25 जून 1975…भारतीय राजनीति का स्याह दिन। तत्कालीन प्रधानमंत्री और कांग्रेस नेता इंदिरा गांधी ने इसी दिन देश में इमरजेंसी यानी आपातकाल का ऐलान किया था, जो 21 महीने तक चला। मार्च 1977 में इमरजेंसी हटी। लोकसभा भंग की गई और नए चुनावों का ऐलान हुआ। एक तरफ पूरा विपक्ष कांग्रेस के खिलाफ एकजुट था, तो जनता सड़कों पर थी। चुनाव हुए और नतीजे भी वैसे ही आए जिसकी उम्मीद की जा रही थी। कांग्रेस की शर्मनाक हार हुई। खुद इंदिरा और उनके बेटे संजय गांधी को भी मुंह की खानी पड़ी।

Continue reading this story with Jansatta premium subscription
Already a subscriber? Sign in

तब उत्तर प्रदेश में लोकसभा की कुल 84 सीटें हुआ करती थीं। कांग्रेस को एक भी सीट पर जीत नसीब नहीं हुई। पूरे उत्तर भारत में यही हालत थी। कांग्रेस की करारी हार के बाद पार्टी में कलह की शुरुआत हुई। कुछ नेताओं ने किनारा कर लिया और कुछ ने इंदिरा गांधी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। जिसमें पार्टी के अध्यक्ष ब्रम्हानंद रेड्डी भी शामिल थे। उन्होंने इंदिरा को पार्टी से निकाल दिया।

इंदिरा ने बनाई कांग्रेस-आई: इंदिरा गांधी को कांग्रेस से तो निकाल दिया गया, लेकिन उनका हौसला नहीं टूटा। उन्होंने नई पार्टी बनाई और नाम दिया कांग्रेस (आई)। पुरानी पार्टी कांग्रेस (आर) हो गई। 1977 के चुनाव में कांग्रेस के कुल 153 उम्मीदवार जीतकर लोकसभा पहुंचे थे। इनमें से 76 सांसद इंदिरा के साथ हो लिए। आपसी लड़ाई में कांग्रेस का चुनाव चिन्ह ‘गाय और बछड़ा’ भी छिन गया।

इंदिरा चाहती थीं पुराना चुनाव चिन्ह: सियासी गलियारों में तो कहा ये भी जाता है कि खुद इंदिरा ने चुनाव चिन्ह के रूप में ‘गाय और बछड़ा’ को जाने दिया क्योंकि एक वर्ग गाय को उनसे और बछड़े को उनके बेटे संजय से जोड़कर देखता था और मजाक बनाता था। इंदिरा चाहती थीं कि उनकी पार्टी को कांग्रेस का पुराना चुनाव चिन्ह ‘दो बैलों की जोड़ी’ मिल जाए। हालांकि तब तक यह निशान चुनाव आयोग ने स्थगित कर दिया था।

साइकिल, हाथी और पंजा मिला विकल्प: उन दिनों बूटा सिंह कांग्रेस के कार्यालय का कामकाज देखते थे। वे नए चुनाव चिन्ह के लिए आयोग गए। उनके सामने तुरंत तीन विकल्प रख दिये गए। साइकिल, हाथी और पंजा। चर्चित लेखक रशीद किदवई राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित अपनी किताब, ‘भारत के प्रधानमंत्री’ में लिखते हैं कि बूटा सिंह असमंजस में पड़ गए। उन दिनों इंदिरा गांधी, पीवी नरसिम्हा राव के साथ विजयवाड़ा के दौरे पर थीं। बूटा सिंह ने उनको फोन मिला दिया।

‘हाथ’ और ‘हाथी’ में फंस गया मामला: बूटा सिंह ने इंदिरा को तीनों विकल्पों के बारे में बताया। हालांकि टेलीफोन लाइन में कुछ खराबी की वजह से इंदिरा सारी बात सुन नहीं पाईं। उन्हें बूटा सिंह के लहजे से भी थोड़ा कन्फ्यूजन हुआ। बूटा सिंह हाथ कह रहे थे और इंदिरा गांधी को हाथी समझ में आ रहा था। वे बार-बार मना कर रही थीं कि हाथी को चुनाव चिन्ह नहीं बनाना है। इधर, बूटा सिंह उन्हें समझाते रहे कि वे हाथी नहीं हाथ कह रहे हैं।

झल्ला पड़ीं इंदिरा: आखिरकार इंदिरा गांधी ने झल्लाकर फोन पीवी नरसिम्हा राव को थमा। राव एक दर्जन से अधिक भाषाओं के जानकार थे। वे तुरंत समझ गए कि आखिर बूटा सिंह कहना क्या चाह रहे हैं। उन्होंने तेज आवाज में कहा, ‘यह कहो न कि पंजा है…हाथ क्यों कह रहे हो?’ राव की बात सुनकर इंदिरा ने चैन की सांस ली और उन्होंने पंजे को अपना चुनाव चिन्ह बनाने के लिए सहमति दे दी।