मार्च 1982 की बात है। इंदिरा गांधी लंदन गई थीं। इधर संजय गांधी की मौत के बाद से उनकी पत्नी मेनका अपने पति की राजनीतिक विरासत पर दावा करने को बेताब थीं। इस बीच संजय के एक विश्वासपात्र अकबर अहमद ने लखनऊ में एक सम्मेलन का आयोजन किया।

संजय गांधी की युवा विधवा मेनका गांधी को इस सम्मेलन में आमंत्रित किया गया। मेनका ने सम्मेलन में भाग लिया। लखनऊ के उस सम्मेलन में मेनका की उपस्थिति महज दिखावा मात्र नहीं थी। यह एक सोचा-समझा कदम था। सम्मेलन में 8-10 हजार लोग पहुंचे थे। कुछ हथियार लेकर भी आए थे।

सम्मेलन में मेनका ने भाषण भी दिया। सम्मेलन ने संजय गांधी के उस पांच सूत्री कार्यक्रम का समर्थन करने का साहस दिखाया, जो उन्होंने आपातकाल के दौरान चलाया था।

इंदिरा गांधी की व्यक्त इच्छाओं के विरुद्ध अकबर अहमद द्वारा आयोजित सम्मेलन को सीधे प्रधानमंत्री के अपमान के रूप में देखा गया। इस कार्यक्रम में मेनका की उपस्थिति उन्हें सक्रिय राजनीति में लाने के लिए थी, जिससे उनकी सास नाराज हो गईं क्योंकि वह संजय गांधी के बाद खाली हुए जगह को अपने बड़े बेटे राजीव से भरना चाहती थीं।

जाहिर है सम्मेलन इंदिरा की इच्छाओं के विरुद्ध किया गया था, इसलिए कांग्रेस के कई वरिष्ठों ने इसे पार्टी विरोधी गतिविधि करार दे दिया। 28 मार्च, 1982 की सुबह इंदिरा लंदन से लौटीं। प्रधानमंत्री आवास में इंदिरा को देखते ही मेनका ने उनका अभिवादन किया। जवाब में इंदिरा ने कहा “हम बाद में बात करेंगे” और आगे बढ़ गईं।

तुरंत मेरे घर से निकल जाओ- इंदिरा गांधी

मेनका को समझ आ गया था कि उनकी सास बहुत गुस्से में हैं। उन्होंने खुद को एक कमरे में बंद कर लिया। अपनी किताब ‘द रेड साड़ी’ में स्पेनिश लेखक जेवियर मोरो लिखते हैं कि दोपहर में एक नौकर ने दरवाजा खटखटाया, जिसके हाथ में खाने की थाली थी। मेनका ने पूछा वह खाने की थाली कमरे में क्यों लाया। नौकर ने जवाब दिया- “श्रीमती गांधी नहीं चाहतीं कि आप दोपहर के भोजन के लिए परिवार के बाकी सदस्यों के साथ शामिल हों।”

यह जानकर मेनका को अंदाजा हो गया था कि फैसले की घड़ी नजदीक है। वह गलियारे से नीचे उतरने लगीं। इस दौरान उनके पैर कांप रहे थे। वह हॉल में पहुंची। वहां कोई नहीं था। कुछ मिनट बाद अचानक शोर सुनाई दिया। गुस्से से लाल इंदिरा गांधी नंगे पैर ही सामने से चली आ रही थीं। उनके साथ उनके गुरु धीरेंद्र ब्रह्मचारी और सचिव आरके धवन थे। मोरे लिखते हैं, “इंदिरा गांधी ने मेनका की ओर उंगली उठाई और चिल्लाकर कहा- तुरंत इस घर से बाहर निकल जाओ!”

वह आगे लिखते हैं, ” इंदिरा ने कहा- मैंने तुमसे कहा था कि लखनऊ में मत भाषण देना, लेकिन तुमने वही किया जो तुम चाहती हो और तुमने मेरी बात नहीं मानी! तुम्हारी एक-एक बात में ज़हर था। तुम्हे क्या लगता है मुझे नहीं पता चल रहा कि तुम क्या कर रही हो। यहां से चली जाओ! अभी यह घर छोड़ दो!  अपनी मां के घर वापस जाओ!”

इंदिरा गांधी का गुस्सा देखकर मेनका ने अपनी बहन अंबिका को फोन किया और उन्हें बुलाया। अंबिका के आने पर दोनों बहन मिलकर सामान पैक करने लगीं। तभी इंदिरा कमरे में आईं और कहा- अभी के अभी घर से निकलो। तुम यहां से कुछ नहीं ले जा सकती।

अपनी बहन का बचाव करते हुए अंबिका ने कहा: “मेनका नहीं जाएगी! यह उसका घर है!” इतना सुनते ही इंदिरा गांधी ने गुस्से से चिल्ला कर कहा- यह उसका घर नहीं है। यह भारत के प्रधानमंत्री का घर है!

मेनका अपने दो साल के बेटे वरुण को गोद में लेकर आधी रात में ही प्रधानमंत्री आवास से निकल गईं। अगले दिन भारत और दुनिया के कई अखबारों इसकी खबर छपी।

अमेठी से चुनाव लड़ने के लिए संविधान में संशोधन करवाना चाहती थीं मेनका गांधी, इंदिरा ने कर दिया था मना

संजय गांधी की मौत के बाद मेनका गांधी अपने पति की सीट अमेठी से चुनाव लड़ना चाहती थीं। हालांकि तब वह 25 साल की भी नहीं, जो चुनाव लड़ने की न्यूनतम आयु 25 है। मेनका चाहती थीं कि इंदिरा उनके लिए संविधान में संशोधन कर दे। लेकिन प्रधानमंत्री नहीं मानीं। मेनका ने इसे अपने दिवंगत पति की राजनीतिक विरासत को हड़पने के प्रयास के रूप में देखा। (विस्तार से पढ़ने के लिए फोटो पर क्लिक करें) 

Maneka Gandhi
भाजपा से सुल्तानपुर की सांसद मेनका गांधी (Express archive photo)