जजों की पोस्ट रिटायरमेंट जॉब पर बहस नई नहीं है। 70 के दशक से ही इस पर लंबी बहस होती रही है। कुछ जज तो खुलेआम इसकी आलोचना कर चुके हैं। पूर्व चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया वाईवी चंद्रचूड़ (Former CJI YV Chandrachud) इन्हीं में से एक थे। जस्टिस चंद्रचूड़ के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट के तमाम जज, रिटायरमेंट के बाद अच्छी नौकरी को ध्यान में रखते हुए जजमेंट दिया करते थे।

पूर्व सीजेआई वाईवी चंद्रचूड़ के पोते और बॉम्बे हाईकोर्ट के एडवोकेट अभिनव चंद्रचूड़ (Abhinav Chandrachud) ने पेंगुइन से प्रकाशित अपनी किताब Supreme Whispers में पोस्ट रिटायरमेंट जॉब पर विस्तार से लिखा है। वह जस्टिस वाईवी चंद्रचूड़ के हवाले से लिखते हैं कि रिटायरमेंट के बाद नौकरी में मुफ्त आलीशान मकान, ड्राइवर के साथ चमचमाती कार और वेतन के साथ तमाम भत्ते मिला करते थे। इसीलिए कुछ जज की निगाहें रिटायर होते ही दूसरी नौकरी पर लगी रहती थीं।

मशहूर है CJI गजेंद्रगाडकर का किस्सा

पोस्ट रिटायरमेंट जॉब से जुड़ा एक मशहूर किस्सा पूर्व सीजेआई जस्टिस पीबी गजेंद्रगाडकर (Justice P.B. Gajendragadkar) से भी जुड़ा है। पूर्व कानून मंत्री शांति भूषण ने अपनी आत्मकथा में दावा किया है कि लॉ कमीशन का चेयरमैन रहते जस्टिस गजेंद्रगाडकर उनसे कई बार मिले थे और चेयरमैन के पद से न हटाने की गुजारिश की थी।

शांति भूषण क्यों नहीं बन पाए थे जज?

अभिनव चंद्रचूड़ भी अपनी किताब में इस वाकये का जिक्र करते हैं। वह लिखते हैं कि चीफ जस्टिस बीपी सिन्हा के कार्यकाल में पहली बार शांति भूषण का नाम इलाहाबाद हाईकोर्ट में जज के लिए प्रस्तावित किया गया, तब सीजेआई सिन्हा ने शांति भूषण के फैमिली बैकग्राउंड का हवाला देते हुए उनकी नियुक्ति रोक दी थी। शांति भूषण के साथ उनके साले सतीश चंद्र का नाम भी इलाहाबाद हाईकोर्ट में जज के लिए भेजा गया था।

सीजेआई सिन्हा का तर्क था कि एक साथ दो रिश्तेदारों की नियुक्ति से अच्छा मैसेज नहीं जाएगा और सुझाव दिया कि शांति भूषण की नियुक्ति कुछ दिन के लिए टाल दी जाए।

जनवरी 1964 को सीजेआई बीपी सिन्हा रिटायर हो गए और जस्टिस पीबी गजेंद्रगाडकर चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया बने। गजेंद्रगाडकर के सामने भी शांति भूषण का नाम भेजा गया, लेकिन उन्होंने शांति भूषण की उम्र का हवाला देते हुए उनकी नियुक्ति रोक दी। उस समय शांति भूषण की उम्र 40 साल के अंदर थी। बाद में शांति भूषण का नाम कभी आगे नहीं बढ़ पाया।

पूर्व सीजेआई को क्या डर सता रहा था?

1966 में सीजेआई गजेंद्रगाडकर रिटायर हो गए। रिटायरमेंट के फौरन बाद उन्हें लॉ कमीशन का चेयरमैन बना दिया गया। कुछ साल बाद जनता पार्टी की सरकार बनी और शांति भूषण मोरारजी देसाई की सरकार में कानून मंत्री बन गए।

अभिनव लिखते हैं कि जब शांति भूषण कानून मंत्री बने तो जस्टिस गजेंद्रगाडकर चिंतित हो गए और उन्हें डर सताने लगा कि कहीं वह (शांति भूषण) उन्हें लॉ कमीशन के चेयरमैन की कुर्सी से न हटा दें। जस्टिस गजेंद्रगाडकर कई बार शांति भूषण से मिले और हर बार एक ही गुजारिश करते कि उन्हें हटाया न जाए।