भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के रास्ते राजनीति में आए थे। उन्होंने अपना करियर पत्रकार के रूप में शुरू किया था। वह संघ से संबंद्ध पत्रिका (भारत प्रेस) में संपादन का काम करते थे। 1951 में भारतीय जन संघ (BJS) में शामिल होने के बाद वाजपेयी ने पत्रकारिता छोड़ दी।

वाजपेयी का जन्म 25 दिसंबर, 1924 को मध्य प्रदेश के ग्वालियर में हुआ था। अपने 25वें जन्मदिन पर उन्होंने ‘1949’ शीर्षक से पत्रिका के लिए एक लेख लिखा था, “हमारे छोटे जीवन का एक और वर्ष बीत गया। बीते वर्ष का आकलन करना आगामी वर्ष के लिए एक योजना तैयार करने का एक उपयोगी तरीका है। परन्तु आज हमें ऐसी कोई इच्छा नहीं होती, क्योंकि बीता हुआ वर्ष हमारी पराजय और निराशा का वर्ष था; आगामी वर्ष में भी हमें कोई उम्मीद नहीं दिख रही है।”

1950 में बदल गया दफ्तर

अभिषेक चौधरी ने पूर्व प्रधानमंत्री की जीवनी ‘VAJPAYEE: The Ascent of the Hindu Right’ में बताया है कि संघ के लिए पत्रकारिता करते हुए वाजपेयी ने अपना दिन-रात समर्पित कर दिया था। भारत प्रेस के सभी लोग कार्यालय से एक मील दूर एक ऐसी जगह पर रहते थे, जो बॉम्बे की चॉल जैसे घर थे। अगस्त 1950 के आसपास अटल बिहारी वाजपेयी को स्वदेश नामक एक डेली न्यूज़ पेपर में स्थानांतरित कर दिया गया। अखबार चलाने की जिम्मेदारी सौंपा जाना उनके लिए एक पदोन्नति थी।

हालांकि आरएसएस कम संसाधनों के साथ अपनी ताकत बढ़ा रहा था। वाजपेयी को जिस अखबार को चलाने की जिम्मेदारी मिली थी, उसके लिए ढंग का बुनियादी ढांचा भी उपलब्ध नहीं कराया गया था। दफ्तर में कोई टेलीफोन नहीं था, कुर्सियां भी टूटी हुई थीं और कर्मचारी भी कम थे। कम स्टाफ के साथ न्यूज जुटाना और छापने की व्यवस्था करने का मतलब था- कर्मचारियां का ओवरटाइम करना।

उस न्यूज़ पेपर में काम करने वाले एक व्यक्ति ने लेखक को बताया, “स्वदेश में  कर्मचारियों की इतनी कमी थी कि हम एक या दो दिन की छुट्टी भी नहीं ले सकते थे… वर्षों तक ऐसा ही चलता रहा।”  

चौधरी लिखते हैं , “अटल प्रचारकों के बीच रह रहे थे, जिनमें से अधिकांश का बचपन उनसे खराब ही बीता था। दीनदयाल सात साल की उम्र में अनाथ हो गए थे; नानाजी ने किसी को नहीं बताया था कि जब वह बहुत छोटे थे तो उनकी मां ने कुएं में कूदकर आत्महत्या कर ली थी। … बीस के दशक के अंत और तीस के दशक की शुरुआत में आजीवन ब्रह्मचर्य का व्रत लेने वाले पुरुषों के साथ रहते हुए, अटल ने भी अपनी यौन इच्छाओं का दमन करने वाला जीवन जीया।”

नाबालिगों के फिल्म देखने पर प्रतिबंध की मांग

चौधरी अपनी किताब में बताते हैं कि कभी-कभी वाजपेयी के निजी जीवन का संघर्ष पाञ्चजन्य के पन्नों पर दिखाई देता था। कई बार युवा संपादक मोरल पुलिसिंग करने लगते थे। उन्होंने यूपी सरकार से 16 साल और उससे कम उम्र के बच्चों के फिल्में देखने पर प्रतिबंध लगाने की मांग की थी।

वाजपेयी ने लिखा था, “सिनेमा भारत के युवाओं के नैतिक चरित्र में गिरावट का एक कारण है। चूंकि सरकार सिनेमा उद्योग को नियंत्रित करती है, इसलिए इसके लिए पूरी तरह से वही जिम्मेदार है। मात्र 60-70 लाख की वार्षिक आय के लिए कोई भी सभ्य राष्ट्र अपने भावी नागरिकों का पतन होते नहीं देखना चाहेगा।”

उस वक्त वाजपेयी के इस गुस्से का कारण सुपरहिट फिल्म ‘बरसात’ थी। 24 वर्षीय राज कपूर ने इस फिल्म में न सिर्फ अभिनय किया था बल्कि निर्देशन भी किया था। एक और विवाद के बाद बरसात की स्क्रीनिंग को रिलीज के छह महीने बाद रोक दी गई थी। लेकिन अटल का विरोध तब भी न थमा। उन्होंने लिखा कि इसके “गंदे और अश्लील गाने” अभी भी हर जगह सुने जा सकते हैं।

Barsaat
बरसात फिल्म का पोस्ट (PC- Wikipedia)

उन्होंने इस बात पर आश्चर्य व्यक्त किया कैसे बच्चों की जुबान पर फिल्म का गाना ‘पतली कमर, तिरछी नजर’ चढ़ा हुआ है। उन्होंने गाने को “लखनऊ के हर बच्चे के होठों से गूंजने वाला एक अश्लील गीत” लिखा। इस संबंध में उन्होंने ऑल इंडिया रेडियो (AIR) की नीति की आलोचना करते हुए कहा कि उन्हें प्रसारित होने वाले गानों के चयन में सावधानी बरतने की ज़रूरत है।