू जस्टिस सैयद जफर इमाम (Justice Syed Jaffer Imam) को सुप्रीम कोर्ट का मुख्य न्यायाधीश बनाना चाहते थे। जस्टिस इमाम 10 जनवरी 1955 को सुप्रीम कोर्ट में बतौर जज नियुक्त हुए थे। जनवरी 1964 में तत्कालीन CJI बीपी सिन्हा के रिटायर होने के बाद जस्टिस इमाम ही मुख्य न्यायाधीश बनने की कतार में थे। लेकिन समस्या यह थी जस्टिस इमाम बहुत अस्वस्थ थे।
उन्हें हार्ट की समस्या थी और स्ट्रोक आ चुका था। वह कोर्ट में दलील ठीक से नहीं सुन पाते थे। कार्रवाई के बीच में ही सो जाते थे। हालत इतनी खराब थी कि जस्टिस इमाम को कोर्ट पहुंचाने उनकी पत्नी और एक नर्स आया करती थी। ऐसे में उन्हें CJI बनाने के विचार से न्यायिक बिरादरी में चिंता का माहौल था।
लेकिन तत्कालीन पीएम नेहरू को पाकिस्तान की चिंता खाए जा रही थी। उन्हें लग रहा था कि अगर जस्टिस इमाम को सीजेआई नहीं बनाया गया तो पाकिस्तान को लगेगा कि भारत में मुस्लिम जज के साथ भेदभाव किया गया है। ऐसे में इस समस्या से निकलने के लिए जस्टिस सिन्हा ने प्रधानमंत्री को एक सुझाव दिया और जस्टिस इमाम का सीजेआई बनना टल गया। (विस्तार से पढ़ने के लिए लिंक पर क्लिक करें)