भारतीय राजनीति के ‘युवा तुर्क’ कहे जाने वाले चंद्रशेखर महज 8 महीने ही प्रधानमंत्री की गद्दी पर रहे लेकिन अपने नेतृत्व का लोहा मनवा दिया था। चंद्रशेखर ने जिस वक्त सत्ता संभाली उस वक्त खाड़ी देशों में लड़ाई छिड़ी थी और हजारों भारतीय वहां फंसे थे। हालांकि भारतीय नागरिकों की स्वदेश वापसी के लिए उनसे ठीक पहले प्रधानमंत्री रहे वीपी सिंह की सरकार ने पहल की थी, लेकिन इसे अमली जामा चंद्रशेखर की सरकार ने पहनाया। उस वक्त 1.75 लाख नागरिकों को सुरक्षित रेस्क्यू कर रिकॉर्ड बना दिया था।
चंद्रशेखर ने अपने छोटे कार्यकाल में न सिर्फ अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर गंभीरता से काम किया बल्कि बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि विवाद का हल ढूंढने का भी प्रयास किया। उस दौर में यह मसला बेहद संवेदनशील हो गया था। कई बार दंगे हो चुके थे और कई लोग जान गंवा चुके थे। चंद्रशेखर ने तय किया कि इस मसले को बातचीत की टेबल तक लाया जाए। शुरुआत अपने पुराने मित्र और भाजपा के वरिष्ठ नेता भैरो सिंह शेख़ावत से की, जो उस वक्त राजस्थान के मुख्यमंत्री थे। इसी तरह कांग्रेस में शामिल पुराने दोस्त और महाराष्ट्र के सीएम शरद पवार को साथ लिया। यूपी के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव से पहले ही बात कर ली थी।
वरिष्ठ पत्रकार और लेखक रशीद किदवई अपनी किताब ‘भारत के प्रधानमंत्री’ में राज्यसभा के उप-सभापति हरिवंश और रवि दत्त वाजपेयी की किताब ‘चंद्रशेखर-द लास्ट आइकॉन ऑफ आयडियोलॉजिकल पॉलिटिक्स’ के हवाले से लिखते हैं कि इस संवेदनशील मसले का शांतिपूर्ण हल खोजने के लिए चंद्रशेखर दोनों पक्षों को बातचीत की टेबल तक ले आए थे। इसी बातचीत में सभी पक्ष इस मसले को सुप्रीम कोर्ट में ले जाने पर राजी हुए थे।
चंद्रशेखर की बात सुन पीले पड़ गए थे नवाज शरीफ
चंद्रशेखर अपने दो टूक लहजे के लिए भी मशहूर थे। अगर उन्हें कोई बात कहनी होती थी तो वक्त और जगह नहीं देखा करते थे। 21 मई, 1991 को राजीव गांधी की हत्या के बाद तमाम देशों के राष्ट्राध्यक्ष उनके अंतिम संस्कार में शामिल होने पहुंचे। इनमें पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ भी थे। उन दिनों सीमा पार से आतंकी गतिविधियों में अचानक इजाफा हो गया था और भारतीय सेना आतंकियों से लोहा ले रही थी। चंद्रशेखर ने सोच लिया था कि भले ही नवाज शरीफ, राजीव गांधी के अंतिम संस्कार में आएं हों, लेकिन वे इस मसले को जरूर उठाएंगे।
बकौल रशीद किदवई, ‘जब चंद्रशेखर की नवाज शरीफ से भेंट हुई तो बिना किसी लाग-लपेट और कूटनीतिक भाषा के साफ-साफ कह दिया कि वे सीमा पर अपनी सेना की हरकतों पर लगाम लगाएं। शरीफ को इस तरह दो टूक बात सुनने की आशा नहीं थी। चंद्रशेखर के कड़े लहजे से वे कुछ पलों के लिए ठहर-से गए। उनका रंग पीला पड़ गया था। फिर अपने आप को संभालते हुए कहा, ‘ISI ने मेरा निर्देश मानना बंद कर दिया है और ऐसी हरकतें अपनी मर्जी से कर रहे हैं’।
‘बहुत बदमाशी करते हैं आप…’
वरिष्ठ पत्रकार और लेखक संतोष भारतीय ने अपनी किताब ‘वीपी सिंह, चंद्रशेखर, सोनिया गांधी और मैं’ में भी चंद्रशेखर और नवाज शरीफ की एक मुलाकात का जिक्र किया है। यह वाकया भी साल 1991 का ही है। उस साल कॉमनवेल्थ देशों का एक शिखर सम्मेलन हो रहा था। इसमें चंद्रशेखर और नवाज शरीफ दोनों, अपने-अपने मुल्क के प्रधानमंत्री की हैसियत से पहुंचे। इस सम्मेलन में भी चंद्रशेखर ने नवाज शरीफ को काफी खरी-खोटी सुना दी थी। बकौल भारतीय, औपचारिक बातचीत के बाद चंद्रशेखर ने नवाज शरीफ से कह दिया- ‘आप बहुत बदमाशी करते हैं…इस पर शरीफ झेंप गए थे।’