पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न दिए जाने का एलान किया गया है। पढ़िए उनसे जुड़ा एक किस्सा-

पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह का निधन 29 मई, 1987 को हुआ था। 28 मई को विनायक दामोदर सावरकर की जयंती मनाई जाती है। उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री रहते हुए एक बार चौधरी चरण सिंह सावरकर की जयंती मनाने को लेकर विपक्ष के तीखे सवालों के घेरे में आ गए थे। चौधरी चरण सिंह ने साल साल 1967 में उत्तर प्रदेश की पहली गैर-कांग्रेसी सरकार बनाई थी। 18 फरवरी, 1970 को वह दूसरी बार यूपी के मुख्यमंत्री बने थे। तब उन्होंने इंदिरा गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस (आर) के साथ गठबंधन किया था।

विधानसभा में उठा सावरकर जयंती का मुद्दा

उसी वर्ष (1970) सावरकर जयंती से एक दिन पहले,  27 मई को बदायूं से भारतीय जनसंघ के नेता कृष्ण स्वरूप ने विधानसभा में पूछा कि क्या सरकार सावरकर की जयंती मनाने की योजना बना रही है और क्या इसके लिए कोई समिति गठित की जा रही है? तब सूचना मंत्री गेंदा सिंह ने जवाब दिया कि उनके पास ऐसा कोई प्रस्ताव नहीं आया है।

चरण सिंह ने जनसंघ नेता को लिखा पत्र

जब कृष्ण स्वरूप ने इस मुद्दे को उठाना जारी रखा, तो चरण सिंह ने कृष्ण स्वरूप को एक पत्र लिखा। सिंह ने स्वरूप को बताया कि उनका सुझाव अच्छा है लेकिन इतने कम समय में समारोह के लिए सब कुछ प्लान करना बनाना संभव नहीं है। जब स्वरूप ने पूछा कि क्या सरकार अगले साल (1971) से सावरकर की जयंती मना सकती है?

मुख्यमंत्री ने जवाब दिया कि, “जहां तक ​​सावरकर के बलिदानों का सवाल है, वो किसी भी संदेह से परे है। हम सभी ने अपनी युवावस्था में उनसे बहुत प्रेरणा ली है। आज़ादी के लिए कई और लोगों ने भी कुर्बानी दी थी। सवाल यह है कि सरकार के स्तर पर ऐसे कितने लोगों की जयंती मनाई जाएगी? सभी ने सर्वोच्च बलिदान दिया। अगर कोई गैर सरकारी संस्था यह काम करती है तो सरकार मदद कर सकती है। लेकिन, अभी तक हमने इस पर विचार नहीं किया है।”

‘महान लोग बहुत हैं…’

जनसंघ के एक विधायक नित्यानंद स्वामी ने सीएम से पूछा कि क्या वह अपनी व्यक्तिगत क्षमता में सावरकर की जयंती मनाने का प्रस्ताव रखेंगे, तो मुख्यमंत्री ने दोहराया, “मैंने आपको समस्या के बारे में बताया। महान लोग बहुत हैं और शायद सावरकर महानतम की श्रेणी में हैं, लेकिन मैंने सरकार की मुश्किलों के बारे में बताया। मुझे सावरकर जयंती मनाने में कोई दिक्कत नहीं है लेकिन सवाल हमारे राज्य का नहीं पूरे देश का है। अगर हम सावरकर जयंती मानते हैं तो फिर रानी लक्ष्मीबाई और तात्या टोपे आदि के बारे में मांग उठाई जाएगी।”

2003 में भी हुआ था सावरकर से जुड़े कार्यक्रम का बहिष्कार

साल 2003 में जब सावरकर के पोर्ट्रेट को पुराने संसद भवन के सेंट्रल हॉल में स्थापित किया गया था तो इसका व्यापक विरोध हुआ था। उस समय भी कई पार्टियों ने इस कार्यक्रम का बहिष्कार किया था।

जब यूपी के वर्तमान सीएम योगी आदित्यनाथ ने जनवरी 2021 में विधान परिषद में एक फोटो गैलरी खोली, तो उसमें एक तस्वीर सावरकर की भी लगी थी। दरअसल, योगी आदित्यनाथ के गुरु महंत दिग्विजयनाथ जिस हिंदू महासभा के राज्य अध्यक्ष थे, सावरकर उसका राष्ट्रीय स्तर पर नेतृत्व कर रहे थे।

नए संसद का उद्घाटन और सावरकर

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार 28 मई को नए संसद भवन का उद्घाटन किया। 28 मई, 2023 को ‘हिंदुत्व’ की अवधारणा के प्रवर्तक विनायक दामोदर सावरकर की 140वीं जयंती भी थी।

इस मौके पर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने ट्वीट किया, “28 मई को आज के दिन: नेहरू, जिन्होंने भारत में संसदीय लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए सबसे अधिक काम किया, उनका 1964 में अंतिम संस्कार किया गया था।

सावरकर, जिसकी विचारधारा ने ऐसा माहौल बनाया जो महात्मा गांधी की हत्या का कारण बना, उसका जन्म 1883 में हुआ था।”

दूसरी तरफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सावरकर की प्रशंसा करते हुए कहा कि  “उनके व्यक्तित्व में ताकत झलकती है और उनका निडर और स्वाभिमानी स्वभाव गुलामी की मानसिकता को बर्दाश्त नहीं कर सका।”