भारत सरकार ने गुरुवार (10 अगस्त) को संसद में एक विधेयक पेश किया। यह विधेयक एक कमेटी बनाने से जुड़ा है, जो भारतीय चुनाव आयोग (ECI) के सदस्यों का चयन करेगी। कमेटी में प्रधानमंत्री, लोकसभा में विपक्ष के नेता और प्रधानमंत्री द्वारा नामित एक कैबिनेट मंत्री को रखा गया है। कमेटी में भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) को शामिल नहीं किया गया है, जिससे चर्चा का विषय बना है। अब तक CEC (चीफ इलेक्शन कमिश्नर) और EC (इलेक्शन कमिश्नर) को संविधान के अनुच्छेद 324(2) के अनुसार सरकार की सलाह पर राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किया जाता रहा है।

सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में क्या कहा था?

इसी वर्ष मार्च में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया था कि प्रधानमंत्री, विपक्ष के नेता और CJI की तीन सदस्यीय कमेटी चुनाव आयोग के लिए सदस्यों का चयन करेगी। ऐसा तब तक होगा, जब तक संसद चीफ इलेक्शन कमिश्नर और इलेक्शन कमिश्नर की नियुक्ति को नियंत्रित करने वाला कानून पारित नहीं कर देती।

शीर्ष अदालत ने यह फैसला साल 2015 की एक जनहित याचिका पर सुनाया था, जिसमें केंद्र द्वारा चुनाव आयोग के सदस्यों की नियुक्ति की प्रथा को चुनौती दी गई थी। बता दें कि पिछले कुछ वर्षों में ECI की स्वतंत्रता पर सवाल उठे हैं। चुनाव आयोग में कार्यपालिका का प्रभाव दिखा है। कई सेवानिवृत्त वरिष्ठ नौकरशाह लगातार नियुक्त किए गए हैं।

मोदी सरकार द्वारा प्रस्तावित विधेयक से CJI को बाहर करना भाजपा के पहले के दृष्टिकोण से अलग है, क्योंकि कभी भाजपा के सबसे बड़े नेता लालकृष्ण आडवाणी ने खुद कमेटी में सीजेआई को रखने की मांग उठाई थी।

आडवाणी ने प्रधानमंत्री को लिखा था पत्र

2 जून 2012 को भाजपा संसदीय दल के तत्कालीन अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी ने तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को पत्र लिखकर चुनाव आयोग के सदस्यों का चयन करने के लिए एक कॉलेजियम बनाने की सिफारिश की थी। आडवाणी ने कॉलेजियम के सदस्यों में प्रधानमंत्री, भारत के मुख्य न्यायाधीश, कानून मंत्री, लोकसभा और राज्यसभा में विपक्ष के नेता को रखने का सुझाव दिया था।

तब आडवाणी का मानना था कि चुनाव आयोग के सदस्यों के चयन की प्रक्रिया में संशोधन का समय आ गया है। उन्होंने प्रधानमंत्री को लिखा, ” वर्तमान प्रणाली जिसके तहत चुनाव आयोग के सदस्यों को राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किया जाता है, उसमें केवल प्रधानमंत्री की सलाह ली जाती है। यह प्रणाली लोगों में विश्वास पैदा नहीं करती। इन महत्वपूर्ण निर्णयों को सत्तारूढ़ पार्टी के विशेष अधिकार के रूप में रखने से चयन प्रक्रिया में हेरफेर और पक्षपात की संभावना बढ़ जाती है।”

आडवाणी ने सरकार को समझाई थी चुनाव आयोग की महत्ता

आडवाणी का पत्र मुख्य चुनाव आयुक्त और भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) दोनों की नियुक्तियों के संदर्भ में था। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को लिखे पत्र में आडवाणी ने सरकार को याद दिलाया था कि मुख्य चुनाव आयुक्त का पद एक संवैधानिक पद है।

आडवाणी ने लिखा था, “देश में एक राय तेजी से बन रही है जो मानती है कि पूर्वाग्रह और निष्पक्षता की कमी की किसी भी धारणा को दूर करने के लिए चुनाव आयोग जैसे संवैधानिक निकायों में नियुक्तियां द्विदलीय आधार पर की जानी चाहिए। भारत के लोग यह चाहते हैं कि इन महत्वपूर्ण निकायों में केवल सक्षम, निष्ठावान और क्लीन सर्विस रिकार्ड वाले व्यक्तियों को ही नियुक्त किया जाए, क्योंकि उनकी कार्यप्रणाली शासन की गुणवत्ता को काफी हद तक निर्धारित करती है।”